उत्तर भारत में टिम्बर की कीमत पिछले सप्ताह से फिर से बढ़ रही है। यूपी में सफेदा लॉग की कीमत 850 रुपये प्रति क्विंटल से शुरू होकर अब तक 1000 रुपये प्रति क्विंटल को पार कर गई है। प्लाई रिपोर्टर के अध्ययन से संकेत मिलता है कि जून के दूसरे पखवाड़े की शुरुआत से ही, यूपी, पंजाब, यमुनानगर और हरियाणा में टिम्बर की कीमतें बढ़ रही हैं। पंजाब और हरियाणा में कीमतें यूपी में टिम्बर की कीमतों में हुई बढ़ोतरी से भी ज्यादा हैं।
गौरतलब है कि गुजरात प्लाइवुड एंड विनियर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (जीपीवीएमए) की 18 जून, 2023 को हुई बैठक में कच्चे माल की कमी और इसके ऊंचे रेट तथा बढ़ते लेवर कॉस्ट और अन्य ऑपरेटिंग कॉस्ट के कारण ब्लॉक बोर्ड, प्लाइवुड और फ्लश डोर की कीमत तत्काल प्रभाव से 5 फीसदी बढ़ाने की घोषणा की गई। एसोसिएशन के अधिकारीयों ने कहा ऐसी कठिन परिस्थिति में उद्योगों का सर्वाइव करना मुश्किल है। उन्होंने पत्र लिखकर सभी डीलरों से अनुरोध किया कि उद्योग की बेहतरी के लिए निर्णय का सम्मान करें। इसी तरह बरेली स्थित वुड पैनल प्रोडक्ट मैन्युफैक्चरर्स ने भी अपने उत्पाद के दाम बढ़ा दिए हैं।
आशंका है कि अगले महीने टिम्बर की कीमत में 15 से 20 फीसदी की और बढ़ोतरी होगी, क्योंकि बरसात के मौसम में फसल बुआई की शुरुआत के चलते औद्योगिक क्षेत्र में लेवर की कमी पैदा हो जाती है और टिम्बर की सप्लाई में दिक्क्तें सामने आती है। साथ ही बारिश के कारण लकड़ी काटने की प्रक्रिया भी धीमी हो जाती है। आपूर्ति बाधित होने के कारण लकड़ी की कीमतें अनिश्चितता के घेरे में चली जाती हैं।
आगामी श्रावण मास में, उत्तरी क्षेत्र में कावर यात्रा और अन्य चीजों से उत्पन्न होने वाली बाधाओं के कारण भी लकड़ी की आपूर्ति नियंत्रण में नहीं रहेगी। और इन मुश्किलों का सामना वुड पैनल निर्माताओं को करना पड़ेगा। यद्यपि मैन्युफैक्चरिंग प्लांट में टिम्बर की मांग दिन व् दिन बढ़ रही है, पर यमुनानगर में कई फैक्ट्रियों में टिंबर की भारी कमी देखी गई है।
टिम्बर की आवक इतनी कम है कि कई फैक्ट्रियां चल नहीं पा रहे हैं, या दिन में सिर्फ चार घंटे चल रहे हैं, जिसके कारण वे अपना उत्पादन बंद कर रहे हैं। उम्मीद है कि इस साल के अंत तक लकड़ी की कमी दूर हो जाएगी। तब तक, फैक्ट्रियां उचित कीमत तय करने के लिए जमीन तलाश रही हैं।
एक तरफ भारत में टिम्बर की कीमत बढ़ रही है तो दूसरी तरफ समुद्री माल भाड़ा कम हो रहा है, जिससे इम्पोर्टेड प्लाइवुड की कीमतें घट रही हैं और आयात बढ़ रहा है। उद्योग की गतिविधियां तैयार माल की कीमतों में और बढ़ोत्तरी पर नजर रखे हए है जिससे निर्माताओं का दम घुट रहा है। उम्मीद है कि प्लाइवुड मैन्युफैक्चरिंग के साथ-साथ बाजार में संतुलन बनाए रखने के लिए अगले तीन महीने कठिनाई भरे होंगे।