किसी ने सोचा नहीं होगा कि भारत के वुड पैनल और प्लाइवुड सेक्टर के लिए तकनीक, रिसर्च, तकनीक मैनपाॅवर देने वाला इकलौता संस्थान बंगलोर स्थित इंडियन प्लाइवुड इंडस्ट्रीज रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट बंद भी हो सकता है, लेकिन हाल ही में केन्द्रीय वित्त मंत्रालय के अंतर्गत खर्च से संबधित काम करने वाले विभाग ने जो अनुषंसा सरकार को भेजा है, इससे साफ जाहिर होता है कि 3-4 सालों में सरकार इर्पिति जैसी और कई संस्थानों को सहयोग देना बंद कर देगी।
वित्त विभाग ने इस बाबत वन और पर्यावरण मंत्रालय को भी रिपोर्ट की काॅपी सौपी है। रिपार्ट में सुझाव दिया गया है कि या तो संस्थान अपना खर्च खुद उस इंडस्ट्री से निकालें, जिस सेक्टर के लिए वो काम कर रहें हैं, या एक स्वायत संस्थान की तरह काम करें, या संबंधित इंडस्ट्री को वैसे संस्थान का खर्च मिलकर उठाना होगा। रिपार्ट में फेज वाइज ऐसे संस्थानों के बजट खर्च को घटाने की बात कही गई है।
हालांकि ये अभी अनुषंसा है, और अभी लागू नहीं हुआ है, लेकिन ये बात तय है कि सरकार अपने बोझ को कम करने के लिए ऐसे कदम ले सकती है। वैसे में तकरीबन 40 हजार करोड़ रू के वुड व पैनल सेक्टर को फौरी तौर पर कोई कदम जरूर उठाना चाहिए, ताकि इस सेक्टर के इकलौते तकनीक संस्थान को बचाने के लिए सालाना कम से कम 10 करोड़ रू का इंतजाम हो सके। हालांकि उद्योग से जुड़े एसोसिएषन, इर्पिति स्टाॅफ एसोसिएषन, समेत कई पर्यावरणविद्, वुड सेक्टर के वैज्ञानिक और टेक्नाॅक्रेट ने इस सिफारिष पर चिंता जाहिर की है, और इर्पिति को बचाने के लिए कदम उठाने की जरूरत बताई है।
प्लाई रिपोर्टर के अगले अंक में इस विशय पर विस्तृत रिपार्ट प्रस्तुत है। प्लाई रिपोर्टर भी इस संस्थान को बचाने के लिए हर संभव कोषिष करेगा। अपनी रिपार्ट के जरिए वुड सेक्टर के लिए इर्पिति के महत्व को रेखांकित किया जाएगा। सरकार को सुझाव भी भेजें जाऐंगे।