सितंबर के आखिरी सप्ताह और अक्टूबर के पहले सप्ताह के दौरान फेनाॅल की कीमतों में अप्रत्याशित बृद्धि ने हाई डेंसिटी लैमिनेट और प्लाइवुड उद्योग को चैका दिया है। इस रिपोर्ट को लिखने तक, फेनाॅल की कीमत 140 के स्तर को पार कर चुका था। केमिकल सप्लायर और आयातकों से मिली जानकारी के मुताबिक, रेट और आगे भी बढ़ेगा क्योंकि पोर्ट पर इन्वेंट्री स्टॉक काफी कम हैं। मुंबई स्थित एक आयातक ने कहा कि रुपये के मुकाबले डॉलर की कीमतों में मजबूती के चलते, वे आगे आयात करने के लिए सतर्क है क्योंकि रुपया के कमजोर होने के कारण उन्हें नुकसान हो रहा है। उनका कहना है कि कम इन्वेंट्री स्टॉक और डॉलर की ऊंची कीमतें मेथनॉल और मेलमाइन जैसी अन्य रासायनिक कीमतों सहित फेनाॅल की कीमतों में उछाल के मुख्य कारण हैं।
गुजरात के एक और फेनाॅल आयातक का कहना है कि एक घरेलू इकाई ने भारत में फिनोल का उत्पादन शुरू कर दिया है, जिसकी बड़ी विनिर्माण क्षमता है और ये उम्मीद थी कि उनका उत्पादन जल्द ही सुव्यवस्थित हो जाएगा, इसीलिए आयात मात्रा में कमी आई है। अचानक, यह घरेलू फेनाॅल इकाई में कुछ रखरखाव का काम हो रहा है जिसके चलते बाजार में आपूर्ति कम है। एक महीने में फेनाॅल की कीमतों में 25 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है, जिसके चलते एचपीएल उद्योग में अराजकता की स्थिति पैदा हो गई है।
कई एचपीएल उत्पादकों ने अपने उत्पादन को तत्काल प्रभाव से कम करने का फैसला किया है क्योंकि बाजार में इस ऊंची लागत को खपाना संभव नहीं है। गुजरात स्थित एक लैमिनेट उत्पादक का कहना है कि फेनाॅल की कीमतों के अलावा, इस समय फॉर्मलीन, मेलामाइन और क्राफ्ट पेपर जैसी अन्य कच्ची सामग्री की लागत भी बढ़ी है, इसलिए निर्माताओं द्वारा इस ऊंची लागत को अवशोषित करना बहुत मुश्किल है। साथ ही मांग कम है, इसलिए बाजार में इस लागत को पारित करना भी एक कठिन कार्य है। एक अन्य निर्माता का कहना है कि उत्पादन में कटौती करना बुद्धिमानी है क्योंकि इस ऊंची लागत पर उत्पादन करने में हानि हो रही है। कई अन्य सूत्रों ने भी प्लाई रिपोर्टर को बताया कि फेनाॅल प्राइस कुछ महीनों के भीतर घटेंगी हालांकि डॉलर की ऊंची कीमतें मैन्यूफैक्चरिंग कॉस्ट को बढ़ा सकती हैं, इसलिए यह उद्योग के लिए असमंजस की स्थिति जैसा है।