बैंकिंग धोखाधड़ी की रिपोर्ट के बाद, नए नियमों ने विदेशी बाजार से टिम्बर इम्पोर्ट पर असर डाला है। बैंक क्रेडिट और क्रेडिट लिमिट प्राप्त करने के लिए आयातकों को बहुत मसक्कत करनी पड़ रही है। बैंकिंग सपोर्ट और नगदी की कमी के चलते टिम्बर इम्पोर्ट व्यापार गंभीर रूप से प्रभावित है। आयातकों ने प्लाई रिपोर्टर संवाददाता को बताया किया कि लगभग सभी महत्वपूर्ण बैंकों ने अपनी एलओयू सुविधाओं को वापस ले लिया है, साथ ही एलसी सुविधा महंगी हो गई है। लागत में भी वृद्धि हुई है क्योंकि ‘तारीखों की गणना अब डिस्पैच की तारीख से माना जाने लगा है, जहां पहले इसकी गणना डिलीवरी की तारीख से की जाती थी।‘
एक टिम्बर आयातक का कहना है कि टिम्बर इम्पोर्ट बिजनेस की गति धीमी हो चुकी है, जो कमजोर मांग के कारण पहले से ही प्रभावित थी। डिफॉल्टिंग कंपनियों के घोटालांे के कारण आयातकों को दी गई क्रेडिट सुविधाओं को वापस लेने के चलते यह और कम हो रहा है। सीमित वर्किंग कैपिटल के साथ, लगभग हर आयातक खरीद पूरा नहीं कर पा रहे है इसलिए बिजनेस वॉल्यूम बहुत घट गया है।
आयातकों ने बताया कि बैंकों ने क्रेडिट मानदंडों के अलावा कई सख्त ऐतियाती कदम उठाए हैं जैसे पेमेंट शेडूल, कम किए हुए क्रेडिट लिमिट, रिकवरी इत्यादि, जिसने आयातकों पर एक और पूंजी निवेश का बोझ डाला है। कई टिम्बर इम्पोर्टर्स नए सिरे से काम शुरू करने के प्रयास कर रहे हैं, लेकिन यह एक टाइम टेकिंग प्रोसेस है जो आदतों में बदलाव और अपनी पूंजी निवेश से ही व्यवस्थित होगा। कांडला के सूत्रों के मुताबिक टिम्बर इम्पोर्ट के क्षेत्रों में बैंकों ने आयातकों को संकेत दिया है कि कुछ प्रसिद्ध टिम्बर इम्पोर्टर्स से जुड़े कुछ वित्तीय अनियमिता के मामले सामने आएं है, जिन्हें सीबीआई, ईडी जैसी जांच एजेंसियों को रेफर किया गया है।
जीएसटी भी टिम्बर आयातकों के लिए कैपिटल निवेश बढ़ा दिया है क्योंकि नए कानून के तहत, आयातकों को मेटेरियल डिलिवरी के समय ही पोर्ट पर जीएसटी का भुगतान करना पड़ता है। एक अन्य टिम्बर इम्पोर्टर के मुताबिक, यदि आप निवेश की कुल लागत की गणना करते हैं, तो आपको गोदाम में माल प्राप्त करने से पहले लगभग 50 फीसदी का भुगतान करना पड़ता है, इसलिए टिम्बर इम्पोर्ट के कारोबार में पूंजीगत निवेश कई गुना बढ़ गया है, जो वर्तमान में टिम्बर इम्पोर्ट को प्रभावित कर रहा है, हो सकता है यह अस्थायी हो लेकिन वर्तमान बहुत कठिन है।