ऊर्जा संकट और टिम्बर की कमी के चलते आगे भी बढेंगी कीमते

person access_time   5 Min Read 23 May 2022

औधोगिक गतिविधियों पर अपने डेढ महीनें के व्यापक शोध और विश्लेषण के आलावा, लोगों के साथ बैठके करते हुए, श्री प्रगत द्विवेदी ने मार्केट अपडेट के 13 वें संस्करण में पूरे उद्योग और व्यापर के परिदृश्य पर काफी महत्वपूर्ण बातें बताई। कार्यक्रम 1 मई 2022 को मोदक प्लाई के सहयोग से आयोजित किया गया था जो प्लाई रिपोर्टर के फेसबुक पेज पर लाइव था। चर्चा में उद्योग के सभी सेगमेंट जैस टिम्बर, ट्री आउट ऑफ फॉरेस्ट (टीओएफ), ऊर्जा संकट, कीमतें, कच्चे माल, फोल्डर की लागत, उद्योग में स्थिरता, आदि विषयों पर उन्होनें बात की। प्रस्तुत है विश्लेषण के प्रमुख अंश।

हमारे वुड पैनल, डेकोरेटिव और उससे जुड़ी बिल्डिंग मटेरियल इंडस्ट्री की सबसे अच्छी बात यह है कि चुनौतियों पर काबू पाते हुए उत्साह के साथ यह आगे बढ़ रहा है। इसकी हमें काफी खुशी है। सर्वश्रेष्ठ के लिए लड़ने का उत्साह स्पष्टता के साथ आता है; और इस उद्योग में अधिकांश उद्यमी उत्साही हैं, क्योंकि उनको यह स्पष्ट है कि वे सही उद्योग में सही रास्ते पर हैं और सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

बहुत सारे उतार-चढ़ाव आए और पिछले दो साल उद्योग में सभी के लिए - लेवर से लेकर इंडस्ट्री और सभी चौनल पार्टनर्स तक, काफी चुनौतीपूर्ण समय रहा, लेकिन उनमें से बहुत कम ही लोगों ने कोविड की चुनौतियों के सामने अपने घुटने टेके। 99 फीसदी से ज्यादा लोगों ने न केवल स्वास्थ्य के मोर्चे पर बल्कि आर्थिक मोर्चे पर भी सभी बाधाओं को पार करते हुए लड़ाई जीती। चाहे वह मैन्यूफैक्चरर्स हो, सप्लायर हो, खुदरा विक्रेता, डीलर हो या डिस्ट्रीब्यूटर सभी ने कमबैक किया और पहले की तरह खुश हैं।

कच्चे माल की बढ़ती कीमत का दर्द आज हर किसी को है, कोई इससे अछूता नहीं है। पिछले डेढ़ महीने में इंडस्ट्री में काफी बदलाव हुए हैं। हमारा पिछला विश्लेषण कुछ हद तक सही सावित हुआ। इस कड़ी में भी प्लाईवुड, टिम्बर या मेलामाइन की बढ़ती कीमत, क्राफ्ट या किसी अन्य कच्चे माल जैसे रेजिन और कई अन्य मुद्दों पर विश्लेषण की गई है। उनकी स्थिति क्या है, और आने वाले समय में यह उद्योग को कैसे प्रभावित करेगा और व्यापार इसे कैसे स्वीकार करेगा, ये बातें इस चर्चा के मुख्य विषय हैं।

टिम्बर नें नया बेंचमार्क बनाया 

इसकी कीमत ने अप्रैल में नया बेंचमार्क बनाया और आज हर कोई इससे प्रभावित है। अगर हम सबसे निचले ग्रेड (3 इंच से कम गार्थ के लॉप्स एंड टॉप्स) के बारे में बात करें तो, जो कि पार्टिकल बोर्ड या एमडीएफ मैन्युफैक्चरिंग में उपयोग किया जाता है, पहले यहबेंचमार्किंग 3 रुपये हुआ करती थी, जो कोविड काल में 3.5 रुपये  , और कोविड के बाद 4 रुपये, फिर 4.5 रुपये, 5 रुपये और आज यह औसतन 6 रुपये से ज्यादा तक पहुंच गया है। इसका मतलब है कि लकड़ी की कीमत बहुत तेजी से बढ़ी है। प्लाइवुड मैन्युफैक्चरर्स पर भी ऐसा ही प्रभाव पड़ा है क्योंकि टिम्बर जो 600 रुपये से 700 रुपये में उपलब्ध थी, आपूर्ति में कमी और बढ़ती मांग के कारण 1200 रुपये से 1400 रुपये तक पहुंच गई है। इसका कारण कुछ और नहीं बल्कि पिछले चक्र में वृक्षारोपण की कमी है।

ट्री आउट ऑफ फारेस्ट (टीओएफ) को उच्च प्राथमिकता

भारत सरकार अब इस पर विचार कर रही है और उच्च प्राथमिकता दे भी दे रही है, जिस पर काफी चर्चा भी हो रही है। आज वैज्ञानिक और उद्योग जगत के सभी लोग टीओएफ के बारे में बात कर रहे हैं और प्लांटेशन की वकालत जोर शोर से कर रहे हैं लेकिन कोई ठोस नतीजा निकलने का अभी भी इंतजार है। दरअसल जब तक उद्योग जगत इसमें रुचि नहीं लेगा और अपनंेस्तर पर नर्सरी बनाने तथा प्लांटेशन के लिए पौधे बांटने की पहल नहीं की जाएगी, ये सब कोरी बातें ही है। चर्चाएं बहुत होचुकी है, इसका कोई अंत नहीं है। लेकिन, अब समय ठोस पहल करने की है। यदि हम तुरंत पहल नहीं करते हैं, तो उद्योग को कई बड़े बदलाव से गुजरना होगा, जिसके बारे में उद्योग ने कभी सोचा नहीं होगा।

पिछले साल कोविड के दौरान, आयात को झटका लगा था, लॉजिस्टिक की दरें आयात को बेहद मुश्किल स्थिति में डाल दिया था। माल और कंटेनरों के भाड़े की बढ़ती लागत के कारण, पार्टिकल बोर्ड, एमडीएफ और चीन से आयात होने वाले फर्नीचर का आयात पड़ता नहीं खाने के चलते रुका हुआ था। ऐसी स्थिति में डोमेस्टिक मैन्युफैक्चरिंग को आगे बढ़ने का मौका मिला। मांग बढ़ने से आज डोमेस्टिक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में तेजी है और लकड़ी की खपत भी ज्यादा है। टिम्बर का प्लांटेशन अभी भी उस हद तक नहीं हुआ है लेकिन उद्योग इसके लिए कोशिश कर रहा है। ग्रीनपैनल ने आंध्र प्रदेश और रुद्रपुर में इसे काफी तेजी से आगे बढ़ाया है और आगे बढ़ भी रहे हैं।

सेंचुरी प्लाई भी इस दिशा में काफी काम कर रही है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, गुजरात में प्लांटेशन बढ़ रहा है। नागालैंड में भी यह इनिशिएटिव तेजी से आगे बढ़ रही है। इसका सकारात्मक असर आने वाले समय में देखने को मिलेगा। हालांकि वुड पैनल इंडस्ट्री के लिए ये भी बहुत कम हैं। जैसा कि पेपर इंडस्ट्री ने इस संबंध में आंध्र प्रदेश और उत्तराखंड में बहुत पहले ही जबरदस्त काम किया है। अब जरूरत है कि लघु उद्योगों की उपेक्षा किए बिना सभी समावेशी प्रयासों के साथ इसके लिए पर्याप्त धन आवंटित कर वुड पैनल उद्योग को भी उसी तर्ज पर आगे बढ़ाया जाए। इसके लिए इंडस्ट्री को एक फंड बनाना होगा, नर्सरी लगानी होगी और पौधों का वितरण कर इसे बढ़ावा देना होगा। ऊर्जा की आवश्यकता

टिम्बर के लॉप्स एंड टॉप्स - एमडीएफ और पार्टिकल बोर्ड के  लिए एक बुनियादी कच्चा माल, 6 रुपये तक पहुंच गया है, जलावन की लकड़ी की कीमत भी बढ़ रही है, कोयले की कम उपलब्धता ऊर्जा संकट के रूप में देखा जा रहा है, बिजली कटौती अपने चरम पर है। ऐसी स्थिति में यह उम्मीद करना बिलकुल तर्कसंगत नहीं है कि आगे भी कोयला उपलब्ध कराया जाएगा और जीवाश्म ईंधन की निरंतर आपूर्ति हमेशा बनी रहेगी। हमेशा सरकार की ओर देखना कोई समाधान नहीं है, केवल उनके ही प्रयास काफी नहीं होंगे। सार्वजनिक भागीदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। ऊर्जा संकट आज वास्तविकता है। कई पार्टिकल बोर्ड प्लांट और एमडीएफ प्लांट अपनी पूरी क्षमता से नहीं चल पा रहे हैं। वे एक शिफ्ट में चल रहे हैं। हरियाणा में एमडीएफ प्लांट के बॉयलर 12 घंटे तक ही प्रज्वलित होते हैं और प्लांट भी उतने ही समय चल रहे हैं। प्लाइवुड उद्योग के साथ-साथ लेमिनेट उद्योग में भी हर जगह ऐसी ही स्थिति है। इसका कारण ऊर्जा संकट है।

टिम्बर की सप्लाई में कमी का कोई एक कारण नहीं है जिसके चलते कीमते बढ़ रही है। अन्य खर्च भी बढ़ रहे हैं जैसे लेवर, परिवहन, पेड़ों के कटान आदि। इसलिए, कीमतें बढ़ने का कारण केवल आपूर्ति और मांग की बात नहीं है। कहीं-कहीं अन्य खर्च स्थिति को और विकराल रूप दे रही हैं। यही वजह है कि उद्योग जगत का दम घुट रहा है। हालांकि, फसल कटाई के सीजन खत्म होने के बाद पिछले 20 दिनों में ईद के त्योहारी सीजन में पेड़ों की कटाई बढ़ने से फैक्ट्रियों को टिम्बर की सप्लाई में थोड़ा सुधार हुआ है। लेकिन, अब बिजली की आपूर्ति ठप है।

उद्योग को कोई न कोई कमी लगी ही रहती है, यदि टिम्बर उपलब्ध है तो लेवर की कमी, यदि लेवर और टिम्बर उपलब्ध है तो कोई दूसरा मुद्दा जैसे इनर्जी सामने आता है, और अगर सब कुछ सही है तो बाजार में मांग की कमी और पेमेंट का संकट सबसे ऊपर रहता है। कमी इस उद्योग की नियति है, जो आज ऊर्जा (ईंधन लागत) संकट के रूप में भी देखा जा रहा है।

कीमतों में बढ़ोतरी जारी रहेगी

मेरी राय में ऊर्जा संकट और टिम्बर की कमी को देखते हुए वुड पैनल, डेकोरेटिव और इससे जुड़े उद्योग में कीमतें बढ़ने का दौर जारी रहेगा। इकोनॉमिकल ग्रेड प्लाईवुड साल के अंत तक 60 रुपये (55 रुपये से 65 रुपये तक) की कीमत को छूने की उम्मीद है क्योंकि 18 मिमी प्लाईवुड जो 40 रुपये से कम था, उसे आज 45 रुपये से 46 रुपये में भेजा जा रहा है। इसी तरह अन्य रेंज के साथ 5 रुपये प्रति वर्ग फुट का अंतर।

इसका मतलब है कि बढ़ती गुणवत्ता के साथ कीमतों में अंतर पहले की तुलना में कम है। प्रतिशत गणना में इसे प्लाईवुड की बढ़ती गुणवत्ता के साथ 10 से 3 फीसदी के बीच रखा जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उद्योग असंगठित है और उन्हें अपनी स्थिति के अनुसार चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यदि कोई उत्पाद छोटे बाजार और कम मात्रा के साथ महंगा है, तोइसकी कीमत में वृद्धि भी कम है क्योंकि उनका इनपुट कॉस्ट कम है, इसके विपरीत यदि उत्पाद सस्ता है तो उनकी इनपुट कॉस्ट ज्यादा है, इसलिए कीमतें भी बढ़ती है।

आगे यदि उपभोक्ता महंगे उत्पाद नहीं मांगते है तो ठेकेदार भी अपनी टर्नकी प्रोजेक्ट के लिए इकोनॉमिकल ग्रेड की ओर रुख करेंगे और इसकी बिक्री बढ़ेगी। इस सेगमेंट की कम्पनियाँ पहले से ही अच्छी मांग का फायदा ले रही है। यह एक साल तक जारी रहेगा, क्योंकि ये या तो अर्ध-औपचारिक, अनौपचारिक या असंगठित प्लेयर्स हैं। उन पर दबाव कम होगा और वे बढ़ती मांगका लुत्फ उठाएंगे।

इसलिए, दृढ़ता के साथ मैं यह कहना चाहूंगा कि कम कीमत वाली प्लाइवुड की मांग में वृद्धि होगी, जबकि ज्यादा कीमत वाले प्लाईवुड की कीमतों में और बढ़ोतरी होने पर आने वाले समय में थोड़ी सुस्ती दिखाई देगी। एक बात बिल्कुल साफ है कि इसका सीधा संबंध मांग से है। ऊंची कीमत वाली प्लाइवुड की मांग अचानक गिरने वाली नहीं है। पर उन्हें ट्रैक्शन हासिल करने के लिए काम करना होगा।

लकड़ी की कीमत आगे भी बढ़ेगी और बढ़ती जरूरत के चलते मुझे इसका सेचुरेशन पॉइंट 10 से 15 फीसदी उपर दिखाई दे रहा है। फिलहाल पिछले 10 से 15 दिनों में हमने जो भी नरमी देखी है, अगले पखवाड़े में हम फिर से कीमत का अगला स्तर देखेंगे। ईद के त्योहारी सीजन के कारण अप्रैल थोड़ा सुस्त था, मई 2022 के पहले पखवाड़े में फिर से बाजार में चमक आएगी और मांग बढ़ेगी।

प्लाईवुड उद्योग का भविष्य

श्री जय प्रकाश शाह प्लाईवुड के भविष्य के बारे में पूछते हैं। प्लाईवुड का भविष्य यह है कि यह वुड पैनल इंडस्ट्री के पिरामिड का आधार है और यह आधार अभी भी बरकरार है क्योंकि ऐसाकोई उत्पाद नहीं है जो प्लाईवुड की जगह ले सके। यदि कोई आता भी है, तो उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ेगा, क्योंकि भारतीय उपभोक्ता का मनोविज्ञान इसे बदलने नहीं देगा। अगले दस साल के लिए प्लाईवुड इंडस्ट्री का भविष्य उज्ज्वल रहेगा। यह मोटरसाइकिल की सवारी करने जैसा है, लेकिन कुछ समय बाद पहली बार कार चलाने से बाइक सवार को धूल, गर्मी, बारिश केपानी और प्रदूषण से सुरक्षा के कई फायदे दीखते हैं।

प्लाइवुड उद्योग वैसा ही है क्योंकि प्लाइवुड के प्लेयर्स एमडीएफ और पार्टिकल बोर्ड को फील गुड फैक्टर के साथ देखते हैं। लेकिन, ट्रैफिक जाम में जब बाइक सवार संकरे रास्ते में भी तेजी से आगे बढ़ते हैं तो कार सवार चुपचाप देखते रहते हैं। यदि हम इस दृष्टिकोण से देखें तो प्लाईवुड उद्योग एक सदाबहार उद्योगबना रहेगा। इसलिए आपको अफसोस करने के बजाय इसमें रहकर सवारी का आनंद लेना चाहिए। कई लोग प्लाईवुड इंडस्ट्री में मजे से हैं और कई जो अन्य उद्योगों में हैं वे भी व्यथित हैं।

इसलिए, ब्राइट साइन करना आपकी मानसिकता होनी चाहिए क्योंकि मुझे कोई गिरावट नहीं दिख रही है। जब तक आप अपने उत्पाद को सही उपभोक्ताओं के बीच सही प्राइस सेगमेंट में नहीं रखते और प्रयास नहीं करते, तब तक आराम करना मुश्किल है। यदि आप इकोनॉमिकल ग्रेड बेचते हैं तो आपको ब्रांड, इमेजिंग और मार्केटिंग के प्रयासों पर बिना किसी खर्च के इसकी लिमिट पर ध्यान देना चाहिए। यदि आपका उद्देश्य एक ब्रांड बनाना है, तो आपको उस पर और मार्केटिंग पर भी ध्यान देना चाहिए।

अंबिका प्लाई इंडस्ट्रीज, रामपुर के श्री जिंदल जी ने इस साल के  अंत तक कीमत के बारे में पूछा है। अगर हम फेनोलिक प्लाईवुड(पीएफ) के बारे में बात करें तो मुझे इसमें ज्यादा नहीं दिख रही है। लेकिन अगर हम प्राइस बेंचमार्क के बारे में बात करें तो मुझेअगले स्तर में 18 से 20 फीसदी की वृद्धि देखने को मिल सकतीहै। इस वित्त वर्ष में 45 रुपये का प्लाइवुड 55 रुपये और कटेगोरी के हिसाब से अन्य प्लाइवुड की कीमतें बढ़ेगी।

एमडीएफ पर लोगों का भरोसा

एमडीएफ एक हाई डिमांड वाला उत्पाद है। इस सेगमेंट में भी, हाई डेंसिटी और हाई मॉइस्चर रेजिस्टेंस कैटेगरी के एमडीएफ ने वुड पैनल इंडस्ट्री में धमाकेदार तरीके से प्रवेश किया है। पिछले डेढ़ वर्षों में यह फर्स्ट क्लास सरफेस, मजबूती और 8 से ज्यादा घनत्व वाले, वाटर रेजिस्टेंस जैसी खूबियों के साथ-साथ स्वेलिंग रेजिस्टेंस होने के चलते सभी के लिए एक प्यारा उत्पाद बन गया है। इतनी व्यापक खूबियों और व्यावहारिकता के साथ लोगों का  इसपर भरोसा है। इसने कई यूजेज और एप्लिकेशन के लिए दरवाजे खोले हैं। आज जैसा की पीवीसी लेमिनेट और एक्रेलिक शीट का चलन बढ़ता जा रहा है, जब हम इसे प्लाईवुड पर प्रेस करते हैं तो कुछ हद तक इसके उखड़ने और डिलेमिनेट होने की शिकायत मिलती है। लेकिन, जब इसे बर्च प्लाईवुड और एमडीएफपर प्रेस किया जाता है तो ऐसी शिकायतंे नहीं आती।

ेकोरेटिव सरफेस में बदलाव

ऐक्रेलिक लेमिनेट एक अच्छा उत्पाद है, अगर ठीक से संभाला जाए तो! इसके एप्लिकेशन की विकसित होती तकनीकों के साथ भारत में भी ऐक्रेलिक लेमिनेट का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। मॉड्यूलर फर्नीचर के उपकरणों और टूल्स का उपयोग होने से हाई ग्लॉस जैसे नए उत्पादों की स्वीकृति बढ़ गई है। सही सबस्ट्रेट्स की उपलब्धता इसकी मांग को बढ़ा रहे हैं।

डेकोरेटिव सरफेस में बदलाव देखे जा रहे हैं जो शटल कलर से पेस्टल कलर की ओर जा रहा है। इस सेगमेंट में डल मैट और डल कलर फोल्डर अब बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं। मैट बढ़ रहा है लेकिन एक अलग केटेगरी में। यह एंटी-फिंगर, वेलवेट, स्मूद टच, वाटर नॉन स्टिक आदि जैसे फीलिंग की ओर जा रहा है। हाल ही में एक कंपनी ने लेमिनेट सेगमेंट में हाई वैल्यू उत्पाद लॉन्च किए हैं। इन उत्पादों को रिटेलर और आर्किटेक्ट का काफी  समर्थन मिल रहा है। हालाँकि उत्पाद हाई वैल्यू का है, लेकिन सही गुणवत्ता के चलते इसकी स्वीकृति अच्छी है। इस प्रकार हमवहां बदलते रुझान को देखते हैं।

यदि हम अधिकांश नॉन-फोल्डर प्लेयर्स के डिजाइन फिलॉसफीm को देखें, तो वुड ग्रेन से धीरे धीरे सॉलिड की ओर और वुड ग्रेन से प्लेन और और बहुत ही शटल कलर की ओर बढ़ता दिखाई देता है। इनमें स्कैंडिनेवियन फील, स्कैंडिनेवियन इंटीरियर, लाइट कलर बहुत अधिक हैं। डेकोरेटिव इंडस्ट्री इस तरीके से इवॉल्व हो रही है। सभी रिटेलर जल्दी इसे स्वीकार कर अपने शोरूम में इसे प्रदर्शित करे और सेल्स पैटर्न बनाये। जैसा कि जब वे हाइलाइटर्स लाते हैं तो इसे देखने के लिए अपने ग्राहक को कॉल करते है और इस तरह बिक्री बढ़ती है। आज जब आप एप्लिकेशन का मॉक-अप बनाते हैं तो बिक्री में मदद मिलती है। यह रिटेलसेगमेंट का बदलता ट्रेंड है।

लेमिनेट का प्राइस मैकेनिजम

आज जब हम प्लाईवुड की बात करते हैं तो कहते है कीमतें बढ़ गई हैं। एमडीएफ में पिछले डेढ़ महीने से कीमतों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। लेकिन, मैं निश्चित रूप से देखता सकता हूं कि अगर ऊर्जा संकट बरकरार रहता है तो बढ़ना तय है। लेमिनेट सेगमेंट में एक ट्विस्ट है क्योंकि फरवरी में यूक्रेन युद्ध के बाद कीमतें बहुत तेजी से बढ़ीं थी। इस सेगमेंट में लगातार दो बार कीमतें बढ़ी। संगठित प्लेयर्स ने इसे स्वीकार तो करा लिया लेकिन असंगठित प्लेयर्स दूसरी बढ़त के क्रियान्वयन के मामले में तेजी से आगे नहीं बढ़े। इस बीच मेलामाइन की कीमत में नरमी आई और क्राफ्ट में भी थोड़ी गिरावट आई, शायद यही वजह थी कि उन्होंने कीमत को उस स्तर पर ही रखा।

लेकिन, अगर हम एनर्जी कॉस्ट, ट्रांसपोर्ट और लेवर कॉस्ट तथा डेकोरेटिव पेपर जैसे अन्य खर्चों को शामिल करते हैं तो देर-सबेर वे भी कीमत बढ़ाने को मजबूर होंगे। अब तक अप्रैल के बाद से बिक्री में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं देखी गई थी, कीमतें होल्ड थीं, लेकिन आने वाले समय में बढ़ती लागत के चलते लेमिनेट इंडस्ट्रीदबाव में रखेगी या कीमतों में और बढ़ोतरी करेगी। यदि कीमतें उनके बीच सबसे जयादा चर्चा का विषय है तो उद्योग नहीं बढ़ सकती है। उद्योग में मूल्य वृद्धि को लाभ कमाने के तंत्र के रूप में और कभी-कभी मजबूरी में देखा जाता है। उद्योग में हर कोई लाभ चाहता है लेकिन अगर इसे दूसरों को दबाकर हासिल किया जाता है, तो कीमत कभी नहीं टिकेगी और बाद में व्यापार भी प्रतिस्पर्धा में अपनी जमीन खो देगा और आपका फायदा अंततः घट जाएगा। ट्रेड को बिना कोई अंडर कटिंग किये एक प्लेटफॉर्म पर एक-दूसरे की मदद करते हुए आगे बढ़ना चाहिए।

श्री आशीष गुप्ता, प्रीमियर प्लायलम मार्केटिंग कंपनी, जयपुर, राजस्थान के लकड़ी के प्लाईवुड, ब्लॉक बोर्ड और डेकोरेटिव लेमिनेट्स और डोर स्किन के वितरक/चौनल पार्टनर हैं उन्होंने पूछा कि क्या जीएसटी 28 फीसदी तक बढ़ जाएगा? यह एक बड़ा खतरा है, लेकिन मुझे लगता है कि सरकार 28 फीसदी की ओर नहीं बढ़ेगी क्योंकि इससे उनका उद्देश्य पुरा नहीं होगा, क्योंकि मुद्रास्फीति पहले से ही अधिक है, इस तरह के कदम उनके लिए बहुत हानिकारक होंगे। अगर ऐसा किया जाता है तो मांग गिर जाएगी।

जब तक इस बात के पुख्ता सबूत नहीं हो कि सरकार इस दिशा में आगे बढ़ रही है, मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता। फिर भी मुझे लगता है कि आने वाले समय में इसमें कमी आएगी। जैसे-जैसे टैक्स बेस बढ़ेगा टैक्स कलेक्शन बढ़ेगा, न की कलेक्शन कम करने के लिए सरकार जीएसटी बढ़ाएगी। कुल मिलाकर वुड पैनल और डेकोरेटिव इंडस्ट्री के उत्पादों की कीमत में काफी ज्यादा उतार-चढ़ाव होगा।

फोल्डर की कीमत तय करने का सुझाव

श्री आशीष ‘फोल्डर की लागत‘ के बारे में भी पूछते रहते हैं। और जानना चाहते है क्या इसका कोई उपाय है? मेरा कहना है बड़ी कंपनियों में बिना कीमत दिए कोई फोल्डर नहीं मिलता है। यदि डीलर/रिटेलर कोई फोल्डर रखना चाहते हैं तो उन्हें वितरकों को इसके लिए भुगतान करना होता है। उन्हें ब्रांडेड प्लेयर्स से फोल्डर देने से पहले दो बार सोचना पड़ता है, क्योंकि इसके लिए उन्हें पैसे देने पड़ते हैं। लोग फोल्डर को लेकर जागरूक हो रहे हैं। चाहे 0.8 एमएम का हो या 1एमएम का हो, कंपनी को एक फोल्डर के लिए 3000 रुपये की कीमत वसूल करनी चाहिए। चूंकि कागज की कीमत में काफी अधिक वृद्धि हुई है साथ ही लैमिनेट के सैंपल, इसे डिजाईन कराना और रिटेलर को पहुंचने के लिए ट्रांसपोर्ट में भेजने पर इसकी लागत काफी बढ़ जाती है।

मैं लैमिनेट कंपनियों को इसके लिए एक कीमत तय करने का सुझाव देना चाहूंगा चाहे वह 2000 रुपये से कम ही क्यों न हो, और इसे देने के लिए सीएन या किसी योजना के अंतर्गत भी सूचीबद्ध कर सकते हैं, लेकिन इसका एक वैल्यू क्रिटेरिया अवश्य होना चाहिए। अगर इसकी कीमत 1000 रुपये से कम होती तो आप इसे एक सैंपल मान सकते थे। लेकिन, जिस तरह से कीमतें बढ़ी हैं, फोल्डरों का मूल्य निर्धारण के चलते काफी गंभीर चर्चा का विषय बन गया है और निश्चित रूप से एसोसिएशन को चाहे वह वितरकों का हो या इल्मा जैसे निकाय को इस पर ध्यान देना चाहिए और सिस्टम में किमतें और किसी प्रक्रिया को शामिल करइसे आगे बढ़ाना चाहिए।

ये बातें व्यापारियों/डीलरों को नाराज कर सकता है क्योंकि मुफ्त की यात्रा करने वालों के लिए पहली बार भाड़ा देकर यात्रा करने पर तकलीफ होती है। गांवों में खुले तारों को पिन करके बिजली का उपयोग एक सामान्य घटना थी, लेकिन अब परिदृश्य बदल गया है और अब बिजली के उपयोग के लिए मीटर लगाना जरूरी है। लेमिनेट उद्योग में भी ऐसा ही कुछ मैकेनिजम लागू किया जाना चाहिए तभी फोल्डर को सम्मान मिलेगा और वितरकों को फोल्डर को सम्मानपूर्वक वितरित करने में आसानी होगी। इसके साथ ही सेल्स प्रोफेशनल्स को इसके वैल्यू के साथ इसे अपने साथ ले जाने में गर्व महसूस होगा। फोल्डर की कीमत उपभोक्ताओं से ली जा सकती है।

आरबीआई के बयान और भारतीय अर्थव्यवस्था अगर पूरे वुड पैनल और डेकोरेटिव इंडस्ट्री और ट्रेड की बात करें
तो मई बेहतर रहने वाला है। चिंता की बात यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर जारी आरबीआई के बयान में कहा गया है कि कोविड के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है और अगर हम आर्थिक परिदृश्य के कोविड के पहले के स्तर को छूना चाहते हैं तो इसमें 2035 तक का समय लगेगा। एक बड़ा झटका है। अगर आरबीआई जैसा कोई संगठन कहता है कि कोविड ने हमें इतना पीछे कर दिया है जिसे कवर करने में 13 वर्ष लग जाएंगे, तो यह एक चिंता का विषय है।

उच्च आय वर्ग की आमदनी और खर्च के साथ उनके बीच मांग अच्छी है लेकिन समाज का निचला वर्ग मुद्रास्फीति से बहुत परेशांन है और उनकी खर्च करने की क्षमता कम हो रही है। इसका असर बाद में दिखेगा। लेकिन, मई अच्छा रहेगा क्योंकि अप्रैल धीमा था। लेमिनेट उद्योग में आने वाले समय में गहरा बदलाव देखने को मिलने वाला है। क्षमता के मामले में बड़े प्लेयर बड़े हो रहे हैं और छोटे प्लेयर भी बड़े हो रहे हैं। तो क्या बाजार का इतना विस्तार हो रहा है? अगले एपिसोड में हम इसी पर चर्चा करेंगे।

मई 2022 के अंत तक शुरू होने वाले प्लाई रिपोर्टर के क्वेश्चन-आंसर सेशन के लिए अपने प्रश्न भेजते रहें।

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