प्राचीन काल से ही लकड़ी हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है, क्योंकि कारीगर तब से ही इसका इस्तेमाल कृषि उपकरण और घरेलू उपयोग के सामान बनाने के लिए करते रहे हैं। बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण, लकड़ी का उपयोग व्यवसाइक प्रकृति का हो गया है। हमारे देश में लकड़ी का कुशल प्रसंस्करण ज्यादा प्रचलित नहीं है, क्योंकि अधिकांश इकाइयाँ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) के अंतर्गत हैं। 1991 में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के साथ, लकड़ी और लकड़ी के उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी है, इसलिए उनके आयात भी हमारे देश में कई गुना बढ़ी है।
लकड़ी आधारित उद्योगों की स्थिति
लकड़ी आधारित उद्योगों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है। सॉ टिम्बर आधारित (कंस्ट्रक्शन, फर्नीचर, आदि), कम्पोजिट वुड पैनल और लुगदी आधारित। दि नेटवर्क फॉर सर्टिफिकेशन एंड कंजर्वेशन ऑफ फॉरेस्ट्स ’द्वारा जारी पॉलिसी पेपर के अनुसार, कंस्ट्रक्शन और फर्नीचर उद्योगों के लिए लकड़ी की अनुमानित मांग क्रमशः लगभग 2.9 करोड़ घनमीटर और 75 लाख घनमीटर है। इसमें यह भी बताया गया है कि पूरे देश में 800 पेपर मिलों में पेपर उद्योग 10 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देता है और लकड़ी की अनुमानित मांग लगभग 3.6 करोड़ घनमीटर है। भारतीय प्लाइवुड अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान( ईपिर्ति) के रिपोर्ट के अनुसार प्लाइवुड और पैनल उद्योग में लगभग 3,300 इकाइयाँ हैं, जो 10 लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करती हैं। आम तौर पर ये उद्योग लेवर इंटेंसिव होते हैं, जो शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर अकुशल और अर्ध-कुशल व्यक्तियों के लिए रोजगार पैदा करते हैं।
कृषि वानिकी और वुड बेस्ड इंडस्ट्रीज का संयोजन
कच्चे माल की कमी को पूरा करने के लिए, विमको सीडलिंग लिमिटेड (न्ज्ञ) और आईटीसी भद्राचलम पेपरबोर्ड लिमिटेड (।च्) ने 1984 और 1989 में उत्पादन वापस खरीदने कीव्यवस्था और आश्वासन के साथ पोपलर और क्लोन सफेदा की खेती को बढ़ावा दिया, साथ ही गुणवत्तापूर्ण पौधे मुहैया -श्री आर के सपरा कराई और उत्पादन के तरीकों के लिए प्रशिक्षित भी किया। इस मॉडल ने लकड़ी आधारित उद्योगों के पिछड़ेपन को दूर कर कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित की। दूसरे, हरियाणा राज्य में यमुनानगर, जिसे देश की ’प्लाइवुड कैपिटल’ के रूप में जाना जाता है। यहां देश के लगभग 45 फीसदी प्लाइवुड बनाने की क्षमता है। उत्तर-पश्चिम भारत में ‘यमुनानगर मॉडल’ मुख्य रूप से यमुना नदी, अत्यधिक उपजाऊ क्षेत्र, प्रगतिशील किसानों, हरियाणा सरकार की उदार नीतियों और पूर्वोत्तर भारत में प्लाइवुड उद्योगों को बंद होने के कारण विकसित हुई है। इसमॉडल ने किसानों, मजदूरों, ठेकेदारों, ट्रांसपोर्टरों, व्यापारियों और उद्योगपतियों जैसे कई स्टेकहोल्डर्स को लाभान्वित किया है।
कैसे बढेगा लकड़ी का उत्पादन?
हमारे देश में बड़े आकार के टिम्बर के उत्पादन को बढ़ाने के लिए, गुणवत्तापूर्ण प्लांटिंग स्टॉक और उन्नत सिल्वीकल्चरल का उपयोग कर मध्यम (किकर और एलेन्थस) और लंबे (टीक और शीशम) रोटेशन वाले प्लांटेशन को बढ़ावा देकर क्षय हो चुके, वन क्षेत्रों का उपयोग किया जा सकता है। यदि बीस लाखहेक्टेयर क्षय वन क्षेत्र को उन्नत प्लांटेशन के अंतर्गत लाया जाता है, जो प्रतिवर्ष लगभग 16,800 करोड़ रुपये की लगभग 1.0 करोड़ घनमीटर उपज प्राप्त किया जा सकता है और लगभग 500 लाख मानव दिवस रोजगार (लेखक का अनुमान) पैदा कर सकता है। इन वृक्षारोपण कार्यक्रम को सरकार द्वारा बजट निर्धारण या पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के माध्यम से वित्तपोषित किया जा सकता है। दूसरा विकल्प अधिक संभव लगता है क्योंकि कम बजटीय आवंटन के कारण वानिकी क्षेत्र को हमेशा वित्तीय संकट का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा वैकल्पिक रूप से, इन प्लांटेशन को खेती योग्य बंजर भूमि पर भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत उगने के लिए बढ़ावा दिया जा सकता है। चूंकि वन प्रमाणीकरण शासन के सख्ती से लागू होने के कारण भविष्य में आयातित लकड़ी महंगी हो सकती है, इसलिए लकड़ी के घरेलू उत्पादन में वृद्धि और समग्र वुड पैनल सेक्टर को बढ़ावा देना आने वाले समय के किए सही रणनीति हो सकती है।
छोटे आकार के लकड़ी के उत्पादन बढ़ाने के लिए, दस लाख हेक्टेयर खेत में छोटे रोटेशन वाले (पोपलर, सफेदा और मालाबार नीम) प्रजातियों का प्लांटेशन किया जा सकता है, जिससे सालाना लगभग 9,900 करोड़ रुपये की 1.9 करोड़ घनमीटर टिम्बर प्राप्त होगी और लगभग 800 लाख व्यक्ति दिवस (लेखक का अनुमान) का रोजगार पैदा होगा। फार्मलैंड प्लांटेशन से तुलनात्मक रूप से अधिक आय से कृषि फसलों के साथ स्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा पैदा की है, हालांकि, कृषि-वानिकी के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में उनसे सम्बंधित लाभप्रदता के आधार पर उतार-चढ़ाव होता है। इसलिए, यह सबसे उचित समय है कि कृषि वानिकी और लकड़ी आधारित उद्योगों के एकीकृत मॉडल को बढ़ावा दिया जाए। दूसरे, वन का प्रमाणीकरण सुनिश्चित किया जा सकता है, जो अवैध लकड़ी के आयात पर लगाएगा, जिससे खेतों में तैयार किए गए लकड़ी के लिए सीधे किसानों को बेहतर दाम दिलाने में मदद करेगा।
हाल ही में की गई पहल और नीतिगत निर्णय
हाल ही में, भारत सरकार ने एमएसएमई सेक्टर के लिए निवेश/टर्नओवर की सीमा बढ़ाई है। इससे इस क्षेत्र में बड़े प्लेयर्स का भी प्रवेश हुआ है जो छोटी इकाइयों को प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ने को मजबूर करेगा। इससे उन्हें मध्यम वर्ग की आकांक्षाओं को पूरा करने और वुड प्रोडक्ट के निर्यात को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। भारत सरकार ने आयात पर निर्भरता को कम करने और स्थानीय उत्पादों के निर्यात प्रोत्साहन के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान’ भी शुरू किया है। फर्नीचर मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए, भारत सरकार पहले ही कई उपाय कर चुकी है। इसलिए, हमारे देश में लकड़ी आधारित उद्योगों के विस्तार की व्यापक संभावना है, जिसके लिए निम्नलिखित नीतिगत पहल के लिए कई सुझाव हैं।
- क्षय वन क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाने के लिए बजटीय आवंटन या पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के माध्यम से निवेश को प्रोत्साहित करना (पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय)
- रियायती ऋण और पूंजीगत सब्सिडी के माध्यम से प्लांटेशन और वुड बेस्ड इंडस्ट्रीज में निवेश को प्रोत्साहित करना। (वित्त मंत्रालय)
- कृषि-वानिकी में निवेश बढ़ाना (कृषि मंत्रालय)
- विदेश व्यापर निति (एक्सिम पॉलिसी) में बदलाव (वाणिज्य मंत्रालय)
- वनों और वन उत्पादों के प्रमाणन को प्रोत्साहित करना (पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय)
- आयात शुल्क में वृद्धि और वुड व् वुड बेस्ड इंडस्ट्रीज के उत्पादों पर जीएसटी कम करना (वित्त मंत्रालय) लकड़ी के उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार के लिए व्यापक प्रशिक्षण और विकास कार्यक्रम (कौशल विकास मंत्रालय)
सुझाव यह है कि क्षय हुए जंगलों और खेतों में टिम्बर उत्पादन बढ़ाने के विभिन्न उपायों के लिए सरकार को समयबद्ध तरीके से सिफारिश करने के लिए सभी स्टेकहोल्डर के साथ एक हाई पाॅवर कमिटी का गठन किया जा सकता है। समिति वुड बेस्ड इंडस्ट्री के ग्रोथ के लिए ऊपर सुझाए गए विभिन्न सिफारिशों पर भी विचार कर सकती है। प्लांटेशन और वुड बेस्ड इंडस्ट्री के तेजी से विकास से स्थानीय स्तर पर रोजगार पैदा होंगे। यह देश के लिए काफी फायदेमंद होगा, क्योंकि इन क्षेत्रों के विस्तार से मजदूरों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे, विभिन्न स्टेकहोल्डर्स के लिए व्यापार के अवसर मिलेंगे, विदेशी मुद्रा अर्जित होंगे, साथ ही साथ जंगलों और समग्र पर्यावरण का संरक्षण भी होगा।
- लेखक श्री आर के सपरा, हरियाणा वन विकास निगम के पूर्व प्रबंध
निदेशक हैं।