पीवीसी एज बैंड उत्पादन क्षमता में 20 प्रतिषत गिरावट

person access_time   3 Min Read 27 March 2023

पीवीसी एज बैंड का बाजार पिछले 4 महीनों से धीमा है। प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार मैन्युफैक्चरर पूरी क्षमता का उपयोग करने में असमर्थ हैं। रिपोर्ट के अनुसार इसके उपयोग में 20 फीसदी की गिरावट का अनुमान है। सूत्रों का कहना है कि पिछले छह महीनों में रेडीमेड फर्नीचर उद्योग में तेजी के बाद इस सेगमेंट में क्षमता विस्तार में भारी इजाफा हुआ था।

पीवीसी एज बैंड का बाजार पिछले 4 महीनों से धीमा है। प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार मैन्युफैक्चरर पूरी क्षमता का उपयोग करने में असमर्थ हैं। रिपोर्ट के अनुसार इसके उपयोग में 20 फीसदी की गिरावट का अनुमान है। सूत्रों का कहना है कि पिछले छह महीनों में रेडीमेड फर्नीचर उद्योग में तेजी के बाद इस सेगमेंट में क्षमता विस्तार में भारी इजाफा हुआ था।

ट्रेडर्स और मैन्युफैक्चरर्स का कहना है कि प्रतिस्पर्धा बढ़ी है और आयात भी आ रहा है, जिससे घरेलू मैन्युफैक्चरिंग और सेल्स प्रभावित हो रही है और इसके परिणामस्वरूप मार्जिन भी गिरा है। ‘‘मेड इन इंडिया‘‘ एज बैंड की बढ़ती आपूर्ति, साथ ही कारपेंटर के बीच बढ़ती जागरूकता ने बाजार के विकास में सपोर्ट किया है, हालांकि, मॉड्यूलर फर्नीचर मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री में धीमी उत्पादन ने पिछले 4 महीनों में पीवीसी एज बैंड की मांग को प्रभावित किया है।

सूत्रों के अनुसार, एक बार माल ढुलाई भाड़ा कम हो जाने के बाद, आयातित पीवीसी बाजार में फिर से दिखने लगी, विशेष रूप से चीन के किफायती उत्पाद बाजार में अपनी जगह बना रहे हैं। इसलिए 0.4 मिमी की सप्लाई एक बार फिर भारी मात्रा में सामने आ रही है। लेमिनेट के कलर के साथ एज बैंड में विकल्प और वैसी किस्में जो मैच करती हैं, अभी भी बाजार के विस्तार में मदद कर रही हैं, लेकिन प्लेयर्स बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए उत्साहित हैं, और प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ गई है। हांलाकि ये उत्पाद ग्रामीण बाजार में भी पहुंच गया है, जिससे मांग बढ़ रही है।

हालांकि उद्योग के प्रतिभागियों का दावा है कि यह एक अस्थायी मंदी है, एज बैंड की मांग हमेशा मजबूत और बढ़ती रही है। उत्साहजनक खबर यह है कि कई भारतीय कंपनियां अब हमारे उद्योग के लिए कच्चे माल का उत्पादन करने की कोशिश कर रही हैं। भारत में लगभग 100 एज बैंड निर्माता और आयातक हैं। पीवीसी एज बैंड बाजार 2025 तक लगभग 2,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। निर्माताओं का कहना है कि आज बी-टाउन और सी-टाउन में भी मांग है, और यह प्रति वर्ष काफी तेजी से बढ़ रही है, जिससे उद्योग को मदद मिल रही है।

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