प्लाइवुड उद्योगों में लेबर की कमी फिर से देश भर में उत्पादन में गिरावट का एक बड़ा कारण साबित हुआ है। विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, अकेले प्लाइवुड उद्योग में उत्पादन में लेबर की कमी के कारण 40 प्रतिशत की गिरावट आई है। यमुनागर, पंजाब, गांधीधाम, चेन्नई, केरल, मैंगलोर, आदि में स्थित उद्योग पर इसका प्रभाव ज्यादा है। इन राज्यों की तुलना में, उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तर पूर्व में लेबर की उपलब्धता की स्थिति बेहतर है। रिपोर्ट के अनुसार, प्लाइवुड विनिर्माण इकाइयों के पास पर्याप्त आर्डर है लेकिन लेबर की कमी के चलते काम लंबे समय तक पेंडिंग है।
अप्रैल-मई के दौरान ऑर्डर का फ्लो बेहतर था, लेकिन लेबर की कमी के कारण आपूर्ति की समय सीमा ज्यादातर उत्पादक पूरा नहीं कर पा रहे हैं। रिपोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार अधिकांश इकाइयां एक शिफ्ट में फैक्टरी चलाने के लिए मजबूर हैं। विभिन्न उद्योगों के ठेकेदार इसे नियमित वार्षिक प्रक्रिया बताते हैं जो विशेष रूप से अप्रैल, मई-जून महीने के दौरान फसल कटाई, त्योहारों और विवाह के चलते उत्पादन में दो महीने तक परेशानी रहती है।
हालांकि प्लाइवुड और अन्य पैनल उद्योगों ने मजदूरी में काफी वृद्धि की है और अब मजदूरों और कर्मचारियों का भुगतान अच्छा हुआ है। अब यह आसानी से देखा जा सकता है कि अब प्लाइवुड और लैमिनेट्स क्षेत्र अन्य सेगमेंट के बराबर भुगतान के स्तर पर आ रहे हैं, इसके चलते आने वाले वर्षों में लेबर की कमी एक सप्ताह तक ही कम हो सकती है। वर्तमान समय में, यह सत्य है कि लेबर की संख्या को कम करने के लिए, प्लाइवुड उद्योग ऑटोमेशन और आधुनिक मशीनों और प्रक्रियाओं को बेहतर लेआउट से लैस कर रहे हैं लेकिन प्लाइवुड मैन्यूफैक्चरिंग को अभी भी बहुत ज्यादा कामगार की आवश्यकता है। उत्तर आधारित इकाइयों के ठेकेदार कहते हैं कि हर अकुशल कामगार प्रति माह न्यूनतम 10000-12000 रूपए तथा कुशल श्रमिक 15 से 25 हजार रूपए कमा रहे हैं। इस प्रकार प्रत्येक वर्ष ऑपरेशनल और मैन्यूफैक्चरिंग कॉस्ट में वृद्धि हो रही है।
यह अनुमान है कि मई के अंतिम हप्ते तक मजदूर कारखानों में वापस आ जाएंगे और उत्पादन जून के मध्य से सहज हो जाएगा। वर्तमान परिदृश्य में प्लाइवुड और लैमिनेट फैक्ट्रियों का कामकाज अस्त व्यस्त और परेशानी भरा है।