जम्मू एवं कश्मीर वुड पैनल इंडस्ट्री के परिदृश्य

person access_time3 19 August 2023

जम्मू-कश्मीर में टिम्बर की उपलब्धता इस समय कम है। इंडस्ट्री प्लेयर्स को उम्मीद हैं कि दो साल बाद टिम्बर की उपलब्धता में सुधार हो सकता है। प्लाई रिपोर्टर के अध्ययन से पता चलता है कि प्लाइवुड मैन्युफैक्चरिंग लगभग 50 से 60 फीसदी क्षमता पर चल रही हैं। मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में लकड़ी की उपलब्धता में मौसम की स्थिति भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में राज्य स्तरीय समिति (एसएलसी) ने टिम्बर बेस्ड इंडस्ट्री के लिए 213 नए लाइसेंस को मंजूरी दी थी। अनुमोदन के लिए आवेदनों में सॉ मिल इकाइयों के साथ 73 क्रिकेट बैट बनाने वाली इकाइयां और 8 प्लाईवुड व विनियर इकाइयां शामिल थीं। इसके अलावा, पिछले साल जुलाई में, जम्मू-कश्मीर सरकार ने औपचारिक रूप से जम्मू-कश्मीर सामाजिक वानिकी वृक्षारोपण नियमों को अधिसूचित किया, जो पीआरआई की प्रभावी भागीदारी के प्रावधानों को लागू करने के लिए संस्थागत ढांचा तैयार करता है, जो अब फॉरेस्ट्रेशन और इससे जुड़े पहल को आगे बढ़ाने के लिए विभागीय पदाधिकारियों के साथ मिलकर काम कर रहे है। जिससे यह केंद्रशासित प्रदेश अपने भौगोलिक क्षेत्र के दो-तिहाई हिस्से को वन एवं वृक्ष आच्छादित करने के लक्ष्य के करीब पहुंचने की दिशा में।

पंचायत स्तर पर गठित ग्राम पंचायत वृक्षारोपण समितियां (वीपीपीसी) पीआरआई और स्थानीय लोगों के बीच एक पुल के रूप में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं, जिससे ग्रीन जेएंडके ड्राइव, हर गांव हरियाली, वन से जल, जल से जीवन, जैसी महत्वपूर्ण पहल पर सहयोग कर रही है। इसके आलावा आजीविका. विभाग को वीपीपीसी का सक्रिय सहयोग मिल रहा है। ग्राम पंचायतों में उपलब्ध भूमि के टुकड़ों पर स्वदेशी बहुउद्देशीय प्रजातियों वाले अधिक से अधिक वृक्षारोपण किए जा रहे हैं। 2021-22 के दौरान, 3000 हेक्टेयर क्षेत्र में 31 लाख से अधिक पौधों का रोपण किया गया, जो आज तक सबसे ज्यादा है।

एसोसिएशन ऑफ टिम्बर इंडस्ट्री, जम्मू-कश्मीर के उपाध्यक्ष श्री पुनीत जामवाल ने कहा कि क्षेत्र में हस्तशिल्प उद्योग के लिए लकड़ी की उपलब्धता अच्छी है क्योंकि राज्य वन निगम नीलामी के माध्यम से इसे अच्छी मात्रा में उपलब्ध करा रहा है। इसके अलावा आयातित लकड़ी भी अच्छी मात्रा में उपलब्ध है, जो कांडला से आती है। आम तौर पर इस क्षेत्र में तीन से चार नीलामी आयोजित की जाती हैं, इसलिए प्रचुर मात्रा में मटेरियल उपलब्ध है।

देवदार, केल, फर (ज्यादातर कारपेंटरी में उपयोग किया जाता है), और उत्तराखंड से भी अच्छी मात्रा में टिम्बर आ रही है। वालनट का प्रयोग अधिकतर हस्तशिल्प में किया जाता है। इससे पहले जीएसटी से पहले एसएसआई इंडस्ट्री को कर नहीं देना पड़ता था। जम्मू में, वुड पैनल इंडस्ट्री केवल कुछ ही संख्या में हैं, लेकिन कश्मीर में, बड़ी संख्या में प्लाइवुड उद्योग स्थानीय स्तर पर उत्पादित पॉपलर की लकड़ी की अच्छी उपलब्धता के साथ आराम से काम कर रहे हैं।

कश्मीर घाटी में उपलब्ध पॉपलर वुड का उपयोग मुख्य रूप से माचिस बनाने के लिए किया जाता है। पंपोर (कश्मीर) और बारी ब्राह्मणा (जम्मू) में प्लाइवुड, हार्डबोर्ड और चिपबोर्ड मैन्युफैक्चरिंग की फैक्ट्रियां हैं। कुछ वर्ष पहले, खासकर राज्य के जम्मू क्षेत्र में मैन्युफैचरिंग और सर्विस सेक्टर में भी जबरदस्त वृद्धि देखी गई है। एक अनुमान के अनुसार, इसके लिए टिम्बर की कुल वार्षिक खपत लगभग 4 मिलियन टन थी और लघु उद्योग क्षेत्र में 54,975 लकड़ी की इकाइयाँ थीं। कंस्ट्रक्शन मेटेरियल बनाने वाली कई छोटी और बड़ी कंपनियों ने जम्मू और कश्मीर में मैन्युफैचरिंग यूनिट स्थापित की हैं।

जगजीत सिंह, निदेशक, जेनिथ प्लाईवुड एजेंसी, जम्मू-कश्मीर ने कहा कि लकड़ी की उपलब्धता भी कम है, और कीमतें बढ़ गई हैं क्योंकि बड़ी संख्या में कारखाने और प्रेस लगाए गए हैं। उम्मीद है कि यह कम से कम दो साल तक कायम रहेगा। कुल मिलाकर, लगभग 30 कारखाने कश्मीर में श्री नगर में हैं। पोपलर की कीमत लगभग 1000 रुपये प्रति क्विंटल (350 रुपये प्रति सीएफटी) है। लकड़ी ज्यादा मॉइस्चर वाली आती है, इसलिए इसकी कीमत पंजाब और यमुनानगर में उपलब्ध कोर के लगभग बराबर है। प्लाइवुड फैक्ट्री का संचालन लगभग ६० फीसदी है, जो स्थानीय स्तर पर बेचा जाता है, और अधिकांश प्लेयर कमर्शियल प्लाइवुड बना रहे हैं। लकड़ी की गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं होती है क्योंकि इससे फलों की पेटियाँ भी बनाई जाती हैं।

प्लांटेशन भी वैज्ञानिक तरीके से नहीं की जाती है और अधिकांश परम्परागत तरीके से किया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक, वहां लगभग 30 ट्रक प्लाइवुड का उत्पादन होता है और उनमें से ज्यादातर स्थानीय स्तर पर बेचे जाते हैं। फैक्ट्री 15 से 20 दिनों तक स्टॉक बनाए रखती है और कुछ प्लेयर अपनी क्षमता के अनुसार स्टॉक बनाए रखते हैं। कभी-कभी सर्दियों के दौरान तापमान में भारी गिरावट के कारण तापमान शून्य से 15 डिग्री नीचे चला जाता है तो फैक्ट्री संचालन रुकने के कारण लकड़ी का ढेर बढ़ जाता है।

मनमोहन सिंह कामरा, निदेशक, समृद्धि प्लाईबोर्ड प्राइवेट लिमिटेड, जम्मू-कश्मीर ने कहा लकड़ी की कमी है, और कीमत 350 से 400 सीएफटी तक पहुंच गई है, जो 1300 रुपये क्यूंट्ल तक पहुंचती है। लकड़ी की गुणवत्ता भी अच्छी नहीं है, और पैनल के लिए गर्थ कम हो गया। ठंडे क्षेत्रों में लकड़ी के घर बनाने में अधिक मोटाई वाली लकड़ी की खपत होती है, जो कुल लकड़ी उत्पादन का 50 फीसदी हो सकता है। अक्टूबर से मार्च तक फैक्ट्री का संचालन बंद हो जाता है, उस समय लकड़ी की कटाई बढ़ जाती है, जो फैक्ट्री स्तर पर लकड़ी की उपलब्धता के लिए अच्छा लगता है। लकड़ी की उपलब्ध् ाता की कमी के कारण हमारी फैक्ट्री का संचालन 50 फीसदी पर है।

जम्मू और कश्मीर के कुल क्षेत्रफल का लगभग एक तिहाई भाग में वन है। विभिन्न कारणों से उपलब्धता और बढ़ती कीमत पर उपज की मात्रा हर साल अलग होती है, और कठोर मौसम की स्थिति भी उनमें से एक है।

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