केंद्र सरकार ने एक नई संभावना पर विचार किया है जहां पोर्ट एक औद्योगिक क्लस्टर को विकसित करने में मदद कर सकता है। दीन दयाल पोर्ट ट्रस्ट जिसे कांडला पोर्ट ट्रस्ट के नाम से भी जाना जाता है, में पिछले साल अपनी तरह की पहली परियोजना ‘स्मार्ट इंडस्ट्रियल पोर्ट सिटी‘ (एसआईपीसी) की घोषणा की गई थी। कांडला पोर्ट पर एसआईपीटी को 1430 एकड़ भूमि पर बसाने की योजना है, जहां 850 एकड़ जमीन उद्योगों के लिए और 580 एकड़ उस औद्योगिक क्षेत्र उन्हें सुबिधाएँ प्रदान करने के लिए आरक्षित रखा गया है। एक विशेष रूप से नियोजित फर्नीचर पार्क भी प्रस्तावित है जो औद्योगिक क्षेत्र के 850 एकड़ में से 100 एकड़ में बनेगा। फर्नीचर के अलावा अन्य उद्योग जो बाकी भूमि क्षेत्र के लिए उपयुक्त है, उनमें इंजीनियरिंग आधारित उद्योग, नमक और खाद्य तेल से संबंधित उद्योग होंगे। एसआईपीसी में बंदरगाह संचालन के साथ साथ इंफ्रास्ट्रक्चर और निर्बाध बिजली और पानी की आपूर्ति की अच्छी सुविधा होगी।
यहां प्लॉट का आकार 2 एकड़ से 55 एकड़ तक है जिसे 60 वर्ष की लीज पर हासिल किया जा सकता है जिसका किराया 3500 रुपये से 4000 रुपये प्रति वर्ग मीटर प्रति वर्ष होगी। भारत में लकड़ी आधारित आयात के लिए कांडला पोर्ट की केंद्रीय भूमिका होने का कारण फर्नीचर पार्क के लिए निर्धारित 100 एकड़ जमीन उपयुक्त है। कांडला टिम्बर एसोसिएशन (केटीए) के अनुसार, लगभग 2000 सॉ मिलें और 90 से ज्यादा प्लाईवुड, पार्टिकल
बोर्ड और विनियर प्लांट के साथ, देश में लकड़ी के कुल आयात का 70 फीसदी हिस्सेदारी कांडला पोर्ट के पास है।
कांडला पोर्ट पर लकड़ी के आयात केंद्रित होने और ‘स्मार्ट इंडस्ट्रियल पोर्ट सिटी‘ थीम के बावजूद लकड़ी आधारित उद्योगों के लिए स्टेक होल्डर्स और निवेशकों में रुचि नहीं दिख रही है। आज जब अमेरिका और चीन व्यापार युद्ध के चलते चीन से फर्नीचर निर्यात प्रभावित हो रहे है, तो संगठित फर्नीचर निर्यात उन्मुख होकर ध्यान केंद्रित कर रहे है, जो काफी फायदेमंद सकती है, फिर भी लकड़ी आधारित उद्योगों में उद्यमियों में रुचि की कमी प्लाई रिपोर्टर के लिए जिज्ञासा का विषय है।
रिपोर्टों के अनुसार, केंद्रीय सरकार के नेतृत्व में यह अनूठा कार्यक्रम एक साल पहले से तैयार है, उद्योगों ने अभी तक रुचि नहीं दिखाई है। केटीए के अध्यक्ष श्री नवनीत गज्जर ने कहा कि भारतीय सॉ मिलर्स और फर्नीचर निर्माता के लिए इसका निर्धारित किराया बहुत अधिक है और व्यावहारिक भी नहीं है। यदि किराया 500-1000 रुपये के बीच हो, तो ही फर्नीचर उद्योग इस खर्च को वहन कर पाएंगे। यह ज्ञातव्य है कि संबंधित मंत्रालय और विभागों द्वारा शीघ्र ही एक सेमिनार आयोजित की जा सकती है। आने वाले समय में शायद स्थिति स्पष्ट हो जाए।