Real WPC Features of Floresta Are Boosting Our Growth and Acceptance in Market

person access_time4 25 September 2017

प्लाइवुड, पैनल, डेकोरेटिव सर्फेस की तकरीबन 3000 उद्यमों में से मात्र एक दर्जन कंपनियां ही होंगी, जो बड़े उद्यम की श्रेणी में आती हैं, जिसको 30 फीसदी टैक्स के दायरें में रहना है। यानी छोटे व मझोले सेक्टर की वे कंपनियां जो नोटबंदी, जीएसटी और बाजार में मंदी से दबाव महसूस कर रहीं हैं, उन्हें अब यह पहल, आर्गनाइज बनने के लिए प्रेरित करेगा। कई राज्यों ने ई—वे बिल लागू करने के लिए अपनी अलग अलग तारीखें दे रखी है, लेकिन अन—ऑर्गनाइज प्राक्टिस को रोकने के लिए, फौरन स्पष्टता की जरूरत है।

बजट, ई—वे बिल और बेहतर मांग, जैसे मुख्य बदलाव आने वाले हैं। साल 2018—19 के केन्द्रीय बजट में छोटी—मझोली कंपनियों को मदद पहंुचाई गई है, यानी 50 से 250 करोड़ रू. सालाना टर्नओवर वाली कंपनियों के लिए टैक्स अब 30 से घटाकर 25 प्रतिशत किया गया है। इस पहल से आर्गनाइज बनने की राह पर चलने वाली प्लाइवुड, लेमिनेट्‌स और फर्नीचर कंपनियों को फायदा पहुंचेगा। पिछले बजट में 50 करोड़ तक टर्नऑवर वाली कंपनियों को 25 प्रतिशत टैक्स की सुविधा मिली थी। अब माइक्रो, स्मॉल व मिडियम उद्यमों को भी वर्गीकृत किया गया है, जिसके तहत 5 करोड़ तक की कंपनी को माइक्रो, 5 से 75 करोड़ वाली को स्मॉल और 75 से 250 करोड वाली कंपनियों को मझोले में रखा गया है।

इसलिए प्लाइवुड, पैनल, डेकोरेटिव सर्फेस की तकरीबन 3000 उद्यमों में से मात्र एक दर्जन कंपनियां ही होंगी, जो बड़े उद्यम की श्रेणी में आती हैं, जिसको 30 फीसदी टैक्स के दायरें में रहना है। यानी छोटे व मझोले सेक्टर की वे कंपनियां जो नोटबंदी, जीएसटी और बाजार में मंदी से दबाव महसूस कर रहीं हैं, उन्हें अब यह पहल, आर्गनाइज बनने के लिए प्रेरित करेगा। ई—वे बिल ने एक बार फिर उद्योग को भ्रम की स्थिति में ला दिया है, और इसे एक बार फिर टाल दिया गया है।कई राज्यों ने ई—वे बिल लागू करने के लिए अपनी अलग अलग तारीखें दे रखी है, लेकिन अन—ऑर्गनाइज प्राक्टिस को रोकने के लिए, फौरन स्पष्टता की जरूरत है।

बिल्डर्स व कारपोरेट सेक्टर में गतिविधियों बढ़ने से प्लाई, लेमिनेट, एमडीएफ/पार्टिकल बोर्ड की मांग में सुधार हुआ है। प्रोजेक्ट शुरू हुए है और सेंटीमेंट में सुधार बेहतर हुआ है, रिटेल बाजार में पिछले महीने का हमारा सर्वे, मांग व सेंटीमेंट में सुधार होने की ओर इंगित किया है। हालांकि पेमेंट को लेकर बड़ी चेतावनी बनी हुई है। प्लाई—लेमिनेट सेक्टर की रिपोर्ट इशारा करती है कि पेमेंट फ्रंट पर संकट बढ़ रहा है। अब प्लाई—लेमिनेट सेगमेंट में 30 से 45 दिन का क्रेडिट पिरीयड दूर का सपना बन गया है, क्योंकि पूरे वुड पैनल व डेकोर सेक्टर में उत्पादन क्षमता बढ़ने से मेटेरियल बेचने के लिए ज्यादा बेचैनी बढ़ती दिखती है।

डीलर्स पेमेंट में देरी का आलम ये है कि यह कई जगहों पर 180 दिन के उपर पहुंच चुका है, जो सप्लायर्स में रिस्क व बेचैनी बढ़ा रहा है। पेमेंट को लेकर मेटेरियल की वापसी, सही जबाव नहीं देना, विवाद खड़ा करना आदि शिकायतें बड़े व मेट्रो शहरों में बढ़ गई है। अब मामला सिर्फ पेमेंट में देरी तक ही सीमित नहीं रह गया है, बल्कि वर्किंग कैपिटल के अभाव व गलत नियत के चलते दुकान बंद कर, पैसे लेकर भागने के मामले भी काफी सामने आ रहें हैं। प्लाई रिपोर्टर को प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक, कई ऐसे मामले भी सामने आ रहें हैं, जिसमें कई दुकानदार रातोरात बाजार का पैसे लेकर भाग रहा है। अगर तीन साल पहले की ट्रेड हिस्ट्री का अवलोकन करें तो पाते हैं कि डिफाल्टर्स की संख्या 5 स 6 फीसदी से बढ़ी है, जो पहले 2 प्रतिशत होती थी। अब जरूरत इस बात की है कि प्लाई-लैम उत्पादकों से संबंधित एसोसिएशन इस पर मंथन करे।

गौर करने वाली बात ये है कि अब छोटे दुकानदार सीधे मैन्यूफैक्चर्स को मेटेरियल के लिए एप्रोच कर रहें हैं, और मैन्यूफैक्चरर्स सीधें छोटे दुकानदारों को, जहां पेमेंट को लेकर रिस्क बढ़ता जा रहा है। कुल मिलाकर मुझे लगता है कि 2018 व 2019 में कई बदलाव आएंगें, जो मैंने पहले नहीं देखा है, क्योंकि कई बदलाव काफी कम समय में देखने को मिल सकता है।

इस उम्मीद के साथ, कि मांग, उत्पादन क्षमता से ज्यादा हो जाएगी, मेरा सुझाव है कि धीरज से हालात को देखें व चतुराई से पहल करें। इंडिया वुड 2018 में प्लाई रिपोर्टर के स्टाॅल पर आप सभी आमंत्रित हैं।

Mail to “dpragat@gmail.com”, (M) 9310612991

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