एमडीएफ उत्पादकों के लिए भारतीय बाजार धीरे-धीरे कमोडिटी से वैल्यू एडेड उत्पादों में बदल रहा है। पहले जब एचडी़डब्ल्यूआर मेटेरियल भारत में इतना लोकप्रिय नहीं था, तो एमडीएफ एकसब्सट्रेट मेटेरियल के रूप में जाना जाता था, जिसका उपयोग बड़े पैमाने पर पैनलिंग, फिट आउट और सरफेसिंग की जरूरतों में किया जाता था। मेटेरियल की डिमांड फोटो फ्रेम, गिफ्ट बॉक्स, शू हील्स और पैकेजिंग की विभिन्न जरूरतों सहित कई और चीजों में उपयोग होती थी। लेकिन बाद में एचडी़डब्ल्यूआर की स्वीकृति के बाद, कैबिनेटरी के साथ साथ किचेन में प्री लैमिनेटेड बोर्ड के सीधे एप्लिकेशन की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
लो-राइज बिल्डर फ्लोर जो उत्तरी क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हैं, उनमें प्री-लैम एमडीएफ बोर्ड के एप्लिकेशन काफी प्रभावी हो गये है। बिल्ट इन वॉल वार्डरोब को सीधे प्री लैम एचडीएमआर बोर्ड से फिक्स किया जा रहा है, जहां लकड़ी की कीमत 130 रुपये से कम नहीं है और कारपेंटर का खर्च अलग होता है। प्लाइवुड-लेमिनेट कम्बो के मामले में कैबिनेट बनाने में खर्च 230 रुपये प्रति वर्ग फिट को पार कर जाती है। जहां बिल्डर्स एक रेडी फ्लोर देते है उसमें लगभग 80 फीसदी का अंतर एक प्रमुख कॉस्ट फैक्टर है।
प्री-लेमिनेटेड एमडीएफ की मांग में कुछ साल पहले मोटे बोर्ड की हिस्सेदारी मुश्किल से 8 से 10 फीसदी थी, जो अब 18-20 फीसदी तक पहुंच गई है। चूंकि एमडीएफ की डेंसिटी/बोर्ड की क्वालिटी अभी भरोसेमंद बनी हुई है इसलिए मांग बढ़ रही है। हालांकि बाजार निश्चित रूप से असुविधाजनक दिख रहा है, जहां एक जैसे दिखने वाले एचडी़ एमआर बोर्ड विशेष रूप से महानगरों में बेचे जा रहे हैं, जो एक समय के बाद इस उद्योग की छवि खराब कर देंगे जब खराब गुणवत्ता के कारण उत्पाद विफल होना शुरू हो जाएगा। प्री-लैम एमडीएफ में वृद्धि इकोनॉमिकल ग्रेड लेमिनेट निर्माताओं के लिए भी एक चुनौती है, क्योंकि इससे आने वाले समय में लाइनर की मांग प्रभावित होगी।