फरवरी महीने में मेलामाइन की कीमतों में जोरदार बढ़ोतरी देखी गई थी।m महज दो महीने में कीमतें लगभग दोगुनी हो गई हैं। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक, मेलामाइन की कीमतें 200 रूपए तक पहुंच गई है, जो कि अब तक का सबसे उच्च स्तर है। इसके चलते इसके उपयोगकर्ता यानी मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री सदमे में है क्योंकि उन्होंने अब तक न तो ऐसा देखा है और न कभी मेलामाइन में इतनी तेज उछाल की उम्मीद की थी।प्लाई रिपोर्टर से बात करते हुए सुनीता कमर्शियल्स प्राइवेट लिमिटेड के श्री अशोक सर्राफ ने कहा कि अगस्त से फरवरी तक अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मेलामाइन की कीमत में 100 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है क्योंकि यूरोप और चीन में मेलामाइन की मांग काफी ज्यादा है और सप्लाई चेन में व्यवधान, समुद्र माल भाड़े में वृद्धि के कारण सप्लाई मांग से कम है।
उन्होंने कहा कि सभी कच्चे माल की कीमतें दुनिया भर में बढ़ रही हैं तो मांग को पूरा करने के लिए उद्योग को उत्पाद की कीमतों में वृद्धि करनी होगी ताकि और अधिक सप्लाई संभव हो सके। कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान सितंबर तक उत्पाद की कीमतें अवास्तविक थीं, क्योंकि यह अधिकांश कच्चे माल की लागत से कम था। उनको निकट भविष्य में कीमतें स्थिरता होने की उम्मीद की है।
गौरतलब है कि भारत में मेलामाइन के कुल खपत का लगभग 60 से 70 प्रतिशत एचपीएल और वुड पैनल इंडस्ट्री में होता है। चूँकि यह प्रमुख सेगमेंट है इसलिए लेमिनेट उत्पादक मेटेरियल की अनुपलब्धता के साथ-साथ कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि के कारण अधिक प्रभावित हैं। रिपोर्ट के अनुसार, मेलामाइन की कमी और ऊंची कीमत के चलते कई लेमिनेट उत्पादक अपनी उत्पादन क्षमता घटाने को मजबूर हंै। लाइनर लेमिनेट की इकाइयां कच्चे माल के मोर्चे पर बाजार की स्थिति अत्याध् िाक अस्थिर होने से उत्पादन की उम्मीद छोड़ दी है।
मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां एकता की कमी और बाजार में कीमत वृद्धि को पास ऑन करने की असमर्थता की शिकायत कर रही हैं। लेमिनेट, प्लाइवुड और डेकोरेटिव विनियर में शायद ही कुछ निर्माता हैं जो तत्काल प्रभाव से कीमतें पारित करने में सक्षम हैं। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए, कच्चे माल की लड़ाई लंबी प्रतीत हो रही है और यदि बाजार तैयार उत्पादों की निर्बाध सप्लाई चाहती है, तो आवश्यक मूल्य वृद्धि करनी होगी।