Floresta Organised Shop Meet at Bikaner - Rajasthan

person access_time4 27 February 2019

भारतीय एमडीएफ उत्पादकों ने नवंबर महीने में कीमतों में फिर से बढ़ोतरी की है। कीमतों में वृद्धि के पीछे अन्य कच्चे माल के अलावा लकड़ी की कीमतों में भारी उछाल बताया जा रहा है। चूंकि एमडीएफ प्लांट में बहुत अधिक मात्रा में केमिकल खर्च होते हैं इसलिए उनकी खरीद वाल्यूम में होती है और खरीद का इनपुट कास्ट कच्चे माल के आने के बाद ग्राहकों को पास की जाती है।

रिपोर्ट के अनुसार, एमडीएफ के ब्रांड जैसे एक्शन टेसा, ग्रीन पैनल, सेंचुरी प्रोउड आदि ने अपने पूरे थिन्नेस रेंज में कीमतों में 7 फीसदी तक की वृद्धि करने की घोषणा की है, जिसे नवंबर महीने में लागू किया गया। डीलरों का कहना है कि एमडीएफ की कीमतें पिछले 3-4 वर्षों मे अब तक के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं। जरूरत को देखते हुए, हमें इसे स्वीकार करना ही होगा, और हम इसे तत्काल प्रभाव से अपने ग्राहकों को पास कर रहे हैं। डीलर यह भी कहते हैं कि बढ़ी हुई कीमतों को बाजार और यूजर दोनों ने बखूबी स्वीकार किया है।

प्लाई रिपोर्टर के सर्वे के अनुसार, पिछले 3-4 वर्षों में विभिन्न बाजार में कई नए डीलरों ने एमडीएफ की बिक्री शुरू कर दी है। रिपोर्ट में पाया गया कि 2013-14 में लगभग 15 फीसदी प्लाइवुड, टिम्बर, लेमिनेट, डोर बेचने वाले काउंटर एमडीएफ में काम कर रहे थे, अब यह अनुपात 40 फीसदी तक बढ़ गया है।

एमडीएफ और एचडी़एमआर केटेगरी में मांग और आपूर्ति का संतुलन ठीक नहीं है क्योंकि आयात की मात्रा में अचानक गिरावट आई है। समुद्री माल भाड़ा के प्रभाव तथा मध्य पूर्व और यूरोप में पैनल उत्पादों की अत्यधिक मांग के चलते घरेलू खपत अभी घरेलू उत्पादन पर ही निर्भर है। जब से एचडीएचएमआर ग्रेड एमडीएफ ने खुदरा बाजार में अपना प्रभाव छोड़ा है, तब से प्लाई रिपोर्टर ने बाजार में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा है। यह स्पष्ट है कि डीलर एचडीएमआर केटेगरी पर वास्तव में अच्छा मार्जिन कमाते हैं जो एमडीएफ की मांग बढ़ाने में भी मदद कर रहा है। देश भर के डीलरों को लगता है कि एमडीएफ की बिक्री अब प्लाइवुड काउंटरों के लिए एक जरूरत बन गई है, क्योंकि अभी एक भी ग्राहक का काउंटर से गायब होना ठीक नहीं है।

बाजार से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार फर्नीचर, राउटिंग, पैनलिंग, पार्टीशन, पैकेजिंग, फोटो फ्रेमिंग, गिफ्ट पैक, जूते आदि के उद्योग में एमडीएफ की अच्छी मांग है और घरेलू विनिर्माण इकाइयां अपनी 90 प्रतिशत क्षमता तक चल रही हैं।
 

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