कारण मेलामाइन की कमी पूरे वुड पैनल डेकोरेटिव इंडस्ट्री के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है। दरअसल, यह एक ऐसा बड़ा संकट है जिसके चलते खासकर लेमिनेट इंडस्ट्री अस्थायी या आंशिक रूप से बंद होने के कगार पर है। मेलामाइन की कीमतों में अचानक वृद्धि और देश में लगभग कोई उपलब्धता नहीं होने के कारण ट्रेड एंड इंडस्ट्री में खलबली मच गई है। खबर लिखे जाने तक मेलामाइन की कीमत 350 रुपये प्रति किलो बताई जा रही है। वास्तव में, कीमतें तो बढ़ी ही हैं, मेलामाइन की उपलब्धता जीएसएफसी को छोड़कर कहीं नहीं है।
कई प्लांट कथित तौर पर स्थानीय रूप से प्राप्त मेलामाइन के कोटे के आधार पर चल रहे हैं या सप्ताह दर सप्ताह खरीद पर निर्भर हैं। यदि स्थिति में सुधार नहीं होता है, तो कई फैक्ट्रियां मेटेरियल की सप्लाई तात्कालिकता और कीमत के अनुसार बंद करने या रोकने का विकल्प चुन सकते हैं। क्योंकि रिपोर्ट हैं कि अच्छी तरह काम करने के लिए अधिकांश के पास शायद ही मेलामाइन है। एचपीएल निर्माता आयात से कुछ उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन नवंबर से पहले सुधार की कोई उम्मीद नहीं है।
‘अगर मेलामाइन की उपलब्धता में सुधार नहीं होता है, तो 50 फीसदी से अधिक लेमिनेट उद्योग उत्पादन घटाकर आधा कर देंगे और इसका प्रभाव प्लाइवुड, पार्टिकल बोर्ड और एमडीएफ सेगमेंट पर भी पड़ेगा‘‘
ंटेनरों की कमी और समुद्री माल दुलाई भाड़ा कम से कम साल के अंत तक चिंता का विषय बनी रहेंगी या अगले साल तक भी जारी रह सकती हैं। इस प्रकार आयातित मेलामाइन की खरीद
आयातकों और उद्योगों के लिए मुश्किलें पैदा करता रहेगा।
प्लाई रिपोर्टर के गहन अध्ययन के अनुसार, मेलामाइन की कमी अगले 2 महीनों या उससे ज्यादा दिनों तक बनी रहने की आशंका है। प्लाई रिपोर्टर ने विभिन्न आयातकों और आपूर्तिकर्ताओं से बात की, जो मानते हैं कि यह संकट कुछ ही दिनों का नहीं है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में मेलामाइन की उपलब्धता की भारी कमी है और कंटेनर की, दिक्कते भी काफी ज्यादा है।
प्लाई रिपोर्टर से बात करते हुए सुनीता कमर्शियल्स प्राइवेटm लिमिटेड के श्री अशोक सर्राफ ने अंतरराष्ट्रीय कारणों को मेलामाइन की उपलब्धता का जिम्मेदार ठहराया और कहा इसका प्रमुख कारण बेमेल सप्लाई है। श्री सराफ ने कहा कि यूरोप, अमेरिका और चीन में डिमांड काफी ज्यादा है और सप्लाई चेन में दिक्क्तें, समुद्री माल ढुलाई भाड़ा में वृद्धि के कारण सप्लाई डिमांड से काफी कम है। उन्होंने आगे कहा कि चूंकि भारत मेलामाइन के आयात पर अत्याधिक निर्भर है क्योंकि एकमात्र घरेलू उत्पादक भारत की जरूरत का केवल 25-30 फीसदी पूरा करता है, इस प्रकार अभी mमेलामाइन की सप्लाई बहुत खराब है।
जैसा कि भारतीय वुड पैनल और डेकोरेटिव इंडस्ट्री में उत्पादन बढ़े हैं, इसलिए पिछले 5 वर्षों के दौरान मेलामाइन की मांग लगभग दोगुने के करीब पहुंच गई है, जबकि घरेलू उत्पादन उतनी ही है, जितना पहले थी। इस पर फकीरसंस के श्री महेंद्र गुप्ता कहते हैं कि भारतीय मेलामाइन उत्पादक कंपनी ‘गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड, पिछले दो महीनों से पूरी क्षमता से काम कर रही है और 200 रूपए प्रति किग्रा पर बेच रही हैं। उन्होंने उत्पादन में भी वृद्धि की है लेकिन घरेलू मांग लोकल सप्लाई को पीछे छोड़ दिया है क्योंकि मेलामाइन की मांग बढ़ गई है, जिससे हम इम्पोर्टेड मेलामाइन पर निर्भर रहने के लिए मजबूर हैं। वर्तमान परिदृश्य में, मांग और आपूर्ति में काफी ज्यादा nगैप है, हालांकि, जीएसएफसी प्रतिबद्धता के अनुसार अपने नियमित ग्राहकों को सप्लाई कर रहा है
अंकुर रसायन के पार्टनर और तमिलनाडु केमिकल्स स्टोरेज एसोसिएशन के सचिव श्री अशोक एस राठी ने कहा कि मेलामाइन की कीमत खतरनाक स्थिति में अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है, जिसके चलते एक गैप पैदा हो गया है और इसे पूरा करने और सप्लाई में सुधार करने के लिए सभी स्टेकहोल्डर्स सहित सरकारी निकायों को सहयोग करना चाहिए, यही एकमात्र तरीका है जिससे कीमतें वास्तविक स्तर पर वापस आएंगी।
वुड पैनल और लेमिनेट इंडस्ट्री में मेलामाइन की खपत मेलामाइन का उपयोग मेलामाइन फॉर्मल्डिहाइड रेजिन बनाने के लिए किया जाता है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से लेमिनेट, प्लाईवुड, एमडीएफ, पार्टिकल बोर्ड आदि के उत्पादन में किया जाता है। मेलामाइन फॉर्मल्डिहाइड रेजिन अच्छी कठोरता, स्टेन और स्क्रैच प्रूफ तथा हीट और वाटर रेजिस्टेंस बनाने में सहायक है। प्लाई रिपोर्टर के निष्कर्ष बताते हैं कि डेकोरेटिव लेमिनेट, एमडीएफ, प्लाइवुड और पार्टिकल बोर्ड्स की उत्पादन क्षमता में बड़े पैमाने पर विस्तार होने के कारण पिछले 4 वर्षों में मेलामाइन की खपत में दोगुनी वृद्धि हुई है।
प्लाई रिपोर्टर को अनुमान है कि ‘वुड पैनल और डेकोरेटिव लेमिनेट इंडस्ट्री और कुछ अन्य सेगमेंट हर महीने लगभग 11,000 मीट्रिक टन मेलामाइन की खपत करते हैं, जो तीन साल पहले लगभग 7000 टन था। एमडीएफ, प्रीलैम, फ्लोरिंग और लेमिनेट इंडस्ट्री में क्षमता में वृद्धि के कारण मेलामाइन की मांग में वृद्धि हुई है। मेलामाइन की बढ़ती मांग के साथ, स्थानीय उद्योग आयातित मेलामाइन पर अधिक निर्भर हो गये है क्योंकि घरेलू उत्पादन जरूरत का लगभग 25 से 30 प्रतिशत ही है।
कई प्लांट कथित तौर पर स्थानीय रूप से प्राप्त मेलामाइन के कोटे के आधार पर चल रहे हैं या सप्ताह दर सप्ताह खरीद पर निर्भर हैं। यदि स्थिति में सुधार नहीं होता है, तो कई फैक्ट्रियां मेटेरियल की सप्लाई तात्कालिकता और कीमत के अनुसार बंद करने या रोकने का विकल्प चुन सकते हैं।
डायरेक्ट्रेट जेनरल ऑफ ट्रेड रीमेडीज (डीजीटीआर) ने अपनी सनसेट रिव्यु में चीन से मेलामाइन के आयात पर एंटी डंपिंग ड्यूटी को 331 अमेरिकी डॉलर से घटाकर 161 अमेरिकी डॉलर करने की सिफारिश की है। पारदर्शिताबढ़ाना और शुल्क कम करने जैसा यह निश्चित रूप से एक सकारात्मक कदम है। यूजर्स इंडस्ट्री की मदद के लिए वित्त मंत्रालय को इस सिफारिश को जल्द से जल्द लागू करना चाहिए। यह भी नोट करने वाली बात है कि वुड पैनल और लेमिनेट इंडस्ट्री मेलामाइन की कुल मांग का लगभग 90 प्रतिशत खपत करता है।
स्थिति से निपटने के उपाय
प्लाई रिपोर्टर ने इसके परिदृश्य को खंगालने की कोशिश की और पाया कि मेलामाइन की पर्याप्त आपूर्ति की खरीद के लिए उद्योग को और तीन महीने लगेंगे। कंटेनरों की कमी और समुद्री माल धुलाई भाड़ा कम से कम साल के अंत तक चिंता का विषय बनी रहेंगी या अगले साल तक भी जारी रह सकती हैं। इस प्रकार आयातित मेलामाइन की खरीद आयातकों और उद्योगों के लिए मुश्किलें पैदा करता रहेगा।
डर यह है कि भारत की उत्पादन क्षमता के अनुसार हर महीने मेलामाइन की जरूरत का मुश्किल से आधा ही मिल पाएगा। इस प्रकार, उद्योग को या तो उत्पादन कम करना होगा या एसोसिएशन को एक सप्ताह या उससे ज्यादा समय के लिए प्लांट बंद करने का विकल्प चुनना होगा। हालात में सुधार होने तक तैयार उत्पाद की कीमतों में वृद्धि के अलावा वास्तव में कोई रास्ता नहीं है।