फेनाॅल, जिसे कार्बोलिक एसिड भी कहा जाता है, एक सफेद क्रिस्टलीय ठोस पदार्थ है, जिसे मिथाइल-इथाइल-बेंजीन के ऑक्सीकरण के माध्यम से उत्पादित किया जाता है, जिसे आम तौर पर सीमेन भी कहा जाता है, जिसे बेंजीन से बनाया जाता है। बेंजीन और प्रोपेन से शुरू होकर पूरी प्रक्रिया के तीन चरण हैं, जिसमें एकमात्र 2-प्रोपेनोन या एसीटोन अन्य प्रमुख उत्पाद होता है। फेनाॅल के डेरीवेटिव में फेनाॅल -रेजिन, बिस्फेनॉल-ए (बीपीए), कैप्रोलैक्टम, एडीपिक एसिड शामिल हैं।
एसीटोन, जिसे कभी-कभी 2-प्रोपेनोन या डाई मिथाइल किटोन के नाम से भी जाना जाता है, को अन्य रसायनों के उत्पादन में रासायनिक सहायक के रूप में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। एसीटोन मुख्य रूप से वाणिज्यिक उत्पादों जैसे एक्रिलिक प्लास्टिक के उत्पादन में उपयोग किया जाता है, जिसका उपयोग ग्लेजिंग, संकेत, लाइट फिक्सर और डिस्प्ले के लिए किया जाता है। बीपीए के उत्पादन में फेनाॅल के साथ एसीटोन का भी उपयोग किया जाता है।
एक साल पहले, प्लाई रिपोर्टर ने गुजरात सरकार द्वारा वाइब्रेंट गुजरात कार्यक्रम के दौरान एक आकलन किया था जो भारतीय फेनाॅल-एसीटोन बाजार पर केंद्रित था। इसमें पाया गया था कि ‘भारतीय फेनाॅल और एसीटोन बाजार में मांग-आपूर्ति अंतर बहुत बड़ा है। फेनाॅल की सालाना 238 किलो टन की आपूर्ति अंतर से कमी है, जहां एसीटोन की आपूर्ति 2016 में 202 केटीपीए का अंतर था।
भारत में प्लांट की कमी के चलते आने वाले दिनों में चाइनीज निर्माताओं को यह मौका मिलेगी जो हाल ही में बढ़ी हुई उनकी क्षमता को भारत के बाजार में बेचने का प्रयास कर रहे हैं। प्रस्तुति के दौरान सुझाव दिया कि 2020 तक फेनाॅल और एसीटोन की मांग क्रमशः 411 केटीपीए और 362 केटीपीए तक पहुंचने का अनुमान है, इस प्रकार स्थानीय निर्माताओं के लिए देश में मैन्यूफैक्चरिंग फैसिलिटी की स्थापना करने की बड़ी संभावना है। विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि 2020 तक भारतीय फेनाॅल बाजार 30 अरब रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है, जो 2012 में सिर्फ 17 अरब थी। एसीटोन मार्केट 10 फिसदी सीएजीआर से बढ़कर 2020 तक 19 अरब रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है जो 2012 में 9 अरब थी। (विशेषज्ञों का कहना है कि यह अनुमान से कहीं जायदा बढ़ा है)।
यह ज्ञातव्य है कि, एसआई ग्रुप और एचओसीएल भारत में क्रमशः फेनाॅल और एसीटोन के एकमात्र निर्माता हैं, जिसमें तीसरे नए प्लेयर डीपीएल इस सेगमेंट में प्रवेश किया हैं। देश में फेनाॅल की मांग में वृद्धि बहुत अच्छी है क्योंकि भारतीय वाटर-बेस्ड एडेसिव बाजार में अच्छी वृद्धि है और फेनाॅल और एसीटोन का उपयोग पेंट्स में वाटर बेस्ड एडेसिव पदार्थों के रूप में किया जाता है। चूंकि सरकार अस्थिर कार्बनिक यौगिकों (वीओसी) के उपयोग को सीमित कर रही है, इसलिए साल्वेंट बेस्ड कोटिंग्स को वाटर बेस्ड कोटिंग्स द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है। नतीजतन, पेंट उद्योग में आयात निर्भरता को कम करने के लिए फेनाॅल और एसीटोन निर्माताओं के लिए भारत में संयंत्र स्थापित करने के लिए बहुत अधिक संभावनाएं हैं। फसल संरक्षण और उपज में सुधार के लिए कीटनाशक बनाने के लिए फेनाॅल और एसीटोन महत्वपूर्ण कच्चा माल हैं।
बिस्फेनॉल-ए (बीपीए) फेनाॅल और एसीटोन के लिए सबसे बड़ा बाजार है। बिस्फेनॉल-ए की मांग भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में वृद्धि से भी प्रेरित है, जो 2022 तक 24.4 फीसदी की सीएजीआर में बढ़ कर 400 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, जो कि 2012 में 69.6 अरब अमेरिकी डॉलर था।
भारत वर्तमान में फेनाॅल के लिए आयात पर निर्भर है। पिछले साल के आंकड़ों से पता चलता है कि देश लगभग 2.5 लाख टन फिनोल आयात कर रहा है। भारत में, मुंबई और कोच्चि में दो फेनाॅल मैन्यूफैक्चरिंग फैसिलिटी हैं। एक वर्ष में दो बार, फेनाॅल की सप्लाई में अचानक कमी के कारण डेकोरेटिव लैमिनेट, प्लाइवुड और अन्य पैनलों के काम करने वाली कंपनियों के बैलेंस शीट पर भारी प्रभाव पड़ा है। हर बार, फिनोल की कीमतों में तेज वृद्धि मुश्किलें पैदा करती है और निर्माताओं को असहाय और यहां तक कि ब्लैकमेल जैसा महसूस होता है।
पैनल उद्योग में, कई लोगों का मानना है कि अच्छी कमाई करने के लिए जानबूझकर फेनाॅल और फॉर्मलीन दोनों की कमी किया जाता है। लैमिनेट इंडस्ट्री और डेंसिफाइड फिल्म फेस प्लाइवुड उद्योग अचानक फेनाॅल वृद्धि के चलते सबसे ज्यादा प्रभावित हुए क्योंकि यह न केवल कारखानों को बंद कर दिया बल्कि प्लाई और लैमिनेट में पुराने और लंबित आर्डर के लिए मेटेरियल के कई विवाद भी उभरे। इसके विपरीत एक हफ्ते में लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसके कारण लागत में 7 से 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो कई और विवादों का कारण बन गया।
भारत अपने उपयोग का लगभग 80 फीसदी फेनाॅल और एसीटोन का आयात करता है। विशेषज्ञ टिप्पणी करते हैं कि भारतीय स्थानीय फेनाॅल की कीमते अंतरराष्ट्रीय रुझानों और चीन की कीमतों का भी पालन करती है। घरेलू मूल्य निर्धारण आमतौर पर कंडला बंदरगाह के आधार पर किया जाता है जहां 90 फीसदी से अधिक आयातित फेनाॅल डिस्चार्ज होते हैं। आम तौर पर कीमतें सीआईएफ बेसिक कस्टम्स ड्यूटी़ लागत पर आधारित होती हैं जो आयातित फेनाॅल प्राइस के बराबर होती हैं।
विज्ञापन, खर्च, और ड्यूटी इत्यादि अमेरिका, ताइवान, चीन, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया थाईलैंड, सिंगापुर आदि से प्रोडक्ट फ्लो को निर्धारित करते हैं। फेनाॅल का एक थोक खरीदार ने प्लाई रिपोर्टर संवाददाता को बताया कि चीन में फेनाॅल उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जिसका भारत में कीमतों पर असर पड़ता है। चीन में बीजिंग, शंघाई, झेजियांग, और गुआंग्डोंग इत्यादि में अब काफी क्षमताएं हैं जो भारत सहित एशियाई बाजारों को आसानी से सप्लाई कर रही हैं और अगर आयातकों द्वारा बुकिंग की जाती है, तो इतने बड़े स्तर पर अचानक वृद्धि की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
वुड पैनल उद्योग और बाजार का मानना है कि यदि दीपक फेनोलिक लिमिटेड संयंत्र एक बार पूरी तरह से काम करना शुरू कर दे तो ऐसी स्थितियों से बचा जा सकेगा क्योंकि इससे भारत में फेनोल की मांग और आपूर्ति के बीच व्यापक अंतर में सुधार होगा। यह विदित है कि दीपक फेनोलिक लिमिटेड, दीपक नाइट्राइट लिमिटेड की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है और इसकी फेनाॅल और एसीटोन के लिए मेगा प्लांट में अपना वाणिज्यिक उत्पादन शुरू कर दिया है। डीपीएल संयंत्र 200,000 एमटीपीए का है, जो भारत सरकार के ‘मेक इन इंडिया‘ पहल के साथ काम कर रहा है। इस संयंत्र में भी अपने सह-उत्पाद एसीटोन का 120,000 मीट्रिक
टन प्रति वर्ष की मैन्यूफैक्चरिंग कैपेसिटी है। यह कैप्टिव खपत के लिए 260,000 मीट्रिक टन सीमेन बनाने की क्षमता द्वारा समर्थित है।
केमिकल प्रमुख दीपक नाइट्राइट ने अगले तीन से चार वर्षों में 1 अरब अमेरिकी डालर का कारोबार हासिल करने का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। उनका गुजरात के दहेज में पेट्रोलियम, केमिकल्स एंड पेट्रोकेमिकल्स इनवेस्टमेंट रीजन (पीसीपीआईआर) में 1,400 करोड़ रुपये की फेनाॅल -एसीटोन फैसिलिटी स्थापित की जा रही है। दीपक नाइट्रेट लिमिटेड थोक में केमिकल और अन्य कमोडिटी के साथ स्पेशलिटी केमिकल और एजेंट भी बनाती है, जिनका वडोदरा, भरूच में दाहेज, महाराष्ट्र में रोहा और तालोजा और आंध्र प्रदेश में हैदराबाद में मैन्यूफैक्चरिंग फैसिलिटी है।
अक्टूबर 2018 में, फेनाॅल बंदरगाहों से गायब हो गए क्योंकि फेनाॅल के जहाजों की कोई बुकिंग नहीं थी ना ही आने वाली थी। आयातकों और यहां तक कि कुछ हफ्ते पहले मेटेरियल की पेशकश करने वाले घरेलू निर्माताओं के पास उपलब्धता और इसके पहुंचने की संभावनाओं को लेकर या कीमतें वापस सामान्य स्तर पर आने को लेकर कोई जानकारी नहीं थी। लैमिनेट, प्लाइवुड तथा पैनल मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों ने सिर्फ उम्मीद रखा कि फेनाॅल जल्द ही पुरानी दरों पर वापस आ जाएगा लेकिन यह लेख लिखे जाने तक ऐसा नहीं हुआ।
उद्योग में आपसी बातचीत में कई कारणों और संदेहों पर चर्चा की जा रही है, जो सामान्य की तुलना में अधिक जानबूझकर कुछ होने की ओर इशारा करती है लेकिन शायद ही कोई ऐसा कर सकता है। चर्चाओं के दौरान, उद्योगों ने विचार किया कि ‘आयातकों ने पैनल और लैमिनेट उद्योगों से अच्छी मांग होने और इसके बढ़ने पर भी समय के साथ जहाजों को क्यों नहीं बुक किया? बंदरगाह पर फेनाॅल के कम स्टाॅक के कारण सप्लाई और डिमांड में बड़ा अंतर बनाने के पीछे क्या तर्क था? एक ऐसी स्थिति जब उत्पादक को तुरंत 50 फीसदी से कम उत्पादन करने के लिए मजबूर किया जाता है, इसे ऐसे ही नहीं छोड़ा जाएगा क्योंकि यह कुछ छोटी कंपनियों
को स्थायी रूप से कमजोर कर सकता है। प्लाई रिपोर्टर ने विभिन्न केमिकल सप्लायर से बात की, जिन्होंने कहा कि बंदरगाह पर स्टॉक की कमी के कारण और नई घरेलू फेनाॅल कंपनी के उत्पादन में देरी के चलते प्राइस
अप्रत्याशित रूप से ऊपर चढ़ गई, साथ ही रुपये के मुकाबले डॉलर की बढ़ती कीमतों के चलते मेथनॉल और मेलामाइन की कीमतें बढ़ीं। हालांकि आयातकों ने आशा व्यक्त की है कि फिनोल की स्थिति एक महीने के भीतर सामान्य होगी, और नवंबर में कीमतों में कमी आएगी, लेकिन यह निश्चित रूप से इसके लिए जो तैयार नहीं थे उन्हें और छोटे लोगों को बड़ा झटका लगा। इस लेख को लिखे जाने तक, फेनोल की कीमत 6-8 रुपये नरम होने के अलावा बहुत राहत नहीं मिली है। लैमिनेट उत्पादक 28 अक्टूबर के बाद फेनाॅल की खरीद शुरू करने जा रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अक्टूबर के दूसरे और तीसरे सप्ताह में 10 से 15 दिनों के लिए सभी खरीद बंद कर दी
थी। इन दिनों नवम्बर के पहले सप्ताह में फेनाॅल की कीमत 128 रुपये से 130 रुपये पर स्थिर है।
उद्योग सूत्रों का मानना है कि अगले 15 दिनों में फेनाॅल की कीमतें 8 से 10 रुपये तक कम हो जाएंगी क्योंकि त्योहार की छुट्टियां और कमजोर मांग के चलते बाजार में तैयार माल की मांग में मंदी हो सकती। कुछ जहाज आने वाली है जो आपूर्ति को ठीक करेंगी, इसलिए लैमिनेट और शटरिंग प्लाइवुड इकाइयों का उत्पादन नवंबर के मध्य तक सुव्यवस्थित हो सकते हैं। यह उम्मीद की जा रही है कि मेलमाइन और फॉर्मलीन की कीमतों में भी 6-7 फीसदी की कमी होने की उम्मीद है इसलिए बड़े नुकसान का जोखिम शायद कम हो जाएगा। अगर तैयार मेटेरियल की मांग बेहतर हो जाती तो नवंबर के मध्य तक उद्योग अपनी इनपुट लागत के स्तर तक पहुंच
सकता है। केमिकल सप्लायर ने भी उद्योग से केमिकल की कम मांग को स्वीकार किया है, हालांकि आपूर्ति और स्टॉक में सुधार की सूचना दी गई है। हालांकि डॉलर की कीमतों में वृद्धि सभी आयातित रसायनों की कीमतों पर एक और बोझ है।
यह विदित है कि फेनाॅल की कीमतें अभी तक का सबसे अधिक होकर 150 के स्तर से अधिक हो गईं, जो 2016 में इसी अवधि के दौरान लगभग 60 थीं। प्लाई रिपोर्टर को उम्मीद है कि नवंबर के अंत तक फेनाॅल की कीमतें सामान्य स्तर पर आ जाएंगी तब पूरे पैनल उद्योग, व्यापार और बाजारों को राहत मिलेगी।
श्री विकास अग्रवाल,
प्रेसीडेंट, इलमा
कच्चे माल की लागत में वृद्धि के कारण लैमिनेट उद्योग बड़े दबाव में हैं। वर्तमान में, कुछ सुधारों के बावजूद ये समस्याएं बढ़ रही हैं। डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की कीमत ने एचपीएल सेगमेंट में कच्चे माल की लागत को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया है। ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों ने फिर से मेथनॉल की लागत प्रभावित की है क्योंकि ईरान भारत में मेथनॉल का सबसे बड़ा निर्यातक है। इसी प्रकार चीन की पर्यावरणीय नीतियों ने उनके उद्योग को प्रभावित किया है और इसलिए वे मेलामाइन और बेस पेपर जैसे उत्पादों की लागत में उल्लेखनीय वृद्धि किये हैं। इसी कारण से चीन वास्तव में क्राफ्ट पेपर आयात कर रहा है जिसने घरेलू बाजार में कीमतों में वृद्धि को फिर से प्रभावित किया है। उपरोक्त सभी के आलावा, मजदूरी, बिजली, ईंधन की लागत भी जुड़ रहे हैं। निस्संदेह ज्यादातर इकाइयां इस तरह की लागत में वृद्धि सहने में सक्षम नहीं हैं, और हमारी कुल लागत 18-20 फीसदी तक बढ़ी है, जिसके चलते लगभग 20 इकाइयां पहले ही बंद हो चुकी हैं और 80 से अधिक ने अपने उत्पादन को काफी कम कर दिया है।
श्री महेंद्र गुप्ता,
फकीरसन्स पेपकेम
प्राइवेट लिमिटेड
बाजार मांग-आपूर्ति की गणना के साथ संचालित है, लेकिन फिनोल की हालिया बढ़ती कीमत हमारे लिए असंभव थी और हम आश्चर्यचकित हुए। लेकिन यह घरेलू आपूर्ति और आयात में वृद्धि के कारण अक्टूबर महीने के आखिरी सप्ताह से नीचे आ रहा है। नवंबर महीने में कीमतें और भी कम हो जाएंगी, अगर अच्छी आपूर्ति हो तो 2-3 महीने में चीजें सामान्य हों जाएंगी।
श्री अमित अग्रवाल,
यंग इंटेनेषनल
प्राइवेट लिमिटेड
वर्तमान समय में फिनोल की कीमतों की भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल है, लेकिन बढ़ती आपूर्ति के साथ अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से यह बढ़कर 7 से 8 फीसदी हो गया है। आयात परिदृश्य, अंतर्राष्ट्रीय बाजार और घरेलू आपूर्ति में सुधार से यह और नीचे आ जाएगा और हम उम्मीद करते हैं कि नवंबर महीने में यह लगभग 120 तक हो सकता है।
श्री विषाल डोकानिया,
निदेषक, सीडार डेकाॅर
प्राइवेट लिमिटेड
फिनोल की कीमतों में अचानक बढ़ोतरी निश्चित रूप से उद्योग द्वारा अप्रत्याशित नहीं थी। आने वाले एक बड़े फिनोल निर्माता के साथ थोड़े समय तक कीमतों में अस्थिरता आना तय था क्योंकि बाजार में किस कीमत पर बेचा जाए इसको लेकर आयातक अनिश्चित थे। आयात में कमी के परिणामस्वरूप कीमतों में यह अचानक बढ़ोतरी हुई। हालांकि, मौजूदा रुझान बताते हैं कि फिनोल की कीमतें स्थिर हो जाएंगी, लेकिन काफी ऊंची दर पर। कच्चे तेल, विदेशी मुद्रा में उतार-चढ़ाव और अन्य बाहरी कारकों से कीमतों आरएम (स्थानीय निर्माता) की कीमतों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। मुझे लगता है कि ऐसी अप्रत्याशित परिस्थितियों में उद्योग के लिए एकमात्र तरीका एकजुट होना और जब आवश्यक हो तो हमारी सेल्स प्राइस को समायोजित करना है। हम अन्य आपूर्तिकर्ताओं द्वारा अचानक मूल्य परिवर्तन के खिलाफ आपस में मिलकर हमारी फिनोल की आवश्यकताओं के लिए एक बड़ी मात्रा सीधे आयात करने के लिए एक संघ बनाने की आवश्यकता पर बल देकर वैसी कम्पनियों के साथ बातचीत कर रहे हैं जो बड़ी मात्रा में फेनोल का उपयोग करती है।
श्री सुरेन्द्र अरोरा,
विर्गो ग्रुप
इस बार, फिनोल ऐसे स्तर पर पहुंच गया जहां उद्योग लगभग बंद या अपंग सा हो गया है। यदि फेनोल के व्यापार में सक्रिय आयातक और अन्य प्रमुख प्लेयर्स ‘उद्योग के कठिन बाजार परिदृष्य‘ के दृश्टिकोण से अवगत होते तो इससे बचा जा सकता था। हम बहुत आषान्वित हैं और नई फिनोल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी दीपक फेनोलिक का स्वागत करते हैं। मेरा मानना है कि यह प्लाईवुड और लैमिनेट सेक्टर के लिए एक बड़ा समर्थन होगा।