रूपया डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर पर गिर गया है, जिसने आयातित सामग्रियों के पूरे रेंज की कीमतों को बढ़ा दिया है। फॉर्मल्डिहाइड की कीमतों में 10 प्रतिशत से अधिक वृद्धि की सूचना मिली है, जिसके चलते पूरे प्लाइवुड मैन्यूफैक्चरिंग की इनपुट कॉस्ट बढ़ गया है, जो लकड़ी की ऊंची कीमतों और कमजोर मांग के चलते दबाव में है। उद्योग का कहना है कि मैन्यूफैक्चरिंग कॉस्ट सभी आयातित कच्चे माल जैसे फॉर्मलिन, फेनोल, मेलामाइन और फेस विनियर की ऊंची कीमतों के कारण बढ़ी है।
विशेषज्ञों को अनुमान है कि प्लाइवुड उद्योग लकड़ी की ऊंची कीमतों के कारण 6 से 8 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहा था, हालांकि अन्य केमिकल के साथ फॉर्मेलिन की बढ़ती कीमतों ने इसके मैन्यूफैक्चरिंग कॉस्ट को और बढ़ाया है, और उनका अनुमान है कि वर्तमान परिदृश्य में कीमतों में 15 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है।
केमिकल आयातकों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि की वजह से मेथनॉल की कीमतें ऊंचे स्तर पर बढ़ी हैं, जो आगे और भी बढ़ सकती है। रुपये के मुकाबले डॉलर ने कीमतों पर एक और बोझ बढ़ा दिया है, और उन्हें अगले 2-3 महीने तक कोई राहत नहीं मिलने की चिंता है। मेथनॉल की उचीं कीमतों के कारण, औपचारिक मूल्य अक्टूबर के अंत तक 15 प्रतिशत से अधिक हो सकता है।
प्लाइवुड मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र से रिपोर्ट है कि निर्माता सतर्क हैं, और नए आर्डर लेने के इच्छुक नहीं हैं क्योंकि उनको अनुमान है कि पुरानी दरें वर्तमान स्थिति में व्यवहार्य नहीं हैं। उस परिदृश्य में, यदि उन्हें पुरानी दरों पर नए आर्डर मिलते हैं, तो बड़े नुकसान का सामना करना होगा, हालांकि वे पुराने आर्डर पर माल भेज रहे हैं और उत्पादन में कटौती कर चुके हैं।
दूसरी तरफ, शटरिंग प्लाइवुड निर्माता तत्काल प्रभाव से 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी करने के पक्षधर हैं क्योंकि फेनाॅल की ऊंची कीमतों के चलते उन्हें नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।