फेडरेशन ऑफ इंडियन प्लाइवुड एंड पैनल इंडस्ट्री (FIPPI) ने भारत के माननीय प्रधान मंत्री को ‘‘स्मॉल पॉलिसी शिफ्ट-बिग नेशनल चेंज‘‘ विषय पर एक प्रेजेंटेशन भेजी, जिसमें बदलाव से सम्बन्धित विवरण प्रस्तुत किया गया और उनके मार्गदर्शन के लिए कहा गया कि इंडस्ट्री कैसे भारत की आत्मनिर्भरता की महत्वाकांक्षा के लिए सहयोग कर सकता है। फेडरेशन द्वारा लिखे गए एक पत्र में फिप्पी के अध्यक्ष सज्जन भजंका ने भारत में एग्रो फॉरेस्टरी और वुड बेस्ड इंडस्ट्री के विकास में आत्मनिर्भरता के माध्यम से व्यापक राष्ट्रीय प्रभाव की संभावना के साथ नीति परिवर्तन को प्रभावित करने में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। फिप्पी निम्नलिखित नीतिगत बातों की ओर ध्यान आकर्षित किया जो लकड़ी आधारित उद्योगों के लिए अपनी पूर्ण विकास की क्षमता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। उसमें कहा गया है कि वर्तमान में, कृषि भूमि से उत्पादित लकड़ी को वन उत्पाद के रूप में माना जाता है जिसके लिए नियामक मंजूरी की आवश्यकता होती है और किसानों को पेड़ उगाने से हतोत्साहित किया जाता है। उन्होंने कृषि वानिकी को वन से कृषि क्षेत्र में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव रखा और इस प्रकार कृषि वानिकी में लगे किसानों को कृषि के सभी आर्थिक लाभ प्रदान किये जाने की बात कही।
उन्होंने यह भी प्रस्तावित किया कि विनियर मिल्स, सॉ मिल्स, प्लाईवुड के कारखानों, एमडीएफ के इकाइयों, पार्टिकल बोर्ड के इकाइयों, पल्प और पेपर की इकाइयों, फर्नीचर उद्योग और अन्य सभी उद्योगों सहित लकड़ी आधारित इकाइयों का जिनमें मुख्य रूप ‘खेती की लकड़ी‘ को कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है उनके लिए लाइसेंसिंग आवश्यकता को हटाने की जरूरत है। इससे स्थानीय उत्पादकों और एग्रो बेस्ड टिम्बर के अन्य उपयोगकर्ताओं को प्लांटेशन एरिया के नजदीक स्थायी व्यवसाय बनाने और किसानों के लिए रोजगार और आजीविका के अवसर पैदा करने में मदद मिलेगी।
उपरोक्त बदलावों से बहु-आयामी आर्थिक और पारिस्थितिक फायदा होने की संभावना है, जैसे कि ग्रामीण रोजगार सृजन, क्योंकि ग्रामीण भारत में 2-2.5 मिलियन से ज्यादा नई नौकरियों की संभावना है और किसानों की आय पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि और आयात प्रतिस्थापन, क्योंकि इसमें 150 बिलियन डालर से ज्यादा की फूल वैल्यू चेन पोटेंशियल है और व्यापार सुधार का संतुलन घरेलू उत्पादन द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है, साथ ही जलवायु औरसटेबिलिटी इम्पैक्ट में वृद्धि से 2050 तक 2 बिलियन मैट्रिक टन कार्बन जब्ती की क्षमता के रूप में क्लस्टर स्तर के बायोमास/ लकड़ी आधारित बिजली संयंत्रों के लिए पेड़ का आवरण और कच्चे माल की आपूर्ति संभव है।
श्री सज्जन भजंका ने इस मामले पर चर्चा करने के लिए व्यक्तिगत रूप से मिलने का भी अनुरोध किया। उन्होंने पत्र में कहा कि भारत सरकार द्वारा कृषि वानिकी के क्षेत्र में कमर्शियल वुड बागानों पर नए सिरे से विचार करने से देश में लकड़ी के उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ सकती है। भारत के पास इससेजुड़े कई एडवांटेज है, दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा कृषि योग्य भूमि संसाधन है जो लकड़ी में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में एक एसेट हो सकता है। हालांकि, जैसा कि भारत का रियाल एस्टेट और फर्नीचर की मांग में काफी उछाल आया है, लकड़ी के आयात पर निर्भरता की संभावना है क्योंकि भारत पैनल की अपनी जरूरतों को पूरा करना चाहता है।
उन्होंने सुझाव दिया कि प्रोत्साहन के माध्यम से कृषि क्षेत्र को नकदी फसलों से लकड़ी के बागानों में स्थानांतरित करने से किसानों की आय में वृद्धि होगी, लकड़ी आधारित उद्योगों को निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित होगी और ग्रामीण रोजगार सृजन में उल्लेखनीय वृद्धि होगी, इस प्रकार ग्रामीण भारतीय ब्रेन ड्रेन को रोका जा सकेगा। और देश के ग्रीन कवर और पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना।