फिप्पी ने मेलामाइन और फेनोल के बीआईएस सर्टिफिकेशन अनिवार्य नही करने की अपील की

Tuesday, 17 September 2019

फेडरेशन ऑफ इंडियन प्लाइवुड एंड पैनल इंडस्ट्री (एफआईपीपीआई) ने रासायन और उर्वरक मंत्रालय से अनुरोध किया है कि तत्काल हस्तक्षेप करते हुए कानून की उचित प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित किया जाए और मेलामाइन बीआईएस 15623ः2005 तथा फिनोल बीआईएस 538ः2000 के संबंध में अनिवार्य बीआईएस पंजीकरण योजना को लागू करते समय निर्णय जल्दबाजी में ना ली जाए। एफआईपीपीआई के अध्यक्ष श्री सज्जन भजंका द्वारा इसका प्रतिनिधितव किया गया। एफआईपीपीआई एक शीर्ष निकाय है जो देश भर में फैले प्लाइवुड, डोर्स, एमडीएफ बोर्ड, पार्टिकल बोर्ड और डेकोरेटिव लैमिनेट्स इत्यादि के निर्माण में लगे कई निर्माताओं का प्रतिनिधित्व करता है।

उन्होंने कई संस्थानों जैसे दक्षिण भारतीय प्लाइवुड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन, इंडियन लैमिनेट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन, ऑल इंडिया प्लाईवुड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन और वुड टेक्नोलॉजिस्ट एसोसिएशन इत्यादि को भी इस मामले में हस्तक्षेप कर संबंधित विभाग/प्रशासनिक मंत्रालय को निर्देश देने का आग्रह किया।

जैसा कि प्लाईवुड और पैनल इंडस्ट्री के सतत विकास के लिए यह मामला बहुत गंभीर है इसलिए एफआईपीपीआई ने सभी सम्बंधित एसोसिएशन को इसके लिए अपना प्रतिनिधित्व अपने लेटरहेड पर बताकर कर सम्बंधित अधिकारियों को भेजने और अफबाहों पर ध्यान ना देने के लिए कहा क्योंकि इससे कुछ चुनिंदा कंपनियों को लाभ पहुंच सकता है। एफआईपीपीआई के अनुसार लगभग 400 लैमिनेट बनाने वाली कम्पनियाँ कम से कम 50,000 लोगों को काम दे रही है, वहीं 30 एमडीएफ/पार्टिकल बोर्ड बनाने वाली कम्पनियाँ 5000 तथा 3300 प्लाईवुड बनाने वाली कम्पनियाँ 1,00,000 लोगों को सीधे तौर पर काम दे रही है।

एफआईपीपीआई ने रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय को लिखे अपने पत्र में कहा कि ज्यादातर निर्माता एमएसएमई केटेगरी के अंतर्गत आते हैं। यह उद्योग ग्रामीण इलाकों में बड़े स्तर पर रोजगार मुहैया कराता है और उत्पादन के पश्चात कारपेंटर, कॉन्ट्रैक्टर, डीलर, डिस्ट्रीब्यूटर्स, ट्रांसपोर्टर, रखरखाव और लॉजिस्टिक में लगे लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मुहैया कराता है। इस उद्योग द्वारा जिस कच्चे माल का उपयोग किया जाता है उसे किसानों द्वारा कृषि-वानिकी और फार्म फॉरेस्टरी स्कीम के अंतर्गत उपजाया जाता है जिसके चलते किसानो की आमदनी बढ़ती है साथ ही फारेस्ट कवर भी बढ़ता है। इसलिए यह आग्रह किया गया है कि सर्वांगीण विकास, जो वर्तमान सरकार का प्रार्थमिक लक्ष्य हैं, के लिए उद्योग को मदद कि जरूरत है।

उद्योग अपने विभिन्न उत्पाद बनाने के लिए बड़ी मात्रा में मेलामाइन और फिनोल का उपयोग करती है। वर्तमान में भारत में केवल एक ही कंपनी द्वारा मेलामाइन बनाया जाता है और और केवल दो कंपनियां ही फिनोल का बनाते है, इनमें से एक स्वयं एक बड़ा उपभोक्ता होने के कारण दूसरों को बहुत कम मात्रा बेचते हैं। इन उत्पादों के लिए मांग और आपूर्ति में भारी अंतर है, जो आयात से पूरा किया जाता है।

इन दोनों उत्पादों के आयात पर एन्टीडम्पिंग डयुटी लगाई जाती थी, जो अब या तो अवधि समाप्त होनें या अदालत के दखल के बाद समाप्त हो गई है।

यह बताया गया है कि भारतीय निर्माताओं को एंटी-डंपिंग ड्यूटी के माध्यम से उपलब्ध सुरक्षा समाप्त होने के बाद, इन उत्पादों के भारतीय निर्माताओं ने दोनों उत्पादों के लिए अनिवार्य बीआईएस पंजीकरण योजना लागू करने के लिए रसायन और पेट्रो रसायन मंत्रालय के मध्यम से मामला उठाया है।

इस डर के कारण कि ये उत्पाद किसी भी समय अनिवार्य बीआईएस पंजीकरण योजना के तहत आ सकते हैं, आयात में भारी कमी आई है, और मांग की आपूर्ति का अंतर काफी बढ गया है, और इन उत्पादों के भारतीय निर्माताओं ने इस स्थिति का पूरा फायदा उठाकर शोषण करना शुरू कर दिया है, जिसके चलते प्लाईवुड और पैनल इंडस्ट्री को बहुत अधिक नुकसान हो रहा है।

बीआईएस में अनिवार्य पंजीकरण के आवेदन से संबंधित कानून/योजनाएं यह स्पष्ट करती हैं कि ऐसी योजना को केवल तभी अनुमति दी जा सकती है जब यह सार्वजनिक हित में या मानव, पशु या पौधों के स्वास्थ्य, पर्यावरण की सुरक्षा या अनुचित व्यापार प्रथाओं की रोकथाम, या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ऐसा करना आवश्यक या तर्कसंगत हो।

इन दो उत्पादों के मुट्ठी भर भारतीय निर्माताओं ने उपयोगकर्ता उद्योग की क्षमता के उपयोग को प्रभावित करते हुए स्थिति का बुरी तरह से शोषण करना शुरू कर दिया है। पत्र के माध्यम से यह भी बताया गया है कि हमारे उद्योग ने हाल के दिनों में भारी पूंजी निवेश किया है। उद्योग के अधिकांश प्लेयर्स एमएसएमई केटेगरी में हैं और इसके संचालन के लिए बड़ी निश्चित लागत कि जरूरत होती है। इसलिए, उद्योग के संभावित पतन को रोकने के लिए इस तरह के शोषण को तुरंत रोकने की जरूरत है।

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