सरकार ने पीसीसीएफ (प्रधान मुख्य वन संरक्षक) श्री यूके अग्रवाल से राज्य स्तरीय समिति (एसएलसी) द्वारा 50 सॉ मिलों को लाइसेंस जारी करने पर दो महीने में दूसरी बार पत्र भेजकर रिपोर्ट मांगी है क्योंकि वह समिति के प्रमुख भी हैं। पत्र में यह भी कहा गया है कि एसएलसी का निर्णय महाराष्ट्र वन नियमों (एमएफआर) के नियम 53 (4) और सुप्रीम कोर्ट (एससी) के 1997 के आदेश का विरोधाभासी है। सरकार ने इस मामले में शीर्ष अदालत में एक हलफनामा भी दायर किया है। रिपोर्ट को टीओआई में विस्तृत रूप से प्रकाशित किया गया है।
रिपोर्ट ने संकेत दिया कि 180 आरा मिलें थीं जिन्होंने लाइसेंस के लिए आवेदन किया था लेकिन केवल 50 को ही अनुमति दी गई थी। एसएलसी की दिसंबर 2018 की बैठक में, कुछ वरिष्ठ अधिकारियों, जिन्हें सरकार द्वारा एसएलसी में सदस्य के रूप में चुना गया था, ने बताया कि एसएलसी का 50 लाइसेंस जारी करने का निर्णय शीर्ष अदालत के आदेश के खिलाफ था। यह पता चलते पर एसएलसी के यूके अग्रवाल ने ने 28 फरवरी, 2019 को 50 अतिरिक्त बैंड सॉ को नियमित करने के लिए एमएफआर में संशोधन करने की मांग की, लेकिन राज्य सरकार ने यह कहते हुए मांग को खारिज कर दिया कि लाइसेंस अवैध रूप से जारी किए गए थे और उन्होंने अपने फैसले की समीक्षा करने के लिए कहा।
अप्रैल 2018 में अग्रवाल ने पीसीसीएफ के रूप में पदभार ग्रहण करने से पहले, एसएलसी ने 27 जून, 2017 को आयोजित अपनी बैठक में यह निर्णय लिया था कि मौजूदा आरा मिलों की क्षमता बढ़ाने के लिए अतिरिक्त बैंड सॉ का अनुमोदन राज्य से लकड़ी की उपलब्धता रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद ही किया जाएगा। यह 11 नवंबर, 2016 के भारत सर्कार की अधिसूचना (लकड़ी-आधारित उद्योग (स्थापना और विनियमन) नियम, 2016 के नियम संख्या 5) में महत्वपूर्ण शर्तों में से एक है। हालांकि, इंस्टीट्यूट ऑफ वुड साइंस एंड टेक्नोलॉजी (प्ॅैज्) और इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (प्ब्थ्त्म्) की लकड़ी की उपलब्धता रिपोर्ट का इंतजार किए बिना एसएलसी ने 23 जुलाई, 2018को अग्रवाल की अध्यक्षता में आयोजित अपनी बैठक में अतिरिक्त बैंड सॉ के लिए लाइसेंस प्रदान किया गया।