स्माॅल स्केल प्लाइवुड इंडस्ट्री में एक बार फिर यूरिया को लेकर चर्चा गर्म है। इसका कारण केंद्र सरकार की नई गठित की गई फ्लाइंग स्कॉड की टीम है। ज्ञातव्य है कि केंद्र ने सब्सिडी लीकेज खत्म करने के लिए एग्रीकल्चर ग्रेड यूरिया के इंडस्ट्रियल यूज के डायवर्जन को रोकने के लिए एक राष्ट्रव्यापी कार्रवाई शुरू कर दी हैै। इसके लिए उर्वरक उड़न दस्तों का गठन किया है जिन्होंने 15 दिनों मे अब तक 15 राज्यों में 370 से अधिक औचक निरीक्षण किए हैं और कई प्लाई व लेमिनेट फैक्ट्रियों पर भी छापेमारी की गई है।
अधिनियम के अंतर्गत यूरिया के डायवर्जन के लिए 30 से ज्यादा एफआईआर दर्ज की हैं, तथा एग्रोकेमिकल के 70,000 बैग जब्त किए हैं। अधिकारीयों ने कालाबाजारी की रोकथाम के लिए सम्बंधित कानून के तहत करीब 11 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिया है। इसका असर कई राज्यों जैसे केरल, पंजाबे, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, यूपी, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तराखंड के के प्लाईवुड इंडस्ट्री पर देखने को मिल रहा हैं।
जांच अधिकारीयों का कहना है कि उद्योग जो भी यूरिया का उपयोग कर रहे हैं उसका ब्योरा दें, पिछले तीन साल का रिकार्ड दें और अपने प्रोडक्शन के डाटा के साथ उसको मैच करें। गौरतलब है कि केंद्र सरकार किसानों को 266 रुपये प्रति बैग (45 किलोग्राम) की काफी ज्यादा रियायती दर पर यूरिया देती है और उसे प्रति बोरी करीब 2500 रुपये की सब्सिडी वहन करनी पड़ती है।
जहां केंद्रीय जाँच दल जगह जगह इस अभियान को सख्त करने में लगी है वही इंडस्ट्री एसोसिएशन ने पत्र लिखकर उद्योगपतियों से अनुरोध किया कि टेक्निकल ग्रेड यूरिया से ही प्लाई बनाएं और इसकी खरीद के चालान की प्रति कृषि विभाग को जल्द से जल्द भिजवाए। दुसरी ओर तरइंडस्ट्री डीलर्स चाहते है कि यदि टेक्निकल ग्रेड यूरिया पर सब्सिडी हो तो कच्चे माल की बढ़ती लागत के इस दौर में वुड पैनल डेकोरेटिव इंडस्ट्री को बड़ी मदद होगी।
उद्योग के सूत्र बताते हैं कि भारत में सालाना आधार पर 350 लाख टन से अधिक यूरिया की खपत होती है, जिसमें लगभग 7 लाख टन यूरिया/टीजी ग्रेड यूरिया की खपत प्लाईवुड उद्योग द्वारा की जाती है, जो यूरिया की कुल खपत का केवल 2 फीसदी है। पिछले साल किसानों और अन्य लाभार्थियों को सभी पोषक तत्वों पर सरकारी सब्सिडी 2.25 लाख करोड़ रुपये थी। उद्योग के विशेषज्ञों का अनुमान है कि यदि प्लाईवुड उद्योग को टेक्निकल ग्रेड यूरिया पर सब्सिडी मिलेगी तो यह 4000 करोड़ रुपये होगी, जो कि सरकार द्वारा किसानों को दिए जाने वाले अनुदान का 2 फीसदी से भी कम है।