प्लाइवुड उद्योगों में वर्तमान में प्लाइवुड मैन्युफैक्चरिंग में इनोवेशन खास तौर पर उत्पादकता बढ़ाने और लागत कम करने के लिए किये जा रहे हैं। इनमें से एक है, मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस के दौरान विनियर ड्राइंग में इनोवेशन। आज ड्राइंग थुरूपुट को बढ़ाने की आवश्यकता ताकि उत्पाद की क्वालिटी बढ़ाई जा सके। और ओवर ड्राइंग के कारण डी-ग्रेड को कम किया जा सके। इसके चलते हाई विनियर मॉइस्चर कंटेंट वाले विनियर के लिए एडहेसिव टोलेरेंस का विकास किया गया है।
वर्तमान में उपयोग किए जाने वाले यूरिया फॉर्मल्डिहाईड एडहेसिव 0 फीसदी से 6 फीसदी नमी वाले सूखे विनियर को चिपकाने के लिए ठीक ठाक हैं, पर वे 10 फीसदी या उससे ज्यादा नमी वाले गीले विनियर में मजबूती से काम नहीं कर पाता। 10 फीसदी या उससे ज्यादा नमी वाले गीले विनियर की हॉट प्रेसिंग पर फफोले विकसित होते हैं, या यहां तक कि तापमान की सामान्य परिस्थितियों मे प्लाईवुड बनाने के दौरान लगे टाइम मे बॉन्डिंग बनाने में पूर्ण विफलता भी हो जाती है। प्लाईवुड बनाने में, यदि विनियर में नमी की मात्रा अधिक है, जैसे 10 फीसदी या ज्यादा तो विनियर में ज्यादा एडहेसिव चले जाने से बॉन्ड की क्वालिटी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
विनियर-बेस्ड प्रोडक्ट को एडहेसिव की प्रक्रिया में, चूंकि प्लाईवुड एडहेसिव के मौजूद पानी के साथ साथ लकड़ी में नमी की मात्रा से काफी प्रभावित होता है। यह नमी उपयोग किए गए एडहेसिव की क्योरिंग प्रक्रिया और गुणो आर्थिक लागत (ग्लू की खपत, प्रेसिंग टाइम और विनियर सुखाने की लागत) के साथ-साथ विनियर-बेस्ड उत्पादों के भौतिक और यांत्रिक गुणों को सीधे प्रभावित करती है। आजकल भारत में प्लाईवुड बनाने मे विनियर में आम तौर पर यूरिया-फॉर्मेल्डिहाईड रेजिन बेस्ड एडहेसिव का उपयोग किया जाता है जिसे 4 से 6 फीसदी नमी की मात्रा तक सुखाया जाना चाहिए। इस तरह की नमी की मात्रा के लिए पारंपरिक थर्मो-रिएक्टिव एडहेसिव की भौतिक और यांत्रिक गुणों के कारण प्लाईवुड में हाई क्वालिटी बॉन्डिंग प्रदान करते हैं जो भारतीय मानक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
प्लाईवुड बनाने के दौरान लगे टाइम मे बॉन्डिंग बनाने में पूर्ण विफलता भी हो जाती है। प्लाईवुड बनाने में, यदि विनियर में नमी की मात्रा अधिक है, जैसे 10 फीसदी या ज्यादा तो विनियर में ज्यादा एडहेसिव चले जाने से बॉन्ड की क्वालिटी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
विनियर द्वारा गोंद की ज्यादा मात्रा अवशोषित किये जाने के कारण प्लाइवुड का इनपुट कॉस्ट बढ़ जाता है। यदि नमी की मात्रा जरूरत के अनुसार है तो विनियर की कोशिका भित्ति निष्क्रिय नहीं होती है और इसमें कुछ नमी रहती है जिससे ग्लू के लिए बेहतर फ्लो टाइम मिलता है इसलिए खपत कम होती है। इसके अलावा, प्लाईवुड बनाने की प्रक्रिया विनियर ड्राइंग (लगभग 50 फीसदी) और हॉट प्रेसिंग (10 फीसदी) के लिए महत्वपूर्ण ऊर्जा लागत में कमी है, जो उत्पादन की लागत को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। इसलिए, हाई मॉइस्चर कंटेंट वाले विनियर का उपयोग करने से ऊर्जा की पर्याप्त में बचत होगी। प्लाइवुड को वांछित ताकत प्रदान करने के लिए 15 फीसदी तक मॉइस्चर कंटेंट वाले विनियर को एडहेसिव के साथ उपयोग कर प्लाई बोर्ड का निर्माण करने के लिए रेजिन को संशोधित कराना या एडिटिव तकनीक का उपयोग करना आवश्यक है।