Aroha Targets to Reach Pan India With Quality Plywood

person access_time8 18 June 2018

उत्तर भारत में प्लाइवुड उद्योग, स्थापना के बाद से अपनी यात्रा के सबसे बुरे दौर का सामना कर रहा हैं। प्लाइवुड निर्माता इस समय कई मोर्चे पर समस्याओं से लड़ रहे हैं जैसे टिम्बर की बढ़ती कीमतें, लॉग्स की गुणवत्ता, ऑर्डर में गिरावट, पेमेंट की खराब स्थिति और टीम में अच्छे और कुशल सदस्यों की कमी। इसके उपर से एडमिनिस्ट्रेशन तथा मार्केटिंग कॉस्ट के महंगे होने, बिलिंग और टैक्स के अनुपालन और बैंकिंग के नगण्य सपोर्ट कई साझेदारी पर चल रही फर्में जो कम पूंजी और कम मार्जिन पर चलती हैं उनके लिए बहुत कठिन समय साबित हो रहा है। परिदृश्य इतना पेचीदा है कि उत्तर की कई इकाइयाँ साझेदार बनाकर या इनकी बिक्री की पेशकश कर बाजार में रहना चाहती हैं।

यमुनानगर में भी परिदृश्य कुछ ऐसा ही बताया जा रहा है क्योंकि वित्तीय वर्ष के अंत में अपनी लागत का आकलन करने वाली इकाइयों की अधिकतम संख्या होती है। स्थानीय स्रोतों और टिम्बर के व्यापारियों के अनुसार, लगभग 50 इकाइयाँ अपने अस्तित्व पर अनिश्चितता का सामना कर रही हैं, जहाँ किराए के एक दर्जन प्लांट पहले ही इसके मालिकों को चाबी सौंप दी है। प्लाइवुड इकाइयां केवल इसलिए पीड़ित हैं क्योंकि कच्चे माल की लागत में वृद्धि और बाजार से अनुकूल प्रतिक्रिया के कारण प्लांट के लिए ऑपरेटिंग मार्जिन माइनस स्तर तक गिर गया है।

अगर उद्योग के दिग्गजों और उद्योग के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो उत्तर भारत में प्लाइवुड उद्योग को उत्तर प्रदेश और दक्षिण भारत में नई संयंत्र क्षमताओं में वृद्धि के साथ और अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। यह भी माना जा रहा है कि चुनाव के बाद, सख्त जीएसटी अनुपालन, कड़े प्रदूषण मानदंड और कठोर श्रम कल्याण नियम अन-आर्गनाइज उद्योग को आगे बढ़ा सकते हैं।

विभिन्न एसोसिएशन द्वारा सामूहिक रूप से मूल्य वृद्धि को लागू करने के लिए बार-बार प्रयास किए गए हैं जिसे कुछ फायदा हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। प्लाई रिपोर्टर ने अनुमान लगाया कि अधिकतम कार्य कुशलता के साथ मध्य आकार या अर्ध संगठित इकाइयां कठिन समय में बनी रहेगी।

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