सीजीएसटी (सेंट्रल गुड्स एंड सर्विस टैक्स) में कर चोरी अथवा फ्राॅड से जुड़े मिलते-जुलते दो मामलों में देश के दो उच्च न्यायालयों द्वारा हाल ही में दो अलग-अलग और विरोधाभासी फैसले आने से प्लाइवुड और वुड पैनल इंडस्ट्री से जुड़े कारोबारी और खासकर सभी छोटे उद्यमी असमंजस की स्थिति है। उच्च न्यायालय के फैसलों के बाद यह मामला देश की शीर्ष अदालत में पहुंच चुका है। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट भी जीएसटी की चोरी करने वाले व्यक्तियों को गिरफ्तार करने की टैक्स आथाॅरिटीज और संबंधित अधिकारियों की शक्ति की समीक्षा करने पर सहमत हो गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले को लेकर केंद्र सरकार से अपना पक्ष रखने और स्थिति को साफ करने को कहा गया है। वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने सीजीएसटी एक्ट-2017 के प्रावध् ाानों को आधार बनाकर कहा कि इस कानून के तहत टैक्स अथाॅरिटीज को उसकी पूर्ण संतुष्टी के पश्चात कर चोरी करने वालों की गिरफ्तारी की पूरी शक्ति प्रदान की गयी है। जीएसटी चोरी और इस मामले में संबंधित अध् िाकारियों की शक्ति से जुड़े मुद्दों को लेकर अब सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या जीएसटी एक्ट में बिना एफआईआर दर्ज किये, किसी की गिरफ्तारी संभव है? इस एक्ट के तहत क्या किसी आरोपी को अग्रिम जमानत दी जा सकती है? कर चोरी से जुड़े जीएसटी के प्रावध् ाान आखिर हैं क्या? छोटे कारोबारियों को लेकर जीएसटी कानून में वास्तव में क्या नरमी बरती गयी है? प्लाई रिपोर्टर ने अपने इस आलेख में जीएसटी को लेकर इस तरह के तमाम और वाजिब सवालों के जबाव तलाशने की गंभीर कोशिश की है, ताकि वुड पैनल और संबंधित उद्योगों से जुड़े कारोबारियों की राय जीएसटी को लेकर पूरी तरह साफ हो सके। पढें प्लाई रिपोर्टर की ये खास रिपोर्ट..
इसमें कोई संदेह नहीं कि देश में कर सुधार की दिशा में सरकार द्वारा अब तक उठाये गये सभी कदमों में जीएसटी को शुरू करना सबसे बड़ा निर्णय है। देश में विभिन्न तरह की कर प्रणालियों को खत्म करते हुए सरकार ने एकल कर व्यवस्था के तहत जीएसटी को लागू किया। लेकिन मौजूदा समय में जीएसटी अपनी दूसरी वर्षगांठ 1 जुलाई से ठीक पहले ही अपने कुछ नियम-कानूनों को लेकर कानूनी कटघरे में है। देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट भी गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) में चोरी या फ्राड करने वाले व्यक्तियों को गिरफ्तार करने की टैक्स अथॉरिटीज की शक्ति की समीक्षा करने पर तैयार हो गया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ को जीएसटी अधिनियम के गिरफ्तारी के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी करना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने अपना रुख साफ करते हुए कहा कि जीएसटी में गिरफ्तारी की शक्ति की समीक्षा किया जाना जरूरी है। जीएसटी में गिरफ्तारी को लेकर अलग-अलग अदालती आदेशों के साथ सुप्रीम कोर्ट के नये निर्णय ने देश के ट्रेड्रस को भी असमंजस में डाल दिया है। प्लाइवुड और वुड पैनल इंडस्ट्री से जुड कारोबारी भी जीएसटी कानून की बारीकियों को लेकर फिर एक बार पूछताछ करने में जुटे हुए हैं। कई इस बात को लेकर भी बेखबर हैं कि आखिर जीएसटी को लेकर दोबारा इतनी चर्चा क्यों की जा रही है और जीएसटी फिर क्यों कानूनी कटघरे में खड़ा है। चोरी अथवा फ्रॉड की स्थिति में जीएसटी कानून के प्रावधानों की वास्तविकता को जानने से पहले हर ट्रेडर्स को संक्षिप्त में वो स्थितियां समझनी जरूरी है, जिस कारण जीएसटी को लेकर फिर विवाद या चर्चा हो रही है और सुप्रीम कोर्ट इस कानून में गिरफ्तारी की शक्तियों की समीक्षा करने के लिये पहली बार विवश हुआ है।
समान मामलों में दो हाई कोर्ट के अलग-अलग आदेश
जीएसटी विवाद की यह कहानी बांबे हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद शुरू हुई। इस मामले में हाईकोर्ट ने जीएसटी चोरी और फ्रॉड के आरोपी को अग्रिम जमानत देकर रिहा कर दिया था। जबकि इससे पहले हैदराबाद में भी सामने आये इसी तरह के एक मामले में तेलगांना हाईकोर्ट ने जीएसटी चोरी के आरोपी की गिरफ्तारी को उचित ठहराते हुए जमानत के लिये दायर उसकी याचिका को खारिज कर दिया था। जीएसटी चोरी के आरोपियों को अग्रिम जमानत पर रिहा करने और गिरफ्तारी को उचित ठहराने के दोनों मामलों में दोनों अदालतों के आदेश के कानूनी आधार भी अलग-अलग थे। हैदराबाद वाले मामले में आरोपी ने जीएसटी चोरी और धोखाधड़ी के लिये फर्जी बिलों का सहारा लिया था। जीएसटी से जुड़े अधिकारियों ने आरोपियों की गिरफ्तारी के लिये समन जारी किया। गिरफ्तारी से बचने के लिये आरोपियों ने तेलंगाना हाईकोर्ट में याचिका दायर की और जीएसटी अधिकारियों की गिरफ्तारी की शक्ति को चुनौती देते हुए जमानत की मांग की। लेकिन हाईकोट की बैंच ने सीजीएसटी एक्ट-2017 के तहत जीएसटी कमिश्नर की शक्ति को बरकरार रखते हुए आरोपियों की गिरफ्तारी को उचित ठहराया और उनकी जमानत याचिका रद्द कर दी।
बांबे हाईकोर्ट में पहुंचे दूसरे मामले में भी फर्जी बिलों के आधार पर जीएसटी चोरी और फ्रॉड का बड़ा मामला सीजीएसटी अधिकारियों के सामने आया था। इस मामले में भी गिरफ्तारी से बचने के लिये आरोपी हाईकोर्ट पहुंचा और अदालत से अग्रिम जमानत की मांग की। मामले की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि कानूनी तौर पर क्रिमिनल प्रोस्यूजर की प्रक्रिया अपनाये बिना और विशेषतौर पर एफआईआर दर्ज किये बिना सीजीएसटी अधिकारी किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकते हैं। न्यायालय से साफ किया कि सीजीएसटी अधिकारी कोई पुलिस अधिकारी नहीं होते हैं, इसलिये एफआईआर दर्ज किये बिना वह किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकते हैं। बांबे हाईकोर्ट ने इस तरह के कानूनों के आधार पर आरोपी को अग्रिम जमानत देकर रिहा कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट टैक्स अधिकारियों की शक्ति की समीक्षा को तैयार
बांबे हाईकोर्ट के उक्त फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की उच्च न्यायाल के फैसले को चुनौती दी। सरकार ने शीर्ष अदालत से इस मामले में स्पष्टीकरण देने की भी मांग की। केंद्र सरकार का कहना था सीजीएसटी एक्ट के तहत कमिश्नर को उसके पुख्ता विश्वास के आधार पर गिरफ्तारी की शक्तियां प्रदान की गयी है। सरकार की इस दलील के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीजीएसटी एक्ट के तहत कमिश्नर या संबंधित अधिकारी की शक्ति की समीक्षा करने की
बात कही है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि दो उच्च न्यायालयों द्वारा एक समान मामले में दो अलग-अलग आदेश आने के बाद शीर्ष अदालत द्वारा इस मामले की समीक्षा किया जाना जरूरी है। उक्त कानूनी विवाद से परे अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि सीजीएसटी एक्ट में गिरफ्तारी और सजा के प्रावधान आखिर है क्या। इस सवाल का जबाव सीजीएसटी एक्ट-2017 के चैप्टर 19 में मिलता हैं, जिसमें सीजीएसटी एक्ट-2017 के कानूनी प्रावधानों को विस्तार से बताया गया है। इसके लिये सीजीएसटी एक्ट-2017 के सेक्शन 69 और सेक्शन 132 मुख्य रूप से काफी महत्वपूर्ण है। इस सेक्शन के कुछ नियम-उपनियमों में छोटे कारोबारियों को लेकर नरमी बरती गयी है जबकि जीएसटी में बड़ी चोरी या फ्रॉड के लिये पांच साल तक की सजा और दंड का कठोर प्रावधान है। छोटे व्यवसायी जिनका वार्षिक टर्नओवर 2 करोड़ या इससे कम हैं और वे अपनी बुक को उचित तरीके से मैंटेन करके रखते हैं तो उन्हें इस एक्ट के तहत किसी बड़े कानूनी शिकंजे का ज्यादा भय नहीं होना चाहिये। इसके बावजूद भी सीजीएसटी एक्ट में जिन कृत्यों को अपराध और दंड की श्रेणी, खासकर संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध के वर्ग में रखा गया है, वे मुख्य रूप से निम्न तरह से हैं।
सीजीएसटी एक्ट में संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध
संज्ञेय अपराध वे अपराध होते हैं, जिसमें किसी पुलिस अधिकारी को अदालत के आदेश या वारंट के बिना किसी आरोपी को गिरफ्तार करने या किसी भी तरह की जांच करने की इजाजत या शक्ति प्राप्त होती है। इस
कानून में संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध सैक्शन 132 के तहत निम्न तरह से हैं-
- कोई इनवॉइस जारी किये बिना कोई माल अथवा सेवा अथवा दोनों की सप्लाई करना शामिल है। इस कानून में इसे टैक्स की चोरी करना या छुपाने के मकसद से जानबूझकर ऐसा करना गंभीर अपराध माना गया है।
- माल या सेवाओं की आपूर्ति के बिना या इस अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन में, या गलत तरीके से लाभ उठाने या इनपुट टैक्स क्रेडिट का उपयोग कर या कर वापसी के लिए बनाए गए नियमों के तहत किसी भी चालान या बिल को जारी करना भी गंभीर अपराध है।
- इनपुट टैक्स क्रेडिट को इस तरह के चालान या बिल, क्लॉज (बी) में संदर्भित का उपयोग करके किया जाता है, तो गंभीर अपराध है।
- किसी भी राशि को कर के रूप में एकत्र करना, लेकिन उसे निश्चित तारीख से तीन महीने की अवधि से परे भी, जिस पर ऐसा भुगतान देय होता है, सरकार को उसी का भुगतान करने में विफल रहना भी गंभीर अपराध है।
यद्यपि उक्त धारा 132 और इसकी उपधारा 1 के तहत ई से के तक अन्य क्लॉज-खंड भी हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर गैर-संज्ञेय और जमानती अपराध के तहत आते हैं।
क्रम संख्या |
कर चोरी/छुपाने की रकम |
सजा |
1 |
5 करोड़ रूपये से अधिक |
5 साल की कैद के साथ जुर्माना |
2 |
2 से 5 करोड़ रूपये तक |
3 साल की कैद के साथ जुर्माना |
3 |
1 से 2 करोड़ रूपये तक |
1 साल की कैद के साथ जुर्माना |
4 |
यदि कोई क्लॉज (एफ) या क्लॉज (जी) या क्लॉज (जे) में निर्दिष्ट अपराध करता या अपराध में शामिल होता है या प्रलोभन, कमीशन देता है |
6 माह की कैद के साथ अथवा
जुर्माना अथवा दोनो |
अपराध दोहराने के लिए सजा
जहां किसी भी व्यक्ति को इस धारा के तहत अपराध का दोषी ठहराया जाता है, उसे फिर से उसे दूसरी बार इस धारा के तहत अपराध का दोषी ठहराया जाता है, तो उसे दूसरे और हर अगले के अपराध के लिए दंडित किया जाएगा, जो कि पांच साल की कैद और जुर्माने के साथ बढ़ सकता है। अधिनियम की धारा 132 की उपधारा 4 में कहा गया है कि ये अपराध क्रिमिनल प्रोसेजर कोड, 1973 में शामिल नहीं है। इस अधिनियम के तहत सभी अपराध, उप-धारा (5) में उल्लिखित अपराधों को छोड़कर, गैर-संज्ञेय और जमानती होंगे।
किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी में कमीष्नर की शक्ति
धारा 69 और उप खंड (1) के अनुसार, जहां जीएसटी कमीशनर के पास यह विश्वास करने का पर्याप्त कारण है कि किसी व्यक्ति ने कोई अपराध किया है, इस स्थिति में कमीशनर आदेश देकर, ऐसे आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए केंद्रीय कर के किसी भी अधिकारी को अधिकृत कर सकता है। धारा 69 की उपधारा (2) के मुताबिक जहां एक व्यक्ति को उप-धारा (1) के तहत गिरफ्तार किया जाता है, उस व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए अधिकृत अधिकारी उस व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार के लिये सूचित करेगा और चैबीस घंटे के भीतर एक मजिस्ट्रेट के सामने उसे पेश करना होगा।
गिरफ्तार व्यक्ति की जमानत पर रिहाई
गैर-संज्ञेय और जमानती अपराध के मामले में उपायुक्त या सहायक आयुक्त के पास किसी गिरफ्तार व्यक्ति को जमानत पर रिहा करने के उद्देश्य के लिए, उसके पास समान शक्तियां होंगी और उस अधिकारी के पास ये प्रावधान एक थाने के प्रभारी की समान शक्तियों के समतुल्य अधीन होगी।
नियम-कानून अपनाएं और निडर होकर कारोबार करें
सीजीएसटी एक्ट-2017 के उक्त प्रावधानों में साफ है कि इस कानून के तहत जीएसटी चोरी या फ्रॉड की अमानत जितनी बड़ी होगी, सजा भी उतनी बड़ी और सख्त होगी। सेक्शन 132 के सब सेक्शन 1 में क्लॉज से ऐ से डी में दर्शाए गये जीएसटी चोरी या फ्रॉड से संबंधित अपराध काफी गंभीर है। ये अपराध गैर जमानती और संज्ञेय श्रेणी में आते है, जिनमें आरोपी को जमानत तक मिलनी भी मुश्किल होती है। 2 करोड़ से अधिक और पांच करोड़ रूपये तक के जीएसटी फ्रॉड, चोरी या गलती के मामले में आर्थिक जुर्माना और तीन साल तक की कैद का प्रावधान है। वुड पैनल और लकड़ी आधारित इकाईयों समेत असंगठित क्षेत्र के उद्योगों से जुड़े छोटे कारोबारियों के लिये जीएसटी को कई मायनों में बेहतर कहा जा सकता है। जीएसटी में तत्काल गिरफ्तारी के लिये 2 करोड़ से अधिक की रकम होनी जरूरी है। उल्लेखनीय है कि सरकार ने जीएसटी कंप्लायंस के कई पैमानों पर 1.5 करोड़ रुपये तक के टर्नओवर वालों को छोटा कारोबारी माना है। ऐसे में कारोबारियों की ओर से 2 करोड़ से ज्यादा की टैक्स चोरी या फ्रॉड संभव नहीं, ऐसे में छोटे कारोबारी गिरफ्तारी के प्रावधानों से चिंता मुक्त हो सकते हैं।
प्लाई रिपोर्टर द्वारा हर कारोबारी को कानून के हर तरह के शिकंजे से बचने के लिये उन्हें अपनी बुक्स ऑफ एकाउंट को हमेशा सही और साफ रखने की सलाह दी जाती है। हालांकि जीएसटी की धाराओं में दोबारा टैक्स चोरी के मामले में 2 करोड़ रुपये की सीमा की अनदेखी भी की जा सकती है। कारोबार में लगातार बढ़ोत्तरी करने, माहौल को भयमुक्त बनाने और किसी विवाद में फंसने से बचने का सर्वमान्य उपाय यही है कि विधि सम्मत नियम-कानूनों का भली भांति पालन किया जाए।