फिप्पी (फेडरेशन ऑफ इंडियन प्लाईवुड एंड पैनल इंडस्ट्रीज), भारत में प्लाइवुड और पैनल निर्माताओं के एक शीर्ष संघ ने पर्यावरण मंत्रालय को एक पत्र लिख कर वुड बेस्ड इंडस्ट्री (इस्टैब्लिशमेंट एंड रेगुलेशन) गाइडलाइंस 2017 को तुरंत संशोधित करने और प्लांटेशन को बढ़ावा देने के लिए एक अधिनियम बनाने की मांग की। उन्होंने कृषि वानिकी से फार्म वुड प्राप्त करने के लिए ‘‘ग्रोइंग ट्री आउट साइड फारेस्ट (प्रोमोशन - फैसिलिटेशन) एक्ट 2021 जैसी कोई पूरी तरह से अलग इको सिस्टम तैयारकरने की मांग की है।
फिप्पी की ओर से, अध्यक्ष श्री सज्जन भजंका ने श्री प्रकाश जावड़ेकर से मुलाकात की और एग्रो फॉरेस्ट वुड पर आधारित प्लाइवुड एंड पैनल इंडस्ट्री के विकास के लिए उद्योग द्वारा प्रस्तावित मुद्दों पर चर्चा की। सौंपे गए पत्र में भारतीय वन अधिनियम की धारा 2 में संशोधन करके (जैसे बांस के मामले में किया गया है) देश भर में, समान रूप से सभी टीओएफ/उद्योग से जुड़े प्लांटेशन टिम्बर के परिवहन पर प्रतिबंध को हटाने का अनुरोध किया गया और एफडीसी क्षेत्र और डिग्रडेड फारेस्ट लैंड (जो लंबी रोटेशन वाले प्रजातियों के
लिए आवश्यक है और कृषि वानिकी के तहत नहीं उगाए जा सकते) में भी सम्बंधित वन भूमि पर उद्योग से जुड़े प्लांटेशन को उपयुक्त बनाने के लिए दिशानिर्देश जारी करने का आग्रह किया।
श्री सज्जन भजंका ने कहा कि देश में किसानों की आय बढ़ाने के लिए एग्रो फॉरेस्ट्री को बढ़ावा देकर कच्चे माल की उपलब्धता की समस्याओं के समाधान के लिए पर्यावरण मंत्रालय ने इस क्षेत्र के त्वरित विकास के लिए राष्ट्रीय वन नीति को संशोधित करने की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर चुका है। “अब उद्योग की लगभग 90 प्रतिशत लकड़ी की आवश्यकता जंगल के बाहर (ज्व्थ्) उगने वाले पेड़ों से पूरी हो रही है। भारत में इस कृषि वानिकी अभियान को जारी रखने के लिए, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश में पर्याप्त प्रसंस्करण उद्योग जैसे विनियर, सॉ मिल, प्लाइवुड, एमडीएफ और पार्टिकल बोर्ड की स्थापना की जाए, ताकि इस तरह की छोटी अवधि की लकड़ी की आपूर्ति बढ़े, उद्योगों एकीकृत रहे और किसानों को उनकी उपज के लिए उचित पारिश्रमिक मिल सके।