उत्तर भारत की प्लाइवुड फैक्ट्रियां काफी दबाव में, 2022 में बढ़ेगी चुनौतिया

person access_time3 21 September 2021

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार अगस्त तथा सितंबर के पहले सप्ताह में उत्तर भारत में लगभग 100 से ज्यादा प्लांट अपना काम काज चलाते रहने के लिए काफी मशक्कत कर रहें हैं। सिर्फ यमुनानगर में करीब 85 युनिट यूं ही पडे हुए हैं, और ये इसलिए नहीं चल रहे हैं कि या तो इनके पास फंड की कमी है या आत्मविश्वास नहीं हैं, साथ ही कोविड की मार खासकर दूसरी लहर के बाद, की वजह से इनके पार्टनर तैयार नहीं है।

अभी 18 एमएम कामर्शियल प्लाइवुड की कीमत इसके खर्च से 2 रूपये सस्ता है, इससे साफ है कि वे कर्जदारों का कर्ज चुकाना नहीं चाहते। इस परिदृश्य पर एक वरिष्ठ जर्नलिस्ट ने प्लाई रिपोर्टर से कहा कि बढे़ हुए रेट और पेमेंट के मुकाबले यदि टिम्बर की उप्लब्घता और मेटेरियल की स्थिति नहीं सुधरी तो 2022 में और प्लांट कमजोर होंगे।

बढते कॉस्ट और ओवरहेड के साथ टैक्स और जीएसटी का कसता सिकंजा तथा गिरते मार्जिन के चलते वर्ष 2022 प्लाइवड निर्माताओं के लिए कठिन माना जा रहा है।

यमुनानगर की फैक्ट्रियां पिछले एक साल से लॉकडाउन, कच्चेमाल की बढती कीमतें, फंड की कमी के चलते लगातार सफर कर रही है और काम काज की असंगठित प्रणाली उनकी मुश्किलें और बढ़ा रही हैं क्योंकि सही वित्तीय रखरखाव नहीं होने के चलते इन्हें बैकों का सपोर्ट नहीं मिल पाता।

डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी और कच्चे माल जैसे लकड़ी, फेस, फिनोल और मेलामाइन की कीमतों का दबाव प्लाइवुड कारखानों के तनावग्रस्त होने का कारक रहा। फॉर्मल्डिहाइड और फिनोल जो उद्योग के लिए प्रमुख कच्चे माल हैं, की बढ़ी हुई कीमतें भी इसके कारणों में से एक हैं, जो पूरे वुड पैनल उद्योग को प्रभावित करती हैं क्योंकि इससे बने ग्लू और रेजिन की लागत बढ़ जाती है। वर्तमान समय में मांग की प्रकृति, उत्पादन, और एक किफायती उत्पाद पेश करने की तैयारी के लिए उभर रही चुनौतियों के बीच एक संतुलन बनाए रखने की बड़ी जरूरत है।

You may also like to read

shareShare article