कोविड ने रियल एस्टेट और हाउसिंग सेक्टर पर बुरा प्रभाव डाला है और इनके जख्मों को और गहरा किया है, इसका प्रभाव बिल्डिंग मेटेरियल प्रोडक्ट पर भी दिखाई देता है। हाल ही के रिपोर्ट के अनुसार, इसका प्रभाव देश में आयातित लकड़ी उत्पादों की मांग पर भी पड़ा है, जिसने जुलाई महीने में भारी गिरावट दर्ज की है। कांडला टिम्बर एसोसिएशन (केटीए) के अनुसार, कांडला-मुद्रा बंदरगाह के लिए भेजी गई लकड़ी क्रमशः अप्रैल और मई महीने में 2.02 लाख सीबीएम और 2.16 लाख सीबीएम दर्ज की गई थी, जो जून महीने से गिरनी शुरू हो गई, जो 1.54 लाख सीबीएम थी और आगे जुलाई में घटाकर 0.76 लाख सीबीएम रह गयी। अप्रैल और मई महीने मेंप्राप्त आर्डर, कोविड से पहले दिया गया था, जो कोविड के बाद कम हो गया।
गांधीधाम के टिम्बर आयातकों का कहना है कि कोविड के बाद पेमेंट फ्लो बनाए रखना मुश्किल है, क्योंकि एक बार जब हम लकड़ी के कंटेनरों को बंदरगाह से गोदाम में लाते हैं, तो उन्हें उसी समय जीएसटी का भुगतान करना पड़ता है, जो उन्हें बेचने के बाद वापस मिलते हैं। यह रोटेशन कम से कम 3-5 महीनों का है, इस प्रकार एक बड़ी पूँजी बाजार में अटक जाती है, इसलिए आयातकों को व्यापार में अधिक पूंजी लगाने की आवश्यकता होती है। कोविड काल में पूंजी बाजार ने आयातकों के व्यापार को और मुश्किल बना दिया है।
गांधीधाम से प्राप्त रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि लकड़ी के आयातकों ने कस्टम क्षेत्र में प्लाट किराए पर लिया है, और अस्थायी रूप से इन क्षेत्रों में अपने लकड़ी के स्टॉक को रखा है क्योंकि बंदरगाह पर पार्किंग की लागत बहुत अधिक है। ऑर्डर मिलते ही वे कस्टम ड्यूटी और जीएसटी चुकाकर यहां से मेटेरियल लेते हैं। कांडला टिम्बर एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री नवनीत गज्जर का कहना है कि इस तरह लकड़ी के आयातक अपनी थोड़ी पूँजी बचा रहे हैं लेकिन यह अस्थायी है। केटीए ने सरकार से लकड़ी के आयातकों के व्यापार का समर्थन करने और भारत में फर्नीचर बनाने में भी मदद करने के लिए लकड़ी पर जीएसटी और कस्टम ड्यूटी कम करने का अनुरोध किया है।