वुड पैनल इंडस्ट्री के लिए विकास परिषद की स्थापना समय की मांग

person access_time   3 Min Read 26 May 2021

फप्पी (फेडरेशन ऑफ इंडियन प्लाइवुड एंड पैनल इंडस्ट्रीज) ने वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय से अनुरोध किया है कि वह सभी सचिवालय और अंतर-मंत्रालयी सहायता सुनिश्चित करने के लिए प्लाइवुड और पैनल इंडस्ट्रीज के लिए उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम 1951 की धारा 6 के तहत एक विकास परिषद का गठन करंे। फिप्पी के अध्यक्ष श्री सज्जन भजंका, वाणिज्य और उद्योग मंत्री, श्री पीयूष गोयल को लिखे पत्र में कहा कि अब यह महसूस किया जाने लगा है कि प्लाइवुड और पैनल उद्योग का एक संस्थागत मंच होना चाहिए, जहां उद्योग की तेज गति से विकास के लिए सरकार और उद्योग सम्बंधित मुद्दों पर चर्चा कर सके।


श्री सज्जन भजंका ने कहा, ‘‘हम इन मुद्दों को सम्बंधित सरकारी मंचों पर लाते रहे हैं, लेकिन तंत्र के अभाव में उम्मीद के मुताबिक अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हुए। उन्होंने सुझाव दिया कि डीपीआईआईटी प्लाइवुड और पैनल इंडस्ट्रीज के लिए एक ‘विकास परिषद‘ का गठन कर सकता है जैसा कि हाल ही में पल्प और पेपर उद्योग के लिए सभी क्षेत्रीय और अंतर-मंत्रालयी सहायता के सुनिश्चित करने के लिए किया गया है।

मंत्रालय को लिखे पत्र के अनुसार, भारतीय प्लाइवुड और पैनल उद्योग द्वारा कच्चे माल के रूप में उपयोग की जाने वाली कुल लकड़ी का लगभग 92 फीसदी वनों के बाहर के पेड़ों/फार्म लैंड एग्रोफोरेस्ट्री से प्राप्त होता है। एक अनुमान के अनुसार 10 लाख किसान प्लाइवुड, कागज और वुड पैनल इंडस्ट्री को कच्चे माल की आपूर्ति के लिए टीओएफ प्लांटेशन में लगे हुए हैं।

भारत में इस कृषि वानिकी अभियान को जारी रखने के लिए, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसके लिए पर्याप्त प्रोसेसिंग इंडस्ट्री हो। देश में विनियर, सॉ मिल, प्लाइवुड, एमडीएफ और पार्टिकल बोर्ड मैन्युफैक्चरिंग की स्थापना हो, ताकि इस तरह की शार्ट रोटेशन टिम्बर की सप्लाई बढ़े, उद्योग एकीकृत रहे और किसानों को उनकी उपज के लिए उचित पारिश्रमिक मिल सके। इसके अलावा, यह भारत को सतत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने में मदद करेगा जैसे कि ग्रामीण समुदायों की आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करना, किसान की आय में वृद्धि और हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि, तथा ट्री कवर में वृद्धि इत्यादि। इससे जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन के लिए हमारी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी, और कार्बन सेचुरेशन में वृद्धि होगी।

तेजी से शहरीकरण के कारण वुड पैनल उत्पादों की मांग 10-12 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है- भारत के प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में स्थिर विकास के साथ शहरी क्षेत्र में लगभग 33 फीसदी लोग बसे हैं। केंद्रीय बजट में किये गए प्रावधान में ढांचागत विकास के अंतर्गत सरकार की पहल के अंतर्गत 2022 तक सभी के लिए आवास मुहैया कराना है। पर्यावरण मंत्रालय की सलाह पर सीपीडब्ल्यूडी द्वारा कंस्ट्रक्शन में लकड़ी के उपयोग पर प्रतिबंध को हटाने के कारण और 100 स्मार्ट सिटी को विकसित करने इत्यादि जैसे कार्यक्रम के चलते देश में 5 वर्षों में लगभग 38 मिलियन सीबीएम अतिरिक्त लकड़ी की आवश्यकता होगी।

पत्र में यह भी सुझाव दिया कि आयात पर निर्भर चीन अब दुनिया भर में इन उत्पादों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। आज चीन विश्व के प्लाइवुड उत्पादन का 75 फीसदी, विश्व के एमडीएफ उत्पादन का 43 फीसदी और विश्व के पार्टिकल बोर्ड उत्पादन का 27 फीसदी उत्पादन करने का दावा करता है। 2009 में, चीन 59 मिलियन सीबीएम प्लाइवुड का उत्पादन कर रहा था, जो कि 2018 में 229 फीसदी की वृद्धि के साथ 195 मिलियन सीबीएम को पार कर गया था। इसी तरह, 2009 में पार्टिकल बोर्ड में चीन का उत्पादन 14 मिलियन सीबीएम था, जो 2018 में 134 फीसदी वृद्धि के साथ 33 मिलियन सीबीएम पार कर गया था। और चीन में एमडीएफ का उत्पादन जो 2009 में 33 मिलियन सीबीएम था, 2018 में लगभग 50 फीसदी वृद्धि के साथ 50 मिलियन सीबीएम हो गया।

इसके विपरीत, भारत विश्व के प्लाइवुड का मात्र 4 फीसदी उत्पादन करता है। और पार्टिकल बोर्ड और एमडीएफ के उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी की कोई गणना ही नहीं है - पूरी दुनिया के उत्पादन का 1 फीसदी से कम। चीन का लैंड एरिया भारत की तुलना में लगभग 3 गुना अधिक है इसलिए लोगों का मानना है कि चीन के पास प्लांटेशन के लिए अधिक क्षेत्र होगा। हालाँकि, यदि आप चीन की टोपोग्राफी को देखें तो लगभग 60-65 फीसदी भूमि बर्फ से ढका होता है और/या गैर-खेती योग्य है, जिससे चीन और भारत में खेती के लिए उपलब्ध क्षेत्र में कोई अंतर नहीं है। मुख्य कारण यह है कि चीन अपने वुड बेस्ड मैन्युफैक्चरिंग को तेजी से विकसित करने में सक्षम रहा है, जो कि बड़े पैमाने पर फारेस्ट प्लांटेशन के कारण हुआ, जिसे सही समय पर प्रगतिशील नीतियों द्वारा सक्षम बनाया गया। यही कारण है कि चीन के पास अब दुनिया में सबसे बड़ा प्लांटेशन एरिया है, जो मुख्यतः तेजी से बढ़ने वाली प्रजातियों से भरा है।

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