यूपी में टिम्बर की कीमतें अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर है, क्योंकि प्लाइवुड बनाने के लिए सफेदा की कीमत 800 रुपये से अधिक हो गई है। हालात ऐसे बन गए है कि राज्य में प्लाइवुड उत्पाद बैक फुट पर है, क्योंकि उनका मानना है कि राज्य में प्लांटेशन कम होने के कारण अगले 3 वर्षों तक टिम्बर सप्लाई में सुधार नहीं होगा। इंडस्ट्री प्लेयर्स का कहना है कि उत्तर भारत में पार्टिकल बोर्ड और एमडीएफ मैन्युफैक्चरिंग यूनिट के काफी ज्यादा संख्या मे आने के चलते टिम्बर की मांग में अचानक वृद्धि हुई है और इसकी दूरदर्शिता और आकलन ना तो किसानो को थी, न नर्सरी मालिक को और न ही उद्योगपतियों को थी।
क्षेत्र के प्रमुख उद्योगपतियों में से एक और यूपी प्लाईवुड मैन्युफैक्चरर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री अशोक अग्रवाल ने कहा कि लकड़ी की उपलब्धता नहीं है और फैक्ट्री ऑपेरशन 50 फीसदी तक पहुंच गया है। मांग के साथ-साथ भुगतान की स्थिति भी अच्छी नहीं है और फैक्ट्री स्तर पर टिम्बर की कीमतें व्यवहार्य भी नहीं है। उन्होंने कहा, कि मुझे उम्मीद है कि तीन से चार सालों में टिम्बर की उपलब्धता में सुधार होगा। हालांकि, यह उम्मीद की जा रही है कि अच्छी क्वालिटी की टिम्बर की कमी बनी रहेगी क्योंकि एमडीएफ प्लांट्स अच्छी कीमत पर कम मोटाई के टिम्बर भी ले लेते हैं, इसलिए किसान क्वालिटी टिम्बर के उत्पादन के लिए उतने समय तक इंतजार नहीं करेंगे।
उन्होंने कहा कि वर्तमान स्थिति कोविड काल के दौरान की स्थिति से भी बदतर है। हम युगांडा से आयात करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन माल ढुलाई भाड़ा का मुद्दा है क्योंकि यह एक लैंडलॉक स्टेट है। हालाँकि प्लांटेशन का काम तेजी से चल रहा है। अब विमको में कोई सैपलिंग उपलब्ध नहीं हैं। उन्होंने कहा कि मेलिया दुबिया एक विकल्प है, लेकिन यह पोपलर और सफेदा जितना अच्छा नहीं है।
वम्को सीडलिंग, आईटीसी लिमिटेड, पीएसपीडी के मैनेजर आरएंडडी श्री जे एन गांधी ने कहा कि हरियाणा की तुलना में यूपी में बहुत कम प्लांटेशन हुआ है। विमको ने सहारनपुर में 10 लाख सहित यूपी में लगभग 30 लाख पेड़ लगाए हैं। लेकिन हरियाणा और पंजाब में प्लांटेशन का परिदृश्य काफी अच्छा है। हम निकट भविष्य में वुड पैनल इंडस्ट्री के लिए टिम्बर की उपलब्धता का अनुमान लगा रहे हैं। यदि 3 करोड़ प्लांटेशन पूरा हो जाता है और इसकी उपज 85 फीसदी तक पहुँच जाती है, तो उद्योग को उत्तरी क्षेत्र में टिम्बर की उपलब्धता आसान होगी।
उद्योग किसानों पर निर्भर है, और उद्योग को बनाए रखने के लिए, प्लेयर्स को टिम्बर के मामले में आत्मनिर्भर होने की पहल करनी होगी। कई चर्चाओं के बाद भी, ऐसा कोई निकाय नहीं है जो इंडस्ट्री प्लेयर्स द्वारा टिम्बर प्लांटेशन की पहल का ख्याल रख सके, जो कि उद्योग के भविष्य के लिए एक बड़ी जरूरत है। श्री अशोक अग्रवाल ने कहा कि उद्योग जगत के लोगों को हर जिले में एक नर्सरी विकसित करनी होगी और एक मंच पर किसानों और उद्योगपतियों को लाकर प्लांटेशन को प्रोत्साहित करना होगा।
अंबिका प्लाईवुड इंडस्ट्रीज (प्रा.) लिमिटेड के प्रबंध निदेशक श्री वीरेंद्र जिंदल ने कहा कि मूल्य वृद्धि का मुख्य कारण यह है कि पिछले पांच से छह वर्षों से प्लांटेशन बहुत कम हुआ है और उद्योग के बड़े पैमाने पर विस्तार के चलते खरीदार काफी ज्यादा हो गए हैं। अभी, उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में, पोपलर 1150 रुपये प्रति टन और सफेदा 850 रुपये प्रति टन पर उपलब्ध है। अनुमान है कि, एक साल में टिम्बर की कीमत में 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जबकि प्लाइवुड की कीमत में उतनी बढ़ोतरी नहीं हुई है। मैन्युफैक्चरर्स के पास मैन्युफैक्चरिंग बंद करने के अलावा कोई चारा नहीं है। अधिकांश प्लाई उद्योगों ने अपनी क्षमता का उपयोग 40 से 50 फीसदी तक कम कर दिया है। और निकट भविष्य में स्थिति में सुधार होने की कोई उम्मीद नहीं है।
नेमानी प्लाइवुड प्राइवेट लिमिटेड, गोरखपुर के प्रबंध निदेशक श्री संजीव नेमानी ने कहा कि प्लांटेशन बढ़ाने और किसानों को सहयोग करने के लिए एक उद्योग की पहल के तहत पौधों को वितरित करना एकमात्र विकल्प है। हम इनके साथ हैं और व्यक्तिगत स्तर पर कम से कम एक लाख पौधे वितरित किए हैं। इसी तरह, विभिन्न जिलों में, पौधे वितरित किए जा रहे हैं। हम यमुनानगर में भी हो रही टिम्बर की सप्लाई से प्रभावित हो रहे हैं। कीमत के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान में सफेदा की कीमत लगभग 800 रुपये है जो पिछले साल के इसी महीने की तुलना में 30 फीसदी ज्यादा है।
श्री रितेश अग्रवाल, एमडी, रिस्टल इंडस्ट्रीज प्रा. लि., लखीमपुर ने कहा कि अधिकांश टिम्बर यमुनानगर को सप्लाई की जा रही है। स्टैण्डर्ड थिकनेस 16-18 इंच थी, लेकिन यह धीरे-धीरे घटकर 13-14 इंच हो गई, और इसकी मांग भी ज्यादा है। कई नए उद्योग उभरे हैं, संसाधनों का उपभोग कर रहे हैं जिससे कीमतें बढ़ रही हैं। टिम्बर की उपलब्धता कम हो गई है, और फैक्ट्री ऑपरेशन काफी कम हो गया है। प्रौद्योगिकी के विकास से भी खपत बढ़ी है। अभी प्लांटेशन हो रहा है और इसकी उपज तीन साल बाद आएगी। लखीमपुर में सेलम उपलब्ध है, इसलिए सफेदा की खेती नहीं हो पा रही है। शटरिंग प्लाईवुड की मांग बढ़ रही है, लेकिन लकड़ी की उपलब्धता की कमी सुचारू संचालन में बाधक है।
बरेली प्लाइवुड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री वीरेंद्र अग्रवाल ने कहा कि फैक्ट्री ऑपरेशन घटकर आठ घंटे रह गया है। पोपलर की कीमत 1100 रुपये प्रति टन है जबकि सफेदा 800 रूपए से ज्यादा है। गर्थ भी काफी कम हो गई है जिससे उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हो रहे है। उत्तर प्रदेश का परिदृश्य पैनल उत्पादकों के लिए 2023 और 2024 में बहुत कठिन समय का संकेत दे रहा है। टिम्बर की अब तक की सबसे ऊँची कीमतें स्पष्ट रूप से इस बात का संकेत हैं कि वुड बेस्ड इंडस्ट्री को नर्सरी में निवेश करना होगा, यदि वे इस क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करना चाहते हैं तो बेहतर प्रतिफल के आश्वासन के साथ बेहतर क्लोन और पौधे उपलब्ध कराने होंगे। अन्य फसलों, फलों और सब्जियों में अपेक्षाकृत ज्यादा रिटर्न के चलते, प्लांटर्स भी खेती के अन्य अवसरों की तलाश कर रहे हैं, इसलिए वुड बेस्ड इंडस्ट्री को उत्पाद को बाजार में अच्छे कीमतों पर बेचने के लिए और अधिक प्रयास करने होंगे ताकि वे टिम्बर उत्पादकों को बेहतर रिटर्न दे सकें। फसलें अधिक महंगी होने के कारण प्लांटेशन में उनकी रुचि कम हो गई है, इसलिए वे दूसरी ओर ध्यान दे रहे है।