श्री नरेश तिवारी के नेतृत्व में एक प्लाइवुड मैन्युफैक्चरर्स ग्रुप, पंजाब में प्लाइवुड और इससे जुड़े अन्य उद्योग के लिए अलग क्षेत्र निर्धारित करने के लिए कई सालों से प्रयाशरत था, ताकि ये उद्योग सम्मलित रूप से काम कर सकें। इस पहल से, वहां लगी यूनिट की आॅपरेशनल काॅस्ट में कमी आएगी और सभी को विकसित सुविधाओं के साथ सरकार द्वारा इंसेंटिव भी मिल सकेगा। पंजाब में प्लाइवुड पार्क की घोषणा के बाद ऐसी पहल और अवधारणा के विरोध में आवाजें भी उठी है। इसके पीछे यह तर्क दिया गया कि इससे ओवर सप्लाई के कारण प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ जाएगी और कीमतें तेजी से घट जाएगी। प्लाई रिपोर्टर ने एआईपीएमए के अध्यक्ष, श्री नरेश तिवारी से इस मामले पर बात कर विस्तार से उनके विचार जानने का प्रयाश किया। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश।
प्र.पंजाब के होशियारपुर में ‘प्लाइवुड पार्क’ के लिए आपके प्रयास से प्लांट की संख्या अनावश्यक रूप से बढ़ने और इसके चलते प्रतिस्पर्धा और टिम्बर महंगे होने के डर से विरोध किया जा रहा है, इसके बारे में आपकी क्या राय है?
सरकार 400 एकड़ भूमि में प्लाइवुड पार्क बनाने की योजना बना रही थी। उनके प्रयाश को देखते हुए होशियारपुर में हमने 60 एकड़ भूमि में प्लाइवुड पार्क स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है, जिसमें हम सभी सुविधाएं जैसे सामान्य सिवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) की सुविधा, जो औद्योगिक अपशिष्ट जल के उपचार व् सुरक्षित निपटान तथा इसके पुनः उपयोग के लिए एक प्रोसेस डिजाइन है, जिसे हम सार्वजानिक रूप से प्रदान करेंगे। साथ ही पर्यावरण, सड़कों आदि के अलावा, एक सामान्य जल आपूर्ति प्रणाली भी स्थापित की जाएगी। एसटीपी, ईटीपी, बिजली उत्पादन जैसी सार्वजानिक सुविधाएं फैक्ट्री ऑपरेशन कॉस्ट कम कर देंगी। इन दिनों स्थानीय लोग ग्रामीण क्षेत्र में कारखानों को स्थापित करने से रोकने के लिए समस्याएँ पैदा कर रहे हैं, इसलिए होशियारपुर स्थित कुछ कारखानें अपने काम का विस्तार नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए उन्हें इस प्लाइवुड पार्क से फायदा होगा साथ ही सभी सुविधायें मिलेगी और सरकार द्वारा इंसेंटिव भी मिल पाएगी। वास्तव में इससे पूरे उद्योग को फायदा होगा क्यांेकि इससे काम सरलता से हो सकेगी। यह छोटा प्लाईवुड पार्क वास्तव में कीमतें घटाने और प्लाइवुड की कीमत एमडीएफ तथा पार्टिकल बोर्ड के कीमतों के सामानांतर लाने के लिए पायलट प्रोजेक्ट है। मेरा कहना है कि सभी राज्यों में सभी उद्योग समूहों को इस तरह की कार्य प्रणाली अपनानी चाहिए।
प्र.क्या इसका मतलब यह है कि इन फैक्ट्रियों के लिए और लाइसेंस दिए जाएंगे?
इस पार्क क े लिए हम आ ैर लाइस े ंस नही ं चाहत े ह ै ं। वास्तव म े ं सरकार लाइस े ंस तभी इश ू करती ह ै जब वह राज्या े ं म े ं टिम्बर की उपलब्धता का विश्ल ेषण करती ह ै। हम यह नही ं कर सकत े ना ही इसक े लिए प ूछ सकत े ह ै ं। नियम सभी जानत े ह ै ं कि जबतक व ैज्ञानिक डाटा क े प्रमाण क े साथ टिम्बर की पर्या प्त उपलब्धता नही ं हा ेती, लाइस े ंस इश ू करन े का सवाल ही नही ं उठता। इसलिए, लाइस े ंस प ुरान े हा े ंग े पर प्ला ंट नए, सार्व जानिक आ ैर स ुविधा सम्पन्न हा े ंग े, जिसस े काम त ेजी स े हा ेगा आ ैर कीमत े ं घट ेगी। इस प्रा ेज ेक्ट म े ं हम एसएर्मइ क्लस्टर का फायदा भी नही ं ल े रह े ह ै ं। यदि यह अवधारणा सफल हा ेगी ता े ला ेग इसका अन ुसरण कर े ंग े आ ैर हम विकास कर े ं ग े। इसक े अलावा हमन े प ंजाब सरकार स े यह दरख्वास्त भी किया ह ै कि उद्या ेगा े ं का सम ूह बनाया जाए, क्या े ंकि इसस े ग ्राहक आकर्षि त हा ेत े ह ै।
प्र.इससे टिम्बर की उपलब्धता कैसे प्रभावित होगी?
सबसे बड़ा फायदा कच्चे माल की उपलब्धता का होगा। अलग-अलग स्थानों में फैले व्यक्तिगत कारखाने खरीदारों के साथ-साथ कच्चे माल के सप्लायर को भी आकर्षित नहीं कर पाते हैं। यमुनानगर प्लाइवुड उद्योग का एक सफल केंद्र है क्योंकि यहां दोनांे आकर्षित होते है। हम उत्पादन की लागत को कम कर बाजार के बदलते परिदृश्य में प्रतिस्पर्धा करने के लिए सार्वजानिक सुविधाओं के साथ इस तरह के क्लस्टर का निर्माण करना चाहते हैं।
प्र.यदि उत्तर प्रदेश में ऐसा ही होगा तो क्या असर होगा?
एनजीटी के आदेश और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश पूरे भारत में लागू हैं। यहां भी हम उसी सरकारी नियमों के तहत कार्य करते हैं, जब अधिकारी पहले टिम्बर की उपलब्धता की गणना करते हैं इसके बिना नए लाइसेंस जारी करना संभव नहीं है। हम एनजीटी के फैसले का पालन करेंगे, जिसमें यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि लकड़ी की उपलब्धता के बिना नए लाइसेंस नहीं जारी किये जा सकते। हम सभी जानते हैं कि इसके आधार पर, यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से मुकदमा वापस लेना पड़ा।
प्र.अगर सरकार एमडीएफ और पार्टिकल बोर्ड पर नए लाइसेंस देती है, तो क्या यह छोटे प्लाइवुड उत्पादकों को प्रभावित करेगा? यदि एक सॉ मिल को लाइसेंस नहीं दिया गया, तो एमडीएफ और पार्टिकल बोर्ड इकाइयों को लाइसेंस कैसे दिया जा सकता है?
एमडीएफ और पार्टिकल बोर्ड उद्योग भी वुड बेस्ड इंडस्ट्री हैं, इसलिए एनजीटी का आदेश उन पर भी लागू होता है, और उन्हें क्षमता वृद्धि के लिए भी लाइसेंस नहीं दिया जाना चाहिए। ऑल इंडिया प्लाइवुड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एआईपीएमए) को वुड पैनल उद्योगों के एमडीएफ और पार्टिकल बोर्ड सेगमेंट के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए खुद को मजबूत करना होगा और इसके लिए जल्द ही हमें बाजार में फेसलेस प्लाइवुड और कैलिब्रेटेड प्लाइवुड लाना होगा। इस तरीके से हम बाजार के हमारे हिस्से को खाने के लिए तैयार एमडीएफ और पार्टिकल बोर्ड सेगमेंट को रोक सकते हैं।
प्र.एआईपीएमए के अध्यक्ष के रूप में, प्लाइवुड इंडस्ट्री के लिए आपका क्या संदेश है?
हमें एकजुट होना चाहिए। एमडीएफ और पार्टिकल बोर्ड्स की प्लाइवुड सेगमेंट के बाजार में बढ़ती पैठ के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए एक साथ खड़ा होना चाहिए। हमें इनोवेटिव होना होगा, और कई नई चीजों को लागू करना होगा, साथ ही चुनौतियों से लड़ना होगा क्योंकि भारतीय घरों और वातावरण के लिए प्लाइवुड सबसे उपयुक्त उत्पाद है। मूल रूप से, प्लाइवुड किसी अन्य उत्पाद के अप्लीकेशन जैसे विनियर, माइका आदि के उपयोग के लिए कोर मेटेरियल है। यदि हम फेस की लागत कम करते हैं, तो यह एमडीएफ की कीमत के बराबर होगी। प्लाइवुड एमडीएफ से ज्यादा मजबूत है और इसमें नेल होल्डिंग भी बेहतर है। यदि कीमत समानांतर होगी तो ओईएम अपने उपयोग के लिए प्लाइवुड को प्राथमिकता देंगे। एमडीएफ और पार्टिकल बोर्ड फेसलेस उत्पाद है और उनके साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए हमें फेसलेस प्लाइवुड भी लाना चाहिए।