भारत में फ्लेक्सिबल प्लाइवुड की मांग काफी हद तक आयात से पूरी होती है। फ्लेक्सी प्लाई की खपत का लगभग 90 फीसदी मलेशिया, इंडोनेशिया और बर्मा स्थित निर्माताओं से पूरा किया जाता है। लेकिन आज कल फ्लेक्सी प्लाइवुड के बाजार में आपूर्ति की कमी देखी जा रही है। फ्लेक्सी प्लाइवुड कारखानों के आंशिक रूप से बंद होने के साथ-साथ अमेरिका और पश्चिमी देश के बाजारों में आपूर्ति बढ़ने के कारण कुछ महीनों से हमारे देश के सप्लाई लाइन पर काफी असर पड़ा है। लकड़ी की बढ़ती कीमत और मांग के साथ फ्लेक्सी प्लाई की कीमतें भी लगातार बढ़ रही हैं। बेस प्लाई, जो डेकोरेटिव प्लाई जरूरतों के लिए उपयोग की जाती हैं, उसकी कीमतें, मेटेरियल की उपलब्धता में कमी के कारण 1000 डॉलर के आस पास है और यही असर फ्लेक्सी प्लाई में भी दिखाई दे रही है।
एक आयातक ने कहा कि फ्लेक्सी प्लाई की उपलब्धता में कमी का मुख्य कारण सप्लायर के स्तर पर इसकी उपलब्धता का नहीं होना है। वे मोटा मेटेरियल का उत्पादन करना पसंद करते हैं जिससे उन्हें कीमत और वॉल्यूम भी ज्यादा मिलती है। गर्जन आधारित फ्लेक्सी प्लाई का आयात भारत की लगभग 80 फीसदी जरूरत को पूरा करता है, लेकिन लगता है यह
अब अप्रैल-मई से पहले उपलब्ध नहीं होगा। प्रमुख आयातकों को लगता है कि एक बार जब मांग में कमी आएगी और मैन्युफैक्चरिंग अच्छी तरह बहाल हो जाएगी, तो चीजें धीरे-धीरे अपनी स्थिति में वापस आ जाएंगी।
अपुष्ट खबरों के मुताबिक, भारत के बाजार में करीब 60 कंटेनर फ्लेक्सी प्लाई की खपत है, और कमी के कारण मुश्किल से 10 कंटेनर की आवक हो रही है। आयातक भारतीय बाजार की जरूरत के लिए मलेशिया, इंडोनेशिया और म्यांमार में नए सप्लायर ढूंढ रहे हैं लेकिन अब तक कोई नए सप्लायर ने इसमें रुचि नहीं दिखाई।
भारतीय इंटीरियर कांट्रैक्टर फ्लेक्सी प्लाइवुड का उपयोग कई वक्रतापूर्ण आकार के इंटीरियर के काम और फर्नीचर के लिए करते हैं और बड़े पैमाने पर बड़े रिटेल काउंटर या थोक विक्रेताओं के माध्यम से बेचे जाते हैं। आपूर्ति के संतुलन को पूरा करने के लिए बंगाल, कांडला और उत्तर भारत में कुछ भारतीय उत्पादकों ने इसे बनाने की कोशिश की, लेकिन इसके लिए मलेशिया, इंडोनेशिया में उपयोग की जाने वाली उपयुक्त लकड़ी का पता लगाने और उस पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। इसे तभी बल मिलेगा, जब यहां इस तरह का सही उत्पाद बनाया जाएगा। स्थानीय स्तर पर उत्पादन शुरू किये जाएँ तो फ्लेक्सी प्लाई की कमी से इस सेक्टर में भारतीय प्लाइवुड विनिर्माताओं को अच्छा मौका मिल सकता है।