कई दिनों से जारी किसान आंदोलन के कारण पंजाब, हरियाणा को भारत के शेष हिस्सों को जोड़ने वाले विभिन्न राष्ट्रीय राजमार्गों पर वाहन की आवाजाही में अवरोध हैं जिसके चलते प्लाइवुड्, डेकोरेटिव लैमिनेट और अन्य वुड पैनल उत्पादों की आपूर्ति में देरी और परेशानी हो रही है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पंजाब और हरियाणा से गुजरते समय ट्रांजिट टाइम बढ़ने के कारण ट्रांसपोर्टरों ने लॉरी की कीमत अधिक लगानी शुरू कर दी है। कहा जा रहा है कि कुछ ट्रांसपोर्टर मेटेरियल की बुकिंग कर रहे हैं, लेकिन वे इसके लिए ज्यादा पैसा ले रहे हैं क्योंकि उन्हें अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए लंबा रास्ता तय करना पड़ता है। यमुनानगर स्थित प्लाइवुड इंडस्ट्री से प्राप्त जानकारी के अनुसार मेटेरियल सप्लाई पहले की तरह सुचारू नहीं है और आगमन की काफी अनिश्चितता है। इसलिए, वे ज्यादा लागत के कारण मेटेरियल तुरंत भेजने को कह रहे हैं।
हरियाणा और पंजाब, भारतीय बाजार के लिए प्लाइवुड और डोर के प्रमुख सप्लायर हैं, जिनका लगभग 45 फीसदी बाजार हिस्सेदारी हैं, लेकिन चल रहे गतिरोध फ्लो ऑफ सप्लाई में बाधा बन गई हैं। फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री FICCI कन्फेडरेशन ऑफ माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज CMSME ने इसके चलते उद्योग की स्थिति पर चिंता जताई है।
FICCI-CMSME के अध्यक्ष और संस्थापक तथा सीईओ आर नारायण ने चिंता व्यक्त की क्योंकि इसके चलते जारी आर्थिक सुधार की प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ सकता हैं। आंदोलन और संबंधित अवरोधों के परिणामस्वरूप, समय और धन की हानि हो रही है जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव छोटे और मध्यम उद्योगों पर पड़ रहे हैं क्योकि वे अपनी आपूर्ति श्रृंखला का संचालन सामान्य तरीके से बनाए रखने में सक्षम नहीं हैं। यहां तक कि श्रमिकों की आवाजाही और लोगों की भावना भी प्रभावित हो रही है।
एसोचैम का अनुमान है कि आंदोलन के चलते वैल्यू चेन और परिवहन में व्यवधान से क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में प्रतिदिन 3,000-रु 3,500 करोड़ का नुकसान हो रहा है। एसोचैम के अध्यक्ष निरंजन हीरानंदानी ने कहा कि पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की संयुक्त अर्थव्यवस्था लगभग 18 लाख करोड़ रुपये है। किसानों के आंदोलन के चलते सड़कों, टोल प्लाजा और रेलवे की नाकेबंदी से आर्थिक गतिविधियां ठप हो गई हैं।