नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष के जनवरी से अगस्त तक भारत में भेजे गए अमेरिकी हार्डवुड टिम्बर में 196 प्रतिशत की वृद्धि के साथ मात्रा 2,842 क्यूबिक मीटर और मूल्य 96 प्रतिशत बढ़कर 1.65 मिलियन अमरिकी डॉलर हो गई। इस अवधि के दौरान भेजे गए वॉल्यूम का एक तिहाई के करीब रेड ओक द्व ारा हिसाब लगाया गया था, जिसे 2018 में भारत में बिल्कुल भी नहीं भेजा गया था। अमेरिकी वाॅलनट के निर्यात की मात्रा और मूल्य में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई (88 प्रतिशत और 117 प्रतिशत ), ह्वाइट ओक (14 प्रतिशत और 44 प्रतिशत), हिकरी (131 प्रतिशत और 42 प्रतिशत) और मेपल (39 प्रतिशत और 32 प्रतिशत)। इसके अलावा, उसी समय अवधि में भारत को निर्यात किए गए अमेरिकी हार्डवुड विनियर का कुल मूल्य 2018 की तुलना में 19 प्रतिशत बढ़कर 2.94 मिलियन डाॅलर था।
एएचईसीके निदेशक रोडरिक विल्स ने कहा कि परंपरागत रूप से एक उष्णकटिबंधीय हार्डवुड का बाजार, गैबॉन, म्यांमार, मलेशिया और अन्य उष्णकटिबंधीय देशों में लॉग के निर्यात पर प्रतिबंधों ने भारतीय निर्माताओं को वैकल्पिक लकड़ी की सप्लाई के स्रोतों की तलाश करने के लिए मजबूर किया है। अतीत में, एक अनुकूल टैरिफ संरचना ने लॉग आयात का साथ दिया है, लेकिन घरेलू सॉ मिल द्वारा प्रसंस्करण के खराब/अपर्याप्त स्तर ने भारतीय व्यापार को हाल के वर्षों में अधिक मात्रा में लकड़ी आयात करने के लिए प्रेरित किया है।
हालांकि अमेरिकी हार्डवुड लकड़ी उत्पादों का निर्यात भारत में जारी है, भारतीय बाजार में अभी भी जागरूकता और शिक्षा की कमी है, और खपत के कई हब निर्यात को सीमित करते हैं। बाजार में अमेरिकी हार्डवुड की छोटी हिस्सेदारी का एक विशेष कारण अमेरिकी प्रजातियों (ग्रेड, आकार, अंत-उपयोग और अप्लीकेशन) के बारे में भारत में जानकारी की कमी है। परिण् ाामस्वरूप, उच्च मूल्य-संवेदनशील भारतीय आयात और निर्माता अन्य देशों से वैकल्पिक प्रजातियों पर बहुत जल्दी स्विच करते है, क्योंकि वे गुणवत्ता में अंतर को नहीं समझते हैं।