म्यांमार सरकार प्राइवेट प्लांटेशन से लॉग के निर्यात पर प्रतिबंध उठाने के अवसर तलाश रही है। वन विभाग के उप महानिदेशक जॉव मिन के हवाले से स्थानीय मीडिया ने खबर दी है, जिसमें कहा गया है कि वन विभाग ने प्राइवेट प्लांटेशन फारेस्ट से लॉग के निर्यात की अनुमति देने का प्रस्ताव दिया है। प्राइवेट प्लांटेशन फारेस्ट के लिए 2006 से अनुमति है और लगभग 80,000 हेक्टेयर तक फैली हुई है। जिनमें से लगभग आधा टीक है और शेष अन्य हार्ड वुड हैं। वर्तमान में, प्लांटेशन का स्थानीय स्तर पर उपयोग किया जा रहा है लेकिन ये छोटे गर्थ के होते हैं और घरेलू मिलें बड़े नेचुरल लॉग पीलिंग के लिए बनी होती हैं।
यह विदित है कि म्यांमार ने अप्रैल 2014 में नेचुरल फारेस्ट लॉग निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था, जिसने भारतीय प्लाईवुड उद्योग को बहुत प्रभावित किया क्योंकि भारत, म्यांमार से आयातित गर्जन वुड की फेस विनियर आवश्यकता पर बहुत अधिक निर्भर है। भारत के दर्जन से अधिक वुड बेस्ड इंडस्ट्री प्लेयर्स ने गर्जन फेस विनियर के स्रोत को सुव्यवस्थित करने के लिए म्यांमार में बहुत अधिक निवेश किया, लेकिन सरकार द्वारा प्राकृतिक वन काटने पर प्रतिबंध लगाने के सख्त निर्णय पूरे परिदृश्य को बदल दिया। यद्यपि म्यांमार ने पेड़ काटने पर प्रतिबंध हटा लिया है, लेकिन लकड़ी की लागत भारतीय प्लाईवुड उद्योग द्वारा खरीदने के लिए व्यवहार्य नहीं है और गर्जन फेस विनियर अपना आकर्षण खोना शुरू कर दिया है जिसके परिणामस्वरूप बाजार धीरे-धीरे गैबॉन से इकोनोमिकल ओकूमे फेस में स्थानांतरित हो रहा है।
अगर म्यांमार सरकार प्राइवेट प्लांटेशन से लॉग के निर्यात की अनुमति देती है, तो यह कई लॉग और वुड ट्रेड फर्मों और पोर्ट पर स्थित पीलिंग इकाइयों के लिए एक जीवनदायी कदम हो सकता है। इस तथ्य के बावजूद की यदि यह विचार सीमित मात्रा के लिए हो, तो भी यह गर्जन फेस के आकर्षण को बनाए रखेगा। हालांकि स्थिति पूरी तरह से लॉग की लागत पर निर्भर करती है क्योंकि भारतीय बाजार मानसिक और तकनीकी रूप से इकाॅनोमिक ग्रेड ओकूमे फेस विनियर स्वीकार करने के लिए तैयार है। बर्मा से लॉग निर्यात पर विचार केवल एक विचार है जिसकी हाल के भविष्य में कोई निश्चितता नहीं है, हालांकि यदि लागत उचित स्तर पर हो तो यह कदम टीक वुड प्रोसेसर और बाजार कों मदद कर सकता है।