पूंजी संकट के कारण, कांडला बंदरगाह के पास गुजरात स्थित एशिया के सबसे बड़े टिम्बर क्लस्टर में लकड़ी के आयातकों और कारखानों के मालिकों को वेयरहाउस से अपना माल छुड़वाने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें अपनी यूनिट तक कच्चे मॉल मगवाने के लिए जीएसटी, सीमा शुल्क, बैंक मार्जिन आदि कुल मिलाकर आयातित माल के लिए निवेश का लगभग आधा हिस्सा खर्च के रूप में पहले वहन करना पड़ता है। आज, सभी उद्योग परेशानी के दौर से गुजर रहा है और कोई काम के बिना, बैंक के ब्याज, विनिमय रेट में उतार-चढ़ाव आदि के चलते उनका ओवरहेड बढ़ता जा रहा है। पेमेंट नहीं दे पाने के कारण आयातकों ने अपने माल को कस्टम बॉण्डेड वेयरहाउस में स्थानांतरित करने का विकल्प चुना है।
उद्योग दो महीने से अधिक समय से लगभग बंद की स्थित में ही था। 18 मई 2020 से लॉकडाउन से राहत मिलने के बाद, मांग शुरू हो गई है लेकिन लेवर नहीं रहने के कारण फैसिलिटी में लगभग कोई काम नहीं हो पा रहा है। आयातकों के लिए सबसे बड़ा नुकसान बंदरगाहों पर लगने वाले डमेरेज और ग्राउंड रेट के कारण होता है क्योंकि लेवर और फाइनेंस के अभाव में वे इसे लेने में सक्षम नहीं हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में 65 फीसदी आयातित लकड़ी कांडला और मुंद्रा बंदरगाहों पर ही आती है। एक वर्ष में लगभग 35 लाख सीबीएम लकड़ी का आयात किया जाता है और देश भर में विभिन्न लकड़ी आधारित उद्योगों को सप्लाई कीजाती है। विभिन्न प्रकार के हार्डवुड, सॉफ्टवुड लॉग और लंबर न्यूजीलैंड, मलेशिया, अफ्रीकी देशों, लैटिन अमेरिका, उरुग्वे और यूरोपीय देशों जैसे विभिन्न देशों से आयात किए जाते हैं।
प्लाई रिपोर्टर से बात करते हुए, केटीए (कांडला टिम्बर एसोसिएशन) के अध्यक्ष श्री नवनीत गज्जर ने कहा, “लॉकडाउन के बाद सरकार द्वारा आर्थिक पैकेज की घोषणा ने कुछ राहत दी है, इसके बावजूद कंडला पोर्ट में आने वाले टिम्बर को कस्टम बॉण्डेड वेयरहाउस पर डंप किया जा रहा है। वर्तमान में लकड़ी का स्टॉक 2.5 लाख सीबीएम से अधिक है, जिसकी कीमत 450 करोड़ रुपये है। आयातकों को पूंजी की भरी कमी का सामना करना पड़ रहा है साथ ही बाजार में मांग कम है और लेवर की कमी के कारण वे अपने कारखानों को पूरी क्षमता से चलने में सक्षम नहीं हैं जिससे नुकसान हो रहा है। उनका ओवरहेड बढ़ता जा रहा है क्योंकि इनपुट कॉस्ट हर तरफ से बढ़ रही है।” उन्होंने आगे कहा। ‘शुरू में जब लॉकडाउन लगाया गया था तो फोर्स मेजर के कारण कोई शुल्क नहीं था। अब आयातकों को कस्टम बॉण्डेड गोदामों में भी भुगतान करना पड़ रहा है। स्टेक होल्डर का कहना है कि सीएफएसए (कंटेनरफ्रेट स्टेशन एसोसिएशन), अगर कोई संकट है तो चार्ज नहीं करने के लिए केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों पर विचार कर कोई राहत देने के लिए तैयार नहीं है।
“अगर हम सभी नुकसानों को जोड़ें तो यह लगभग 1,500 करोड़ रुपये से 2,000 करोड़ रुपये हो जाता है। क्योकि कांडला बंदरगाह के पास वुड बेस्ड उद्योग हैं जहाँ लगभग 2,000 आरा मिलें और 100 से अधिक प्लाईवुड इकाइयाँ हैं और लगभग 80,000 से 1 लाख कामगार कार्यरत हैं। अधिकांश लेवर असम, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, यूपी और बिहार के प्रवासी मजदूर हैं। आज लगभग 70 फीसदी प्रवासी मजदूर अपने घरों को चले गए हैं,”उन्होंने कहा।
एसआरजी समूह के एमडी, समीर गर्ग ने कहा, ‘हमें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है और इसके लिए हमने सरकार से मांग की है कि वे बिजली में सब्सिडी, ब्याज मुक्त ऋण, लॉकडाउन की अवधि के लिए ब्याज सब्सिडी, आयात पर जीएसटी में छूट प्रदान करें और सरकार के पास जमा जीएसटी एडवांस को तुरंत जारी करें। हम इस अनुमान में थे कि लॉकडाउन के बाद हम अगर स्थिति नियंत्रण में रहती है तो अपनी इकाइयों को तीन महीने के लिए कम से कम 50 फीसदी क्षमता पर चलाने में सक्षम होंगे और बाद में उद्योग सामान्य रूप से पुनर्जीवित हो जाएग।” वुडमैन प्लाई के निदेशक श्री रोहित शाह ने कहा, “जहाजों को लॉकडाउन से पहले लोड किया गया था। 25 मार्च से, उद्योग के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में बाजार 70 से अधिक दिनों तक बंद रहे। आयातकों को सीमा शुल्क, बंदरगाह शुल्क, जीएसटी, इत्यादि का खर्च वहन करना पड़ता है
इसके लिए मँगाए गए माल की कुल लगत के लगभग 50 फीसदी की आवश्यकता होती है, इसलिए एक बड़ी राशि का भुगतान किए बिना माल हासिल करने में सक्षम नहीं होता है। बहुत सारा टिम्बर बिना बिके रह जाता है और इसके लिए उन्हें डैमरेज का भुगतान करना पड़ेगा। अगर यह और दो महीनों तक जारी रहा तो माल नीलामी में चला जाएगा। हालांकि, सरकार ने यह निर्देश दिया है कि पोर्ट अथॉरिटी को वह शुल्क नहीं लेना चाहिए, लेकिन वे इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। हम सुप्रीम कोर्ट भी चले गए तो अदालत ने कहा कि मुंद्रा बंदरगाह निजी निकाय है और उनके साथ आपका व्यक्तिगत समझौता है इसलिए अदालत कुछ नहीं कर सकती है।”
कल्पना इंपेक्स के प्रोपराइटर श्री धर्मेश जोशी ने कहा,‘‘ हमारा पेमेंट अटका हुआ है और दो महीने से अधिक समय तक बंद रहने के कारण सप्लाई चेन बुरी तरह प्रभावित है। साथ ही हमें एलसी भुगतान में भी कोई छूट नहीं मिल रही है। एलसी डिफॉल्ट से बचने के लिए हमने माल को कस्टम बॉण्डेड वेयरहाउस में स्थानांतरित कर दिया है। मेरा स्टॉक लगभग 1,200 सीबीएम है और एक अनुमान के मुताबिक 80 फीसदी से अधिक आयातक ऐसे ही प्रभावित हैं। अगर हमें रियायती ब्याज दर पर बैंकों से कोई मदद नहीं मिलती है तो स्थित सामान्य नहीं हो सकेगी। सरकार को उद्योग का समर्थन करने के लिए कुछ अच्छी पहल करनी चाहिए। लॉकडाउन से राहत के बाद, हम शुरू में 25 फीसदी क्षमता के साथ काम कर रहे थे, लेकिन जब से लेवर अपने गांव गए है उत्पादन क्षमता घटकर 15 फीसदी रह गई है।”
“एक अनुमान के अनुसार, कच्छ क्षेत्र में वुड बेस्ड उद्योग 150 से अधिक कारखानों और आयातकों, सॉ मिलर्स, विनियर प्रोसेसर और प्लाईवुड निर्माताओं के साथ लगभग 10,000 करोड़ रुपये का है। कुछ राहत देने के लिए हमने सरकार और बंदरगाह के अधिकारियों के समक्ष कई रिप्रजेंटेशन दिए हैंय उम्मीद है कि एक दो हफ्ते या पखवाड़े में कुछअच्छी खबर आएगी, ”श्री नवनीत गज्जर ने कहा।
दूसरी तरफ, भारत सरकार के वित्त मंत्री (राज्य) श्री अनुराग ठाकुर ने एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा, “भारत विभिन्न देशों से हजारों करोड़ रुपये के फर्नीचर का आयात करता है। यदि हम लकड़ी पर शून्य शुल्क लगाते हैं और निर्यात प्रोत्साहन देते हैं तो निश्चित रूप से लकड़ी आराम से आएगी और प्रौद्योगिकी भी आएगी। इस तरह हम देश के भीतर अच्छी सप्लाई भी कर सकते हैं और बड़ी मात्रा में निर्यात भी कर सकते हैं। हम इस पर समर्पित रूप से काम कर रहे हैं और आपको आने वाले समय में इसका असर दिखेगा।”