लगातार कच्चे माल की उपलब्धता के संकट से डेकोरेटिव लेमिनेट उद्योग को गहरी चोट पहुंची है। जैसा कि बताया गया है, लेमिनेट मैन्युफैक्चरर्स को फरवरी में 40 प्रतिशत तक उत्पादन कम करने को मजबूर होना पड़ा। मार्च और अप्रैल में भी अनिश्चितता बरकरार है, और उत्पादन वापस सामान्य होने की उम्मीद नहीं है। वर्तमान स्थिति के अनुसार केमिकल की दिक्कतें मार्च और अप्रैल की लम्बी अवधि तक खीच सकती है।
रिपोर्ट के अनुसार, केमिकल, क्राफ्ट पेपर और अन्य कच्चे माल की ऊंची कीमतों के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। कच्चे माल के सप्लायर्स और यूजर्स के साथ प्लाई रिपोर्टर की बातचीत के अनुसार, केमिकल सेगमेंट में प्रमुख कच्चे माल की सप्लाई और डिमांड में भारी अंतर है। परिणामस्वरूप, गुजरात स्थित मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स ने अपना उत्पादन एक शिफ्ट बंद कर दिया है और यह न्यूज लिखे जाने तक उत्तर भारत स्थित प्लेयर्स स्थिति का मूल्यांकन कर रहे थे। लेमिनेट निर्माताओं ने इसके लिए मेलामाइन की कम सप्लाई और अप्राकृतिक रूप से कीमतें बढ़ाने को दोषी ठहराया है।
केमिकल की कीमतें बढ़ने से लेमिनेट मैन्युफैक्चरिंग और ट्रेड का पूरा इकोसिस्टम परेशान है। रिपोर्ट के अनुसार, निर्माता मेटेरियल की कीमतें निर्धारित करने में दिक्कत महसूस कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें मध्य फरवरी के बाद हर रोज फेनाॅल और मेलामाइन की नई बढ़ी हुई दरें मिली हैं।
लैमिनेट मैन्युफैक्चरर्स का कहना है कि वे अपने उत्पाद की कीमतों का हर रोज नहीं बढ़ा सकते, लेकिन रोज फेनाॅल और मेलामाइन की कीमतें बढ रही हैं, इसलिए उद्योग के लिए प्लांट को सुचारू रूप से चलाना मुश्किल हो गया है। माना यह जा रहा है कि उत्तर भारत में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स पूरी क्षमता में उत्पादन नहीं कर पा रही है, इसलिए उन्होंने भी उत्पादन में 25 फीसदी की कमी की है, क्योंकि किसी के पास मेलामाइन के पर्याप्त स्टॉक नहीं हैं तो किन्हीं को फरवरी में पेमेंट कम मिला है।
उद्योग को अनुमान है कि यही स्थिति मार्च और अप्रैल में भी रहेगी। मार्च में उत्पादन क्षमता में और कटौती की उम्मीद है। उनका कहना है कि वे बढ़ी हुई कीमत पर फिनोल और फार्मल्डिहाइड खरीदने में सक्षम हैं, लेकिन मेलामाइन की उपलब्ध् ाता बहुत अधिक अनियमित हैं। प्रिंट बेस पेपर की कीमतों का बढ़ना भी जारी है जो पूरे परिदृश्य को डरावना बना रहा है। अगले एडिशन में इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी।