रुपए के मुकाबले डॉलर की कीमतों में वृद्धि से घरेलू एमडीएफ निर्माताओं को आयातित एमडीएफ बाजार हासिल करने में मदद मिली है। व्यापार से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार आयातित और घरेलू एमडीएफ कीमतों के बीच अंतर कम हो रहा है क्योंकि पिछले दो महीनों में डॉलर की दर 15 फीसदी से ज्यादा बढ़ी है। रिपोर्ट का कहना है कि घरेलू एमडीएफ उत्पादकों को सितंबर में कुछ नए आर्डर मिल रहे हैं, जिससे पहले की तरह खुषी लौटी हैं क्योंकि धीमी मांग के कारण वे क्षमता कम करने के लिए मजबूर हुए थे।
आंकड़ों से पता चलता है कि भारत हर साल लगभग 500 करोड़ रु का एमडीएफ आयात करता है,जो घरेलू उत्पादन से लगभग 10 प्रतिशत सस्ता है। भारत की एमडीएफ मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियां कम मांग के परिदृश्य के विपरीत भारी उत्पादन क्षमता के साथ संघर्ष कर रही हैं। कंपनियां थोक आर्डर पर योजनाओं की पेशकश करके बिक्री को बढ़ने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं, लेकिन वे लक्ष्य हासिल करने में असफल रहे है, जिसके परिणामस्वरूप फैक्ट्रियों और गोदामों में स्टॉक के ढेर लग गए हैं।
यह विदित है कि सेंचुरी प्लाई, एक्शन टेसा और ग्रीन पैनल के नए बड़े संयंत्रों के शुरू होने के बाद एमडीएफ उत्पादन क्षमता 100 फीसदी से ज्यादा बढ़ गई है, लेकिन मांग महज 16-18 प्रतिशत की वृद्धि दर पर है। हालांकि, एमडीएफ तेजी से डेकॉर, सरफेस, कारकेस, शटर, वार्डरोब, ग्रिल, रैक, डोर इत्यादि जैसे व्यापक इंटीरियर डेकोरेटिव के उद्देष्यों में प्रवेश कर रहा है, इसके अलावा ऊंची डॉलर की कीमतों ने घरेलू उत्पादकों में आशा की किरण का संकेत दिया है।